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संसदीय बैठक में दिखी एनडीए की खींचतान

बीजेपी ने घोषणा की है कि नरेंद्र मोदी रविवार नौ जून को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. बीजेपी सरकार बनाने को लेकर हर प्रकार के संदेह को शांत कर देना चाह रही है. लेकिन स्थिति उतनी स्थिर है नहीं जितनी दिखाई जा रही है

संसदीय बैठक में दिखी एनडीए की खींचतान
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एनडीए की संसदीय बैठक में घटक दलों के नेताओं की मौजूदगी में "मोदी, मोदी" के नारे लगे, तो चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि जीत "सबकी है." लेकिन सरकार बनने से पहले एनडीए के अंदर बीजेपी और अन्य दलों के बीच क्यों हो रही है खींचतान?

बीजेपी ने घोषणा की है कि नरेंद्र मोदी रविवार नौ जून को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. बीजेपी सरकार बनाने को लेकर हर प्रकार के संदेह को शांत कर देना चाह रही है. लेकिन स्थिति उतनी स्थिर है नहीं जितनी दिखाई जा रही है.

मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि सबसे पहले तो मोदी को शपथ शनिवार को ही लेनी थी, लेकिन कई कारणों की वजह से इसे एक दिन टालना पड़ा. पहला, बीजेपी के संसदीय बोर्ड की बैठक अभी तक नहीं हुई है, जो सरकार बनाने की प्रक्रिया के रास्ते में एक आवश्यक औपचारिकता है.

समर्थन की कीमत

लेकिन यह बैठक क्यों नहीं हुई है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है. दूसरा, एनडीए के घटक दलों के साथ सरकार की रूपरेखा भी अभी तक तय नहीं हो पाई है. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि एनडीए के सदस्यों की कई मांगें हैं जो बीजेपी ने अभी तक मानी नहीं हैं.

जैसे, दावा किया जा रहा है कि नितीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी दोनों ही पार्टियां लोकसभा में स्पीकर का पद अपने पास रखने की इक्षुक हैं. लोकसभा के सभी मामलों में स्पीकर का फैसला अंतिम होता है. यहां तक कि स्पीकर के फैसले पलटने की सुप्रीम कोर्ट की शक्ति भी सीमित है.

1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जब एनडीए सरकार बनी थी तब टीडीपी ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था और बदले में स्पीकर का पद हासिल कर लिया था.

टीडीपी के जीएमसी बालयोगी को स्पीकर बनाया गया था. फिर जब वाजपेयी सरकार एक वोट से विश्वास मत हार गई थी तो माना जाता है कि उसमें स्पीकर बालयोगी की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

इसके अलावा इस बार एनडीए गठबंधन की सदस्य पार्टियों में से किसको कौन सा मंत्रालय मिलेगा यह भी अभी तय नहीं हुआ है. कुछ रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि कुछ दल रेल मंत्रालय के अलावा गृह और वित्त मंत्रालय भी मांग रहे हैं.

दबाव के हथकंडे

यह दोनों मंत्रालय रक्षा और विदेश मंत्रालय के साथ वो चार चोटी के मंत्रालय हैं जिनके मंत्री कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) का हिस्सा होते हैं. यह एक शक्तिशाली समिति होती है जिसके सदस्य मिलकर सरकार के बड़े फैसले लेते हैं.

पिछले 10 सालों में बीजेपी ने ना तो स्पीकर पद किसी दूसरे दल को दिया और ना सीसीएस वाले चारों मंत्रालय. इसलिए इस बार भी बीजेपी ये सभी पद अपने पास ही रखने का पूरा जोर लगा सकती है. लेकिन घटे हुए संख्याबल के सहारे वो किस हद तक मोल भाव कर पाएगी, यह देखना होगा.

शुक्रवार को पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में हुई बैठक में दोनों पक्षों के बीच यह खींचतान देखने को मिली. वैसे तो बैठक में औपचारिक रूप से मोदी को एनडीए के संसदीय ब्लॉक् का नेता घोषित किया गया और प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम का अनुमोदन भी किया गया.

लेकिन एक दूसरे पर दबाव बनाने के बीजेपी और अन्य दलों की कोशिशें भी नजर आईं. बैठक एनडीए की थी और सभी दलों के नेता मोदी की बगल में बैठे सभी का भाषण सुन रहे थे, तभी बीजेपी के अधिकतर मंत्री और सांसद "मोदी, मोदी, मोदी" के नारे लगाने लगे.

फिर जब चंद्रबाबू नायडू की बोलने की बारी आई तो पहले तो उन्होंने एनडीए की जीत को "सब की जीत" बताया. उसके बाद मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में चुनावी अभियान के दौरान उन्हें ना सिर्फ मोदी, बल्कि गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा, सड़क परिवहन और राज्यमार्ग मंत्री नितिन गडकरी और तमाम नेताओं द्वारा की गई जनसभाओं का "लाभ मिला."

नायडू ने "राष्ट्रहित और राज्यों की आकांक्षाओं के बीच संतुलन" बनाने की जरूरत पर और "समाज के हर तबके के समग्र विकास" की जरूरत पर भी जोर दिया.

इसके विपरीत नितीश कुमार ने मोदी की जम कर प्रशंसा की, उनके पैर छूने की कोशिश की और कहा कि वो तो चाहते थे कि मोदी आज ही शपथ ले लें. अब देखना यह है कि मंत्रालयों के आबंटन की घोषणा कब होती है


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