Top
Begin typing your search above and press return to search.

यूपीए-एनडीए की रस्साकशी के बीच एनसीपी की अनबूझ पहेली

2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में एक ओर तो कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में कांग्रेस को समर्थन देने वाले विपक्षी दलों संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (यूपीए) की दो दिवसीय बैठक सोमवार को प्रारम्भ हुई

यूपीए-एनडीए की रस्साकशी के बीच एनसीपी की अनबूझ पहेली
X

2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में एक ओर तो कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में कांग्रेस को समर्थन देने वाले विपक्षी दलों संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (यूपीए) की दो दिवसीय बैठक सोमवार को प्रारम्भ हुई

वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में मंगलवार की शाम को भाजपा प्रणीत राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (एनडीए) भी अपने सहयोगी दलों के साथ विचार-विमर्श करने जा रहा है। यह रस्साकशी चुनावी तैयारियों के मद्देनज़र कोई सामान्य घटनाक्रम इसलिये नहीं रह गया है क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने सबको उलझाकर रख दिया है।

इसका कारण है पार्टी के उस धड़े का जाकर दल के सुप्रीमो शरद पवार से रविवार को मुंबई के यशवंतराव चव्हाण सेंटर में जाकर मुलाकात करना। ये वे 19 विधायक हैं जो हाल ही में पार्टी से अलग होकर शिवसेना (शिंदे गुट) एवं भाजपा की सरकार में शामिल हो गये हैं। पवार के भतीजे अजित पवार न केवल भाजपा के देवेन्द्र फडनवीस की तरह उप मुख्यमंत्री बन बैठे हैं वरन वित्त जैसा महत्वपूर्ण विभाग पाकर इतने शक्तिशाली हो गये हैं कि दोनों उप मुख्यमंत्री अब स्वयं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिये खतरा बन गये हैं।

बहरहाल, सोमवार को अजित पवार अपने प्रमुख सहयोगियों, जो कभी शरद पवार के सर्वाधिक विश्वसनीय लोगों में शुमार थे, प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे, दिलीप वलसे पाटिल, छगन भुजबल आदि सहित सभी विधायकों के साथ एनसीपी प्रमुख से मिल तो आये पर अनेक पहेलियां भी पीछे छोड़ आये हैं। बेशक, इस बैठक से आशंकित एनडीए उन्हें सुलझाने के लाख प्रयास करती रहे पर कई बातों के कोई जवाब नहीं हैं।

मसलन, मुलाकात करने वाले विधायकों का यह कहना कि 'बिना समय लिये हम लोग अपने भगवान (पवार) से मिलने गये थे। उन्होंने 'भगवान' का आशीर्वाद लिया और कहा कि वे उनका बहुत सम्मान करते हैं तथा चाहते हैं कि पार्टी एकजुट रहे और वे उनका मार्गदर्शन करते रहें।' ऐसा कहना एक तरह से यह इंगित करता है कि पार्टी अभी वास्तविक रूप से दो फाड़ नहीं हुई है। सम्भवत: सुविधा की राजनीति के तहत ये लोग सरकार में शामिल हो गये हैं ताकि केन्द्रीय अन्वेषण एजेंसियों की जांच से बच सकें। सभी जानते हैं कि अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल आदि की व्यावसायिक गतिविधियों पर इन एजेंसियों की नज़र है तथा इनमें से कुछ जेल में समय भी गुजार चुके हैं। फिर, पवार की चुप्पी एनडीए को बेचैन करने के लिये काफी है। तिस पर एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल का यह कहना भी महाराष्ट्र सरकार को डांवाडोल करने के लिये पर्याप्त हो सकता है कि 'उनके साथ 19 विधायक अब भी हैं और जो विधायक पार्टी को छोड़कर चले गये हैं वे चाहें तो लौट सकते हैं। उनके लिये एनसीपी के दरवाजे खुले हैं।'

उनके बारे में तमाम तरह की अविश्वसनीयता व संदेहों के बावजूद पवार के बारे में कहा जाता है कि केन्द्रीय गृह मंत्री व भाजपा के तथाकथित चाणक्य अमित शाह का मुकाबला अगर कोई कर सकता है तो पवार ही क्योंकि सामान्य व्यक्ति जहां तक सोच सकता है वहां से तो उनका काम शुरू होता है। लोग इस बात को भूले नहीं हैं कि किस प्रकार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद पवार ने अपने भतीजे के खिलाफ आपराधिक मामलों में जांच एजेंसियों की क्लीन चिट प्राप्त कर भाजपा को सरकार बनाने में मदद की थी। फडनवीस तब सीएम बने थे और अजित तब भी उप मुख्यमंत्री।

माकूल अवसर आने पर उन्होंने शिवसेना के उद्धव ठाकरे को एनसीपी व कांग्रेस का समर्थन जुटाकर मुख्यमंत्री बना दिया था। महाविकास आघाड़ी के नाम से करीब ढाई साल तक सरकार चली भी। यह अलग बात है कि शिंदे की महत्वाकांक्षा एवं भाजपा की शह पर यह सरकार जाती रही। फिर भी सत्य यही है कि महाराष्ट्र की राजनीति में पवार का दबदबा बना हुआ है और वे पवार फिलहाल कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए का हिस्सा हैं। जो धड़ा अलग हुआ है, वह अपने पूर्व कहें या अब भी सुप्रीमो बने हुए शरद पवार साहेब के कहे में है और उनके आदेश पर कुछ भी कर सकता है।


यही संदेश जहां एक तरफ महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर बना सकता है वहीं एनडीए इस भ्रम में बनी रहेगी कि इन विधायकों का रुख उसके प्रति क्या होगा। इस बैठक से भाजपा की यह खुशी तो निश्चित ही काफूर हो गयी होगी कि एनसीपी टूट चुकी है। पवार की भूमिका यूपीए की बैठक को लेकर क्या रहेगी, यह देखना भी दिलचस्प होगा। क्या पवार की योजना के तहत ही उसके कुछ विधायक टूटकर शिवसेना (शिंदे गुट) व भाजपा की महाराष्ट्र सरकार में शामिल हुए हैं? क्या लोकसभा चुनाव तक उनके प्रमुख नेताओं को जांच एजेंसियों की वक्र दृष्टि से बचाये रखने के लिये यह खेल खेला गया है? या फिर भाजपा को भुलावे में डालकर पवार ने 2024 में बड़ी भूमिका के लिये खुद को मुक्त कर लिया है? ऐसे अनेक सवाल हैं जो पहेलियां बनकर भाजपा को परेशान करते रहेंगे। बहरहाल, दो प्रमुख खेमों- यूपीए व एनडीए की आपसी खींचतान के बीच एनसीपी की भूमिका रहस्यमय ही सही परन्तु महत्वपूर्ण बन गयी है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it