राजनैतिक शिष्टाचार की जरूरत
प. बंगाल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने दक्षिण 24 परगना जिले के मथुरापुर में आयोजित एक रैली में राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर चिंता जतलाते हुए कहा कि- 'जब आपके बच्चे स्कूल से वापस आ रहे हैं तो वे कुछ भी जवाब नहीं दे सकते हैं

प. बंगाल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने दक्षिण 24 परगना जिले के मथुरापुर में आयोजित एक रैली में राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर चिंता जतलाते हुए कहा कि- 'जब आपके बच्चे स्कूल से वापस आ रहे हैं तो वे कुछ भी जवाब नहीं दे सकते हैं। आप उन्हें थप्पड़ मार रहे हैं और उनसे सवाल कर रहे हैं कि स्कूल में क्या पढ़ा है। अपने बच्चों को थप्पड़ मारने के बजाय, ममता बनर्जी को थप्पड़ मारें क्योंकि उन्होंने शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया है।' मूलत: बांग्ला में दिए इस बयान को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है और इस पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच टकराव और बढ़ चुका है।
विपक्षी दल का मुखिया होने के नाते सुकांत मजूमदार को सरकार के फैसलों की समीक्षा करने, नीतियों की आलोचना करने और कमजोरियों की ओर सरकार का ध्यान दिलाने का पूरा हक है। लोकतंत्र में इसी लिहाज से मजबूत विपक्ष को जरूरी भी माना गया है। लेकिन ये मजबूती मौखिक नहीं व्यावहारिक तौर पर नजर आनी चाहिए। अपने राज्य की मुख्यमंत्री को थप्पड़ मारने जैसे बयान देना विपक्षी धर्म का पालन नहीं है, बल्कि यह विरोधी के लिए नफरत का इज़हार है। कुछ ऐसी ही नफरत प.बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व तृणमूल कांग्रेसी सुवेंदु अधिकारी ने राहुल गांधी के लिए दिखाई।
गौरतलब है कि श्री गांधी इन दिनों भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर हैं। यात्रा अभी बिहार में है, इससे पहले प.बंगाल और पूर्वोत्तर में थी। असम में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के शासन में पनपे भ्रष्टाचार पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने बताया था कि कैसे हरेक संसाधन पर कुछ मुठ्ठी भर लोगों का ही कब्जा हो गया है और इसके उदाहरण के लिए उन्होंने बताया था कि जिस स्टोव में आप सुबह चाय गर्म करने के लिए कोयला जलाते हो, वो कोयला भी किसका है। राहुल गांधी एक व्यापक मुद्दे को जनता के सामने रख रहे थे, लेकिन सिगड़ी या अंगीठी की जगह उन्होंने स्टोव शब्द का इस्तेमाल किया तो भाजपा ने इसे फिर राहुल गांधी की छवि खराब करने के लिए भुनाना शुरु कर दिया।
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने श्री गांधी को सोशल मीडिया पर घेरते हुए लिखा- स्टोव पर कोयला? आपके आलू से सोना बनाने वाली बात से हम उबर ही रहे थे कि आपने स्टोव में कोयला डालकर हमें असमंजस में डाल दिया। इसके बाद और भी कई भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाया। भाजपा के ट्विटर हैंडल पर इसे डाला गया और मुख्यधारा के मीडिया ने भी बिना जांच-पड़ताल राहुल गांधी को कमअक्ल साबित कर दिया। जबकि ऑक्सफोर्ड शब्दकोष के मुताबिक स्टोव का एक अर्थ धातु का एक बंद बक्सा है, जिसमें कोयला, लकड़ी आदि डालकर गर्म किया जाता है।
