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दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश की तैयारी

भारत की राजधानी दिल्ली 4 से 11 जुलाई के बीच पहली कृत्रिम बारिश के लिए तैयार हो रही है. शहर की दम घोंटती हवा को साफ करने के लिए ऐसी बारिश की बात लंबे समय से चल रही थी

दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश की तैयारी
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भारत की राजधानी दिल्ली 4 से 11 जुलाई के बीच पहली कृत्रिम बारिश के लिए तैयार हो रही है. शहर की दम घोंटती हवा को साफ करने के लिए ऐसी बारिश की बात लंबे समय से चल रही थी.

दिल्ली की दमघोंटू हवा से राहत दिलाने के लिए सरकार ने आखिरकार कृत्रिम बारिश का फैसला कर लिया है. राजधानी में पहली बार कृत्रिम बारिश कराई जाएगी. पर्यावरण मंत्री मंजीन्दर सिंह सिरसा ने शनिवार को ऐलान किया कि 4 से 11 जुलाई के बीच क्लाउड सीडिंग तकनीक के जरिए कृत्रिम बारिश का प्रयास किया जाएगा, बशर्ते मौसम अनुकूल रहा.

दिल्ली में गर्मियों और सर्दियों दोनों ही मौसमों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है. खासतौर पर अक्टूबर-नवंबर के दौरान पराली जलाने, गाड़ियों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं से हालात गंभीर हो जाते हैं. ऐसे में बारिश, चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, वायु में मौजूद महीन कणों को नीचे गिराने में मदद करती है, जिससे हवा थोड़ी साफ होती है.

कैसे होगी कृत्रिम बारिश?

कृत्रिम बारिश को अंजाम देने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल होता है. इसमें यह देखा जाता है कि आसमान में पहले से नमी से भरे बादल मौजूद हैं या नहीं. यदि पर्याप्त नमी हो, तो सिल्वर आयोडाइड, आयोडाइज्ड नमक और रॉक सॉल्ट जैसे कणों को हवाई जहाज के जरिए उन बादलों में छोड़ा जाता है.

भारत के आईआईटी कानपुर की टीम ने इस तकनीक को विशेष रूप से दिल्ली के लिए विकसित किया है. योजना के अनुसार पांच उड़ानें होंगी जिनमें संशोधित सेसना विमान का इस्तेमाल होगा. हर उड़ान करीब 90 मिनट चलेगी और 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग की जाएगी. क्लाउड सीडिंग के लिए फ्लेयर-बेस्ड सिस्टम से रसायन बादलों में छोड़े जाएंगे.

इन कणों का काम है बादलों के अंदर मौजूद जलकणों को बड़ा और भारी बनाना, ताकि वे वर्षा के रूप में जमीन पर गिरें. सरकार ने इस पूरी परियोजना के लिए 3.21 करोड़ रुपये का बजट तय किया है. दिल्ली सरकार ने इस उड़ान योजना को भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) को भेजा है ताकि मौसम और तकनीकी स्थिति की तालमेल बैठाया जा सके. साथ ही, नागर विमानन महानिदेशालय से एक वैकल्पिक विंडो की भी मांग की गई है, ताकि यदि मौसम खराब हो तो परीक्षण को आगे बढ़ाया जा सके.

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

इस घोषणा के तुरंत बाद दिल्ली की राजनीति गरमा गई. आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया. उन्होंने पूछा, "जब मानसून आने ही वाला है, तो कृत्रिम बारिश की जरूरत क्यों पड़ी? क्या यह लोगों की मदद के लिए है, या किसी को फायदा पहुंचाने या सस्ती लोकप्रियता पाने का प्रयास?”

आम आदमी पार्टी का आरोप है कि पिछली सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार से कई बार मंजूरी मांगी थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

इसके जवाब में पर्यावरण मंत्री सिरसा ने कहा, "हमने ही सबसे पहले समझौता पत्र साइन किया, भुगतान किया, और जरूरी अनुमतियां लीं. चार महीने में हम परीक्षण के मुकाम तक पहुंच गए. बात करने वालों ने सिर्फ दावे किए, हमने काम करके दिखाया.”

सिरसा ने यह भी स्पष्ट किया कि यह पहल मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में शुरू की गई है, और यह दिल्ली में शहरी प्रदूषण से निपटने की दिशा में पहला व्यावहारिक प्रयास है.

दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर के लिए यह प्रयोग महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अगर बादलों में पर्याप्त नमी नहीं है या मौसम साथ नहीं देता, तो यह तकनीक सीमित असर ही दिखा सकती है. लेकिन अगर यह सफल होता है, तो यह देश के अन्य शहरों के लिए भी एक मॉडल बन सकता है.


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