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जरूरत हैः ऐसे लोगों की जो कोविड से बीमार होने को तैयार हों

ऐसे लोगों की जरूरत है जो जानबूझकर कोविड से बीमार होने को तैयार हों. ऐसा दुनिया के पहले ऐसे परीक्षण के लिए किया जाएगा.

जरूरत हैः ऐसे लोगों की जो कोविड से बीमार होने को तैयार हों
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वैज्ञानिक ऐसे स्वयंसेवकों को खोज रहे हैं जो अपने आपको कोरोना वायरस से संक्रमित करवाने को तैयार हों. कोविड के लिए बेहतर वैक्सीन तैयार करने के मकसद से एक परीक्षण को मंजूरी मिली है, जिसके लिए इन स्वयंसेवकों की जरूरत है.

जनवरी 2021 में ब्रिटेन ने कोविड-19 वैक्सीन तैयार करने के लिए इंसानों पर परीक्षण की अनुमति दी थी. इसके तीन महीने बाद अप्रैल में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी का यह परीक्षण शुरू किया गया था. परीक्षण अभी भी अपने पहले चरण में है.

अहम होंगे नतीजे

यूनिवर्सिटी की ओर से जारी एक बयान में बताया गया है कि फिलहाल वैज्ञानिक इस बात पर ध्यान लगा रहे हैं कि संक्रमण के लिए असल में वायरस की कितनी मात्रा काफी होती है. उसके बाद दूसरे चरण में यह जांचा जाएगा कि वायरस से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरोध क्षमता कितनी होनी चाहिए.

यूनिवर्सिटी के अनुसार शोधकर्ता यह पता लगाने के काफी करीब पहुंच चुके हैं कि वायरस की कम से कम मात्रा कितनी हो सकती है जिससे परीक्षण में शामिल आधे लोग संक्रमित हो जाएंगे और उनमें कोविड-19 के मामूली लक्षण नजर आएंगे. उसके बाद वे परीक्षण में हिस्सा ले रहे स्वयंसेवकों को वायरस के मूल वेरिएंट की खुराक देंगे, ताकि पता लगाया जा सके कितनी टी-कोशिकाओं का निर्माण शरीर को संक्रमण से लड़ने में सक्षम कर देगा.

ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में वैक्सीनोलॉजी की प्रोफेसर और इस अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता हेलेन मैक्शेन कहती हैं, "फिर एक नई वैक्सीन के जरिए हम शरीर में प्रतिरोध क्षमता पैदा करेंगे.” उनका कहना है कि इस परीक्षण के नतीजे भविष्य में वैक्सीन को जल्दी और ज्यादा कारगर बनाने में मदद करेंगे.

कोविड के लिए पहली ट्रायल

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी बीमारी से शरीर को बचाने के लिए किसी वैक्सीन को कितनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. अगर वे इसमें कामयाब होते हैं तो वैक्सीन तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षणों की जरूरत काफी हद तक कम हो जाएगी.

दशकों से वैज्ञानिक संक्रामक रोगों के इलाज खोजने के लिए इंसानों पर परीक्षण करते रहे हैं. लेकिन कोविड-19 के मामले में यह इस तरह का पहला परीक्षण है. इस परीक्षण का खतरा यह है कि स्वयंसेवकों को नुकसान भी पहुंच सकता है. हालांकि शोधकर्ता पूरी एहतियात बरत रहे हैं.

परीक्षण के लिए वैज्ञानिकों को ऐसे स्वस्थ लोगों की जरूरत है जिनकी उम्र 18 से 30 साल के बीच हो. उन्हें कम से कम 17 दिन तक एकांतवास में रहना होगा. जिन स्वयंसेवकों में कोविड के लक्षण पैदा होंगे उन्हें रेजेनेरॉन की दवा रोनाप्रीव दी जाएगी.

वीके/एए (रॉयटर्स)


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