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प्रति टिकट एक रुपये कमीशन पर काम करने को मजबूर हैं जेटीबीएस के सेवक

 उत्तर भारत में जनसाधारण टिकट बुकिंग सेवा (जेटीबीएस) के करीब 12 हजार सेवक महंगाई के इस दौर में पिछले 10 से 12 सालों से प्रति टिकट एक रुपये कमीशन पर काम करने को मजबूर हैं

प्रति टिकट एक रुपये कमीशन पर काम करने को मजबूर हैं जेटीबीएस के सेवक
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नई दिल्ली। उत्तर भारत में जनसाधारण टिकट बुकिंग सेवा (जेटीबीएस) के करीब 12 हजार सेवक महंगाई के इस दौर में पिछले 10 से 12 सालों से प्रति टिकट एक रुपये कमीशन पर काम करने को मजबूर हैं। अखिल भारतीय जेटीबीएस संघ के महासचिव जलील अहमद ने कहा कि बदलते वक्त में रेलवे के नियमों के कारण घर चलाना मुश्किल हो रहा है और अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो यह सेवक बेरोजगार होने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

जेटीबीएस संघ देश भर में रेलवे बूथों के माध्यम से आम जनता को रेलवे टिकट मुहैया कराने का काम करता है, जिस पर प्रत्येक टिकट पर उन्हें एक रुपया कमीशन मिलता है।

पिछले 10 से 12 सालों में रेलवे का किराया कई बार बढ़ चुका है लेकिन आलम यह है कि इन सेवकों का कमीशन आज भी वही प्रत्येक टिकट पर एक रुपये बना हुआ है। इसी बात से आहत संघ के कर्मचारी अब रेलवे से अपना हक मांगने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं।

संघ के महासचिव जलील अहमद ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "हमारा जेटीबीएस संघ रेलवे के अधीन काम करता है जिसमें हमें प्रत्येक टिकट एक रुपया मिलता है उसमें से प्रत्येक कर्मचारी की तनख्वाह, दुकान का किराया और बिजली का बिल हमें अदा करना होता है।

जब प्लेटफार्म टिकट दो रुपये की हुआ करती थी तो उसमें से एक हमें बचता था लेकिन अब उसका किराया बढ़कर 10 रुपये हो चुका है साथ ही ट्रेनों का किराया 12 बार संशोधित हो चुका है लेकिन हमें आज भी एक रुपया ही मिल रहा है।"

उन्होंने कहा, "रेलवे ने हमारी स्थिति पर गौर तक नहीं किया। रेलवे के एक कर्मचारी की तनख्वाह हजारों रुपयों में होती है, इसके अलावा उसे फंड, बोनस, ग्रेच्यूटी और सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन भी मुहैया कराई जाती है लेकिन हमारे लिए वही एक रुपया ही चलाया जा रहा है।"

उन्होंने संघ की मुश्किलों को गिनाते हुए कहा, "पहले की तुलना में पूरी प्रणाली बदली जा चुकी है। ऑनलाइन टिकटें बनने से भी हमारा काम प्रभावित हुआ है और एक रुपये पर काम करना अब बेहद मुश्किल हो गया है।"

इस मुश्किल दौर में जेटीबीएस संघ ने रेलवे से अपनी तीन मांगे रखी है जिसमें प्रत्येक टिकट पर 10 रुपये या टिकटों की कुल बिक्री का पांच प्रतिशत कमीशन। लाइसेंस का नवीनीकरण प्रतिवर्ष की बजाय पहले की तरह तीन वर्ष में होना चाहिए और टिकट सेवकों की टिकट बिक्री प्रतिदिन 1200 टिकट से अधिक होने पर ही नई विन्डो का लाइसेंस दिया जाए।

जलील अहमद ने कहा, "हम लोग ग्राहकों से पैसा नहीं मांगना चाहते। जब हम कार्य रेलवे का कर रहे हैं तो रेलवे को हमारे लिए कुछ करना चाहिए।"

निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां 15 जेटीबीएस बूथ हैं। हमने मांग की है कि प्रतिदिन 1200 से ज्यादा टिकट हों उसी के बाद किसी दूसरे को विंडो दी जाए। ऐसा नहीं होने पर जिसके पास केवल 200 ही टिकटें हैं तो उसे दूसरे व्यक्ति के आने से घाटा होगा, जिसके मद्देनजर यह मांग उठाई गई है।

महासचिव अहमद ने कहा, "इन सब दिक्कतों से हम पहले भी रेल मंत्रियों को अवगत करा चुके हैं लेकिन सिर्फ आश्वासनों के हमें कुछ नहीं मिला। 2006 के बाद से हमने लगातार इसे बढ़ाने की मांग की लेकिन आजतक इन मांगों पर गौर नहीं किया गया।"

दिल्ली के शौचालयों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आज उनका प्रयोग करने पर पांच से 10 रुपये लिए जाते हैं लेकिन आज भी हमें वहीं एक रुपया दिया जा रहा है। उस एक रुपये में प्रिंटर, कागज सब लागत हमारी होती है।

वहीं संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.एस. कटियार ने कहा, "उपरोक्ता मांगों को लेकर रेल मंत्रालय को पत्र लिखा गया लेकिन इस पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि टिकट सेवकों की स्थिति बड़ी दयनीय है जबकि उनकी रोजी-रोटी का जरिया मात्र टिकट बेचना है। प्रति टिकट एक रुपया कमीशन वर्तमान महंगाई के दौर में न्यायोचित नहीं है।"

अहमद ने अपनी मांगों को लेकर आगे राष्ट्रीय स्तर पर जाने की बात कही, उन्होंने कहा कि अगर हामरी मांगे मान ली जाती है तो ठीक है नहीं तो हम घरना प्रदर्शन का सहारा लेंगे और उससे भी बात नहीं बनती तो काम छोड़ने के लिए मजबूर होंगे।


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