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नक्सलवाद- आखिर क्या है समाधान ?

छत्तीसगढ़ का बस्तर और सीमावर्ती राज्य महाराष्ट्र का गढ़चिरौली एक बार फिर नक्सल घटना के कारण सुर्ख़ियों में है

नक्सलवाद- आखिर क्या है समाधान ?
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फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं

छत्तीसगढ़ का बस्तर और सीमावर्ती राज्य महाराष्ट्र का गढ़चिरौली एक बार फिर नक्सल घटना के कारण सुर्ख़ियों में है। छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों ने 25 जवानों की हत्या कर दी, तो वही गढ़चिरौली में लैंडमाईन ब्लास्ट में एक पुलिसकर्मी शहीद हुआ, जबकि 19 जवान घायल हो गए। नक्सल समस्या पिछले 40 वर्षों से बनी हुई है। सरकार समय-समय पर इसके खात्मे का भरोसा दिलाती है, तो दूसरी ओर नक्सली अपनी वारदातों से नयी चुनौती पेश करते रहते हैं। https://www.youtube.com/watch?v=Krkc04L6Zuw

24 अप्रैल की दोपहर जब केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की 74वीं बटालियन के जवान रोड ओपनिंग के लिए निकले, तो माओवादियों ने घात लगाकर उन पर हमला किया, जिसमें 25 जवान शहीद हुए, जबकि 6 घायल हैं। देश के नक्सल प्रभावित सौ जिलों में से 35 में नक्सलियों का प्रभाव अधिक है और सुकमा उनमें से एक है। सीआरपीएफ पर हुआ हमला इस साल का अब तक सबसे बड़ा हमला है। जिस चिंतागुफा इलाके में इस बार हमला हुआ है, पहले भी ऐसे हमले हो चुके हैं। 2010 में इसी इलाके में सीआरपीएफ के 76 जवानों को नक्सलियों ने मार डाला था। दिसंबर 2014 में यहां सीआरपीएफ की बटालियन पर ही हमला हुआ था, जिसमें 2 अफसर व 11 जवान शहीद हुए थे। इसके बाद इसी वर्ष मार्च में यहां हमला हुआ, जिसमें 15 जवान शहीद हुए थे। ताड़मेटला से चिंतागुफा के बीच एक झीरम कांड भी हो चुका है जिसमें दर्जन भर कांग्रेस के बड़े नेताओं सहित 31 लोगों की हत्या नक्सलियों ने की थी। 2012 में अप्रैल में ही तत्कालीन कलेक्टर अलेक्स पाल मेनन को माओवादियों ने अगवा किया था, जिन्हें मध्यस्थों की मदद से रिहा करवाया गया था।
एक के बाद एक नक्सल हमलों के कारण सुकमा अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर आतंक के नए गढ़ के रूप में स्थापित हो गया है। सरकार पिछड़े हुए बस्तर में विकास का नया पाठ पढ़ाने का दावा करती है, लेकिन यह विडंबना है कि बस्तर का नाम विकास कार्यों के संदर्भ में कम और नक्सल हमलों के संदर्भ में अधिक लिया जाता है। सरकार की तमाम सख्ती के बावजूद माओवादी पीछे नहीं हट रहे हैं, बल्कि बाकायदा लड़ाई का ऐलान कर रहे हैं।

माओवादियों की ओर से एक ऑडियो क्लिप के जरिए बयान जारी किया गया है, जिसमें माओवादियों के प्रवक्ता विकल्प ने कहा है कि नक्सलियों ने यह हमला सुरक्षा बलों की ओर से की जा रही कार्रवाई के विरोध में किया है। माओवादियों का कहना है कि पिछले साल छत्तीसगढ़ में मारे गए 9 माओवादियों और फिर ओडिशा में कथित रूप से 9 ग्रामीणों समेत कुल 21 लोगों के मारे जाने के खिलाफ़ ये कार्रवाई की गई है। नक्सलियों ने यह भी कहा है कि यह हमला भेज्जी में पिछले 11 मार्च को किए गए हमले की ही एक और कड़ी है। इस साल वह सुरक्षा बलों को परास्त करेंगे।

देश में और छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद कैंसर की तरह फैल चुका है और इसका अहसास प्रथम स्टेज पर ही सत्ताधीशों को हो गया था। लेकिन इस बीमारी को टालते रहने का नतीजा यह हुआ है कि अब यह पूरी तरह जानलेवा बन चुका है। विडंबना यह है कि अब भी इसका इलाज सही दिशा में नहीं हो रहा है। सरकारें अब तक यही तय नहीं कर पाई हैं कि नक्सली समस्या कानून व्यवस्था की समस्या है या फिर सामाजिक-आर्थिक समस्या? लालकृष्ण आडवाणी के गृहमंत्री रहते 'वामपंथी चरमपंथ’ का शब्द पैदा हुआ जबकि मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि यह देश की सबसे बड़ी समस्या है। सरकारें बदल गईं, लेकिन नक्सल समस्या जस-की-तस है, बल्कि बढ़ गई है। आखिर इसका इलाज क्या है? देश कब तक इस तरह के गृहयुद्ध में फंसा रहेगा? कब तक आदिवासी दो पाटों में पिसते रहेंगे और कब तक हमारे जवान सरकार की गलतियों का खामियाजा भुगतते रहेंगे


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