सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण विवाद पर जुलाई में करेगा विचार
उच्चतम न्यायालय महाराष्ट्र में शिक्षा और रोजगार में मराठाओं को 10 फीसदी आरक्षण प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर 14 जुलाई के बाद विचार करेगा

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय महाराष्ट्र में शिक्षा और रोजगार में मराठाओं को 10 फीसदी आरक्षण प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर 14 जुलाई के बाद विचार करेगा।
न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन के सिंह की पीठ ने गुरुवार को एक अधिवक्ता की संबंधित मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की गुहार पर यह अनुमति दी।
पीठ ने कहा कि