दरअसल भाजपा और उसके समर्थक पत्रकारों के लिए मुद्दा सिगड़ी या अंगीठी कहने की बजाए स्टोव कहने का था ही नहीं, उन्हें किसी भी तरह राहुल गांधी को नीचा दिखाना था। इसी राजनीति के तहत सुवेंदु अधिकारी ने भी राहुल गांधी पर कैमरे के सामने बरसते हुए कहा कि 'मैं पिछले चार दिनों से लगातार राहुल गांधी के बारे में सुन रहा हूं। वह कौन हैं?' कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि वह सुबह चाय बनाने के लिए चूल्हे पर कोयले के टुकड़े डालते हैं. ये कोई तथ्य है कि कोयला चूल्हे पर डाला जा सकता है, ये मेरी जानकारी या समझ से परे था।' इसी बयान के बीच में श्री अधिकारी ने राहुल गांधी के लिए एक अपशब्द का प्रयोग किया, जिसे बीप की आवाज के जरिए वीडियो में दबाया गया। कल्पना की जा सकती है कि देश की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर पार्टी के नेता ने कैसी भाषा का इस्तेमाल किया होगा, जिसे सार्वजनिक तौर पर सुना भी नहीं जा सकता।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर इस बात की शिकायत करते हैं कि उन्हें उनके विरोधी खूब कोसते हैं। अपनी आलोचना को श्री मोदी ने गाली शब्द का नाम दिया है और वे कह चुके हैं कि ये गालियां उनके लिए टॉनिक का काम करती हैं। प्रधानमंत्री की इस बात में कुछ गलत नहीं है, क्योंकि जब भी उन्हें भला-बुरा कहा जाता है, उन्हें लोगों की सहानुभूति और अधिक मिल जाती है। शायद इसी सहानुभूति को वे टॉनिक मानते हैं। हालांकि श्री मोदी की आलोचना जिन भी शब्दों के साथ की गई हो, याद नहीं पड़ता कि किसी शब्द को बीप के जरिए दबाया गया हो। हालांकि प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की आलोचना भी उसके कार्यों और फैसलों को लेकर ही होनी चाहिए और वह भी मर्यादा में रहकर। राहुल गांधी भी श्री मोदी के कड़े आलोचक हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा उनके पद और अपने शब्दों की मर्यादा का ध्यान रखा है। बल्कि संसद के भीतर तो वे श्री मोदी से गले तक मिल चुके हैं, ताकि नफरत और नाराजगी दूर हो और स्वस्थ वातावरण लोकतंत्र बना रहे। लेकिन राहुल गांधी के इस आचरण को भी तुच्छ राजनीति और भद्दे मजाक में कैद कर लिया गया।
बीते 12-15 बरसों में राजनीति इसी संकीर्ण मानसिकता का शिकार हो गई है, जिसमें विरोधी के लिए सम्मान नहीं है और केवल नफरत का इजहार है। चाहे सुकांत मजूमदार हों या सुवेंदु अधिकारी, दोनों के बयान राजनैतिक शिष्टाचार के खिलाफ हैं। हालांकि, ये पहली बार नहीं है, जब राजनैतिक विरोधियों पर शाब्दिक हिंसा की गई हो। चुनावी मौसम में ऐसे प्रकरणों की लंबी सूची तैयार हो जाती है। तब निर्वाचन आयोग की आचार संहिता और लोकतंत्र के तकाजे दोनों धरे के धरे रह जाते हैं। नफरती जुबान का दायरा राजनेताओं तक ही सीमित नहीं है, धर्म की ठेकेदारी करने वाले और कट्टरता के पोषक भी ऐसी ही भाषा बोलते हैं। फर्क यही है कि पहले अपशब्दों के इस्तेमाल में थोड़ी झिझक दिखाई जाती थी, अब वह उतारकर दूर फेंक दी गई है। कभी-कभार इसकी शिकायत अदालत में होती है, तो वहां भी अब यह देखा जाता है कि ऐसी बातें मुस्कुराकर कही गईं या क्रोध में या फिर अभिव्यक्ति के अधिकार की आड़ ले ली जाती है।
राजनेताओं के आचरण का व्यापक असर आम जनमानस पर पड़ता है। जब नेता अपशब्द और हिंसक अभिव्यक्ति को सहजता में लेंगे, तो समाज भी इसका शिकार होगा। नफरत की आग ऐसे ही पनपती है और जब फैलती है तो फिर विरोधी या समर्थक का भेदभाव नहीं करती। इसलिए राजनैतिक शिष्टाचार को हर हाल में बनाए रखना होगा, अन्यथा सबका नुकसान होगा।


