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उपेक्षा, बेरोजगारी ने प्रवासियों को दिल्ली से पलायन को मजबूर किया

सरकार ने भले ही प्रवासी मजदूरों से आग्रह किया है कि वे जहां हैं वहीं रहें, लेकिन पैसों, आश्रय के अभाव और उनके प्रति दिखाई गई उदासीनता ने उन्हें राष्ट्रीय राजधानी से पलायन के लिए मजबूर कर दिया है।

उपेक्षा, बेरोजगारी ने प्रवासियों को दिल्ली से पलायन को मजबूर किया
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नई दिल्ली | सरकार ने भले ही प्रवासी मजदूरों से आग्रह किया है कि वे जहां हैं वहीं रहें, लेकिन पैसों, आश्रय के अभाव और उनके प्रति दिखाई गई उदासीनता ने उन्हें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। दक्षिण दिल्ली की सीमा पर स्थित छतरपुर पलायन की ऐसी ही गाथा का केंद्र बनकर उभरा है।

हालांकि, शुरू में जब लॉकडाउन पहली बार लगा तो प्रवासियों ने पैदल कूच करना या आनंद विहार बस स्टेशन पर बड़ी संख्या में इकट्ठा होना शुरू किया, जो उन्होंने भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की अनुपलब्धता के कारण किया था।

दो महीने में चीजें बदल गई हैं।

जहां भविष्य की अनिश्चितता उनकेपलायन की मजबूरी का पहला कारण थी, वहीं रोजगार, भोजन और आवश्यक आपूर्ति की अनुपलब्धता और आखिरकार उनके नियोक्ताओं और मकान मालिकों द्वारा उनके प्रति स्पष्ट उदासीनता दिखाने, किराया भुगतान के लिए पैसे नहीं होने जैसी बातों ने उन्हें जोखिमभरे सफर के लिए विवश कर दिया है।

इन प्रवासियों में से बिहार के रहने वाले और पहले सिलाई के काम में लगे एक शख्स ने आईएएनएस से कहा, "जिस कारखाने में मैं काम करता था, वह लॉकडाउन के कारण बंद हो गया और अभी तक नहीं खुला है। मेरे सारे पैसे खत्म हो गए हैं।"

40-45 साल उम्र के के शख्स ने आगे कहा, "हमारे कारखाने के मालिकों ने हमें बताया है कि यूनिट अगले कुछ महीनों के लिए नहीं खुल रही है। इसलिए, जैसा कि किराए का भुगतान करने और भोजन खरीदने के लिए पैसा नहीं है, मैंने वापस जाने का फैसला किया। जब मैंने सुना कि सरकार प्रवासियों को वापस भेज रही है, तो हम यहां अवसर का लाभ उठाने के लिए आ गए।"

पलायन का एक अन्य कारण कई फैक्ट्री मालिकों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों की छंटनी करना भी है।

रवीन्द्र साहनी एक निर्यात कंपनी की सिलाई यूनिट में काम करते थे। उन्होंने कहा, "हमारी कंपनी ने कहा है कि केवल 33 प्रतिशत कर्मचारी ही काम करेंगे और चूंकि कोई नए आदेश नहीं हैं और केवल लंबित काम पूरा हो रहा है तो हमारी कंपनी ने कहा है कि उनके पास अब मेरे लिए कोई काम नहीं है।"

साहनी ने कहा, "इसके बाद, मैंने दिल्ली सरकार की ओर से प्रवासियों को वापस भेजने की पहल के बारे में सुना, इसलिए मैंने सोचा कि मैं बिहार में अपने गृहनगर मोतिहारी वापस आ जाऊंगा, जिसके कारण मैं इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए सुबह करीब चार बजे छतरपुर आ गया था।"

दिल्ली सरकार बसों और ट्रेनों के माध्यम से प्रवासियों को उनके गृहनगर वापस भेज रही है। जिला मजिस्ट्रेट (दक्षिण) बी.एम. मिश्रा के अनुसार, छात्रों सहित कम से कम 23,000 प्रवासियों को गुरुवार तक उनके घरों को वापस भेजा गया।

इन प्रवासियों की यात्रा की प्रक्रिया और व्यवस्थाओं के बारे में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) दक्षिण ने कहा, "हमने छतरपुर में मंदिर के पास कुछ स्कूलों के अंदर इन प्रवासियों के ठहरने की व्यवस्था की। इस उद्देश्य से मंदिर के अंदर कुछ हॉल का उपयोग किया गया है।"

उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा के लिए समर्पित गाड़ियों की व्यवस्था की जा रही है। सबसे पहले, इन यात्रियों की लिस्टिंग की जाती है और फिर यह पता लगाने के बाद कि कौन किस जगह पर जाएगा, हम फिर मेडिकल स्क्रीनिंग शुरू करते हैं।

हालांकि इन प्रवासियों के पलायन के लिए उद्योगों का बंद होना और आय की कमी मुख्य मुद्दा बनी रही, लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षा की भावना और घर पर होने की राहत भी इस बड़े पैमाने पर पलायन के लिए एक महत्वपूर्ण वजह है।


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