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लोकतन्त्र के तीनों अंगों के बीच सामंजस्य जरूरी : महाजन

70 वर्ष के दौरान, संविधान ने अपने सुदृढ़ नैतिक आधार के साथ देश में सामाजिक सौहार्द सुनिश्चित किया है

लोकतन्त्र के तीनों अंगों के बीच सामंजस्य जरूरी : महाजन
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नयी दिल्ली।लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आज कहा कि लोगों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए शासन के तीनों अंगों - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका - के बीच सामंजस्य होना चाहिये।

श्रीमती महाजन ने संविधान दिवस के अवसर पर यहाँ विज्ञान भवन में “संवैधानिक अपेक्षाओं के आलोक में देश की उपलब्धियों का आलोचनात्मक विश्लेषण” विषय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित एक सत्र को संबोधित करते हुये विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्य पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ये तीनों अंग लोकतन्त्र के स्तम्भ हैं। इनके एक-दूसरे को सुदृढ़ बनाने से लोगों का तीव्र विकास सुनिश्चित होता है जिससे देश के समग्र विकास के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण होता है।

नीती आयोग द्वारा चिह्नित पिछड़े आकांक्षी जिलों की विशेष विकासात्मक आवश्यकताओं का उल्लेख करते हुये उन्होंने नीति निर्माताओं से तीव्र विकास सुनिश्चित करने के लिए विश्वसनीय कार्यनीति बनाने का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि असीम ऊर्जा से सम्पन्न युवा राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संविधान बनाने के पश्चात् हमने देश का समग्र विकास सुनिश्चित करने की दिशा में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन अब भी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है और भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में उभरा है।

उन्होंने संविधान निर्माताओं डॉ. बी.आर. अंबेडकर, डॉ. राजेद्र प्रसाद (प्रथम राष्ट्रपति), पंडित जवाहर लाल नेहरू (प्रथम प्रधानमंत्री), सरदार वल्लभ भाई पटेल (प्रथम उप प्रधानमंत्री) और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिकाओं का स्मरण करते हुये कहा कि संविधान सभा के सदस्य देश के विभिन्न हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते थे। वे अत्यंत अनुभवी, दूरदर्शी और लोकतांत्रिक मूल्यों से सरोकार रखते थे। उन्होंने इस बात का स्मरण किया कि डॉ. प्रसाद ने कहा था कि यदि निर्वाचित व्यक्ति सक्षम, चरित्रवान तथा सत्यनिष्ठा वाले होंगे, तो वे संविधान की मूल भावना का समुचित कार्यान्वन करेंगे।

श्रीमती महाजन ने इस बात पर भी जोर दिया कि संविधान की प्रस्तावना “हम, भारत के लोग...” शब्दों से शुरू होती है और विकास प्रक्रिया में व्यक्तिवाद के स्थान पर सामूहिक कल्याण के महत्व पर जोर देती है। उन्होंने कहा कि पिछले 70 वर्ष के दौरान, संविधान ने अपने सुदृढ़ नैतिक आधार के साथ देश में सामाजिक सौहार्द सुनिश्चित किया है। छूआछूत की प्रथा समाप्त कर दी गई है और महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि‍ क्षेत्रों में संसद द्वारा बनाये गये प्रगतिशील कानूनों और सरकार द्वारा उनके कार्यान्वयन से भारी सफलता प्राप्त हुई है। उन्होंने चेताया कि इन उपलब्धियों से पूर्णतः संतुष्ट होना सही नहीं होगा क्योंकि अब भी सुधार और विकास की अत्यधिक संभावना है।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संसद में अध्यक्षीय शोध कदम (अशोक) की शुरुआत देश में विकासपरक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ परस्पर संवाद हेतु सांसदों को एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहा है।


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