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घोंसला

'मैंशाम को दफ्तर से लौटकर आऊं तो यह चिड़िया का घोंसला मुझे दिखना नहीं चाहिए

घोंसला
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- गोविन्द भारद्वाज

'मैंशाम को दफ्तर से लौटकर आऊं तो यह चिड़िया का घोंसला मुझे दिखना नहीं चाहिए, समझेज्!' रवि बाबू ने बड़े बेटे पर बरसते हुए कहा।

'पापा चिड़िया के घोंसले में अभी छोटे-छोटे अंडे हैंज्। अभी घोंसले को कैसे बाहर फेंक सकते हैं! कुछ दिन इंतजार कर लेते हैं। बच्चे उड़ने लायक हो जाएं तो घोंसले को हटा देंगे।' बेटे ने जवाब दिया।

उसी समय सामने वाले पड़ोसी निर्मल जी आ गए- 'रवि बाबू, क्यों बच्चे पर गरज रहे हो?' 'कुछ नहीं निर्मल भाई, आप बताओ कहां जा रहे हो थैला लेकर?' रवि बाबू ने बात बदलते हुए पूछा। 'बस अगले चौराहे तक जा रहा हूं, दाना- पानी की व्यवस्था करने।' निर्मल जी ने जवाब दिया।

रवि बाबू ने पूछा, 'दाना-पानी..?'

'हां भाई, दाना-पानी! दरअसल एक चिड़िया ने घर में घोंसला बना लिया। उसमें उसके दो-चार बच्चे भी हैं। बस उनके दाने के लिए एक मिट्टी का बर्तन और पानी के लिए परिंडा लेने जा रहा हूँ। बेचारी नन्ही सी जान इतनी भीषण गर्मी में कहां भटकती फिरेगी!' निर्मल जी ने कहा।

रवि बाबू ने बेटे की तरफ देखा, फिर कुछ सोचते हुए कहा, 'तू भी साथ जा, दाना-पानी के बर्तन ले आ!'

बेटा खुश था।

(वागर्थ से साभार )


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