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स्कूल में मिले किताबों के अनोखे खजाने को सहजकर रखने की जरुरत

इतिहासकार अरविंद शर्मा का कहना है कि महाराजा उदयभान सिंह को किताबें पढ़ने का शौक था।

स्कूल में मिले किताबों के अनोखे खजाने को सहजकर रखने की जरुरत
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धौलपुर। राजस्थान के धौलपुर में ऐतिहासिक महाराणा स्कूल के 115 वर्षों से बंद कमरों से सोने के पानी से लिखी बेशकीमती ऐतिहासिक किताबों सहित मिले अनोखे खजाने को सहजकर रखने की जरुरत हैं ताकि भविष्य में विद्यार्थियों को इनसे अहम जानकारी मिलती रहे।

इतिहासकार स्कूल में पिछले दिनों मिले इस अनोखे खजाने को लेकर बहुत उत्साहित हैं और उनका कहना है कि इन किताबों को सहजकर रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में इन किताबों से छात्रों को बहुत अह्म जानकारी मिल सके।

इतिहासकार अरविंद शर्मा का कहना है कि महाराजा उदयभान सिंह को किताबें पढ़ने का शौक था। ब्रिटिशकाल में वह जब भी लंदन और यूरोप की यात्रा पर जाते, तब वहां से किताबें जरूर लाते थे। उन्होंने खुद भी अंग्रेजी में सनातन धर्म पर पुस्तक लिखी थी। जिसका विमोचन मदन मोहन मालवीय ने किया था। धौलपुर राज परिवार की शिक्षा में इतनी रुचि थी कि उन्होंने बीएचयू के निर्माण में भी मदन मोहन मालवीय को बड़ी धनराशि प्रदान की थी।

स्कूल के कुछ कमरों को पिछले मार्च में 115 साल बाद खोला गया। इतने सालों तक इन कमरों को कबाड़ समझकर नहीं खोला गया। लेकिन पिछले दिनों जब दो-तीन कमरे खोले गये तो, वहां मौजूद ‘खजाना’ देख लोग को हैरत में आ गये। असल में इन कमरों से इतिहास की ऐसी धरोहरें रखी गई थीं, जो आज बेशकीमती हैं। कमरों से प्रशासन को ऐसी किताबें मिली हैं जो कई सदी पुरानी हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ये किताबें बेशकीमती हैं। इन किताबों में कई ऐसी किताबें हैं, जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है।

स्कूल के दो से तीन कमरों में एक लाख किताबें तालों में बंद मिली। अधिकांश किताबें 1905 से पहले की हैं। महाराज उदयभान दुलर्भ पुस्तकों के शौकीन थे। ब्रिटिशकाल में महाराजा उदयभान सिंह लंदन और यूरोप यात्रा में जाते थे। तब ने इन किताबों को लेकर आते थे। इन किताबों में कई किताबें ऐसी हैं, जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है। 1905 में इन किताबों के दाम 25 से 65 रुपये थी। जबकि उस दौरान सोना 27 रुपये तोला था। ऐसे में मौजूदा समय में इन एक-एक किताब की कीमत लाखों रुपए में आंकी जा रही है। सभी पुस्तकें भारत, लंदन और यूरोप में छपी हुई हैं।

इनमें से एक किताब तीन फुट लंबी है। इसमें पूरी दुनिया और देशों की रियासतों के नक्शे छपे हैं। खास बात यह है कि किताबों पर गोल्डन प्रिंटिग है। इसके अलावा भारत का राष्ट्रीय एटलस 1957 भारत सरकार द्वारा मुद्रित, वेस्टर्न-तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉडर्र लेंड, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में लिखित पांडुलिपियां, ऑक्सफोर्ड एटलस, एनसाइक्लोपीडिया, ब्रिटेनिका, 1925 में लंदन में छपी महात्मा गांधी की सचित्र जीवनी द महात्मा भी इन किताबों में निकली है।

महाराणा स्कूल के प्रधानाचार्य रमाकांत शर्मा ने बताया कि हैरानी की बात यह है कि पिछले 115 सालों में कई प्रधानाचार्य और तमाम स्टाफ बदल गया। लेकिन, किसी ने भी बंद पड़े इन तीन कमरों को खुलवाकर देखना उचित नहीं समझा। मैंने भी इन कमरों को कई बार देखा। जब भी इनके बारे में स्टाफ से पूछा गया तो हर बार एक ही जवाब मिला कि इनमें पुराना कबाड़ भरा पड़ा है। कबाड़ को साफ कराने की नीयत से इन कमरों को खुलवाया तो उनमें ऐतिहासिक धरोहर का खजाना मिला।


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