न मथुरा न अयोध्या, गोरखपुर लौटे योगी
उत्तरप्रदेश चुनावों के ऐलान के बाद भाजपा में भगदड़ का माहौल बन गया। 3 मंत्रियों समेत 14 विधायकों ने भाजपा छोड़ दी है और इनमें से कई अब समाजवादी पार्टी के साथ आ चुके हैं।

उत्तरप्रदेश चुनावों के ऐलान के बाद भाजपा में भगदड़ का माहौल बन गया। 3 मंत्रियों समेत 14 विधायकों ने भाजपा छोड़ दी है और इनमें से कई अब समाजवादी पार्टी के साथ आ चुके हैं। इस बीच भाजपा ने 403 सीटों में से 105 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। पिछले दिनों बगावत की हलचल के बीच जब भाजपा की दो दिन की बैठक चली तो वहां से यही संदेश निकल कर आया था कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी अयोध्या से चुनाव लड़ सकते हैं। इससे अभी मंडल बनाम मंदिर वाला जो माहौल उप्र में फिर से बन गया है, उसमें मंदिर के सहारे भाजपा को आगे बढ़ने में मदद मिल सकती थी।
लेकिन जो 105 उम्मीदवारों के नाम सामने आए हैं, उसमें मुख्यमंत्री योगी गोरखपुर सदर से और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी की सिराथू सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे। अयोध्या के पहले योगीजी को मथुरा से प्रत्याशी बनाने का आग्रह राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पहले किया था। उन्होंने इस बारे में भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा को पत्र लिखा था औऱ बताया था कि यह पत्र वे भगवान कृष्ण की प्रेरणा से लिख रहे हैं।
लेकिन अब मुख्यमंत्री योगी न राम की शरण में जाते दिख रहे हैं, न कृष्ण जी की प्रेरणा से मथुरा पधार रहे हैं, बल्कि अपने उसी गोरखपुर का रुख कर रहे हैं, जहां यह जुमला प्रचलित है कि गोरखपुर में रहना है तो योगी, योगी कहना है। जब कोई अपने शहर में और शहर उस शख्स में इतना रचा-बसा हो कि उस शख्स की और शहर की पहचान एक हो जाए, तो फिर उससे सुरक्षित जगह और क्या हो सकती है। इस लिहाज से देखें तो गोरखपुर से आदित्यनाथ योगी भाजपा के विधायक बन सकते हैं। वैसे तो मुख्यमंत्री होने के नाते सारा राज्य ही उनके लिए सुरक्षित सीट जैसा होना चाहिए था। मगर भाजपा वक्त की नजाकत को समझ रही है। पार्टी में बगावत से जो संकेत मिल रहे हैं वो भविष्य के लिए अच्छे नहीं हैं। इसलिए हरेक सीट पर फूंक-फूंक कर कदम रखने में ही समझदारी है।
वैसे गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ 1998 से लेकर 2017 तक लगातार पांच बार सांसद रह चुके हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उन्होंने यह सीट खाली की, तो 2018 के उपचुनावों में भाजपा प्रत्याशी को संजय निषाद ने हरा दिया था। अब संजय निषाद भी भाजपा के साथ गठबंधन कर चुके हैं। इसलिए एक तरह से गोरखपुर की लोकसभा सीट भाजपा के पास ही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता राधा मोहन दास अग्रवाल का टिकट काट कर मुख्यमंत्री के लिए सीट खाली करवाई गई है, जो 2002 से यहां विधायक रहे हैं। अब राधा मोहन दास अग्रवाल की नाराजगी स्वाभाविक है, ऐसे में भाजपा उन्हें किस तरह से संतुष्ट करती है और उनके लिए सम्मानजनक स्थान कैसे बनाए रखती है, ये देखना होगा। वैसे गोरखपुर से योगीजी के चुनाव लड़ने और जीतने का एक फायदा यह होगा कि पूर्वांचल में भाजपा की डांवाडोल स्थिति थोड़ी संभलेगी, इसके साथ ही आस-पास की सीटों पर भी उसका असर पड़ेगा।
गोरखपुर के जातिगत समीकरण को समझें तो यहां ब्राह्मण वोट प्रतिशत 9, ठाकुर वोट 4 प्रतिशत, भूमिहार 8 प्रतिशत, कायस्थ 7 प्रतिशत, वैश्य 10 प्रतिशत, यादव 8 प्रतिशत, निषाद 14 प्रतिशत, दलित 12 प्रतिशत और मुसलमान 11 प्रतिशत हैं। यानी सबसे ज़्यादा संख्या में निषाद हैं और उसके बाद दलित वोट हैं। निषाद पार्टी का तो भाजपा के साथ गठबंधन हो गया है, और दलितों को साधने के मकसद से योगीजी ने मकर संक्रांति पर पार्टी के दलित कार्यकर्ता अमृत लाल भारती के घर पहुंचकर खिचड़ी खाई है। चुनाव के पहले की यह कवायद यह बतलाने के लिए काफी है कि गोरखपुर में भी योगी बेखौफ जीत का दावा नहीं कर पा रहे हैं। अभी ये देखना बाकी है कि सपा यहां से किसे खड़ा करती है। अगर सपा ने भी किसी निषाद पर दांव लगाया तो वोट बंटने का खतरा रहेगा और अगर राधा मोहन दास अग्रवाल की नाराजगी को सपा ने भुना लिया, तब को मुकाबला और कड़ा हो जाएगा। अखिलेश यादव जिस तरह बार-बार योगीजी पर गोरखपुर लौटने का तंज कस रहे हैं, उससे जाहिर होता है कि सपा के हौसले इस बार काफी बुलंद हैं।
वैसे गोरखपुर के अलावा अयोध्या भी भाजपा के लिए आसान सीट ही साबित होती, मगर योगीजी अगर यहां से खड़े होते तो फिर हिंदुत्व के दो केंद्र बन सकते थे। मोदीजी अभी उप्र के साथ-साथ पूरे देश के लिए हिंदू हृदय सम्राट बने हुए हैं। राम मंदिर का शिलान्यास भी उनके हाथों हुआ है और मंदिर निर्माण का श्रेय भी उन्हें ही दिया जा रहा है। ऐसे में अगर भाजपा में ये सवाल उठे कि किसके हैं राम, तो जवाब में केवल अपना नाम ही मोदीजी सुनना चाहेंगे, शायद इसलिए उन्होंने अयोध्या की जगह योगीजी को गोरखपुर भेज दिया।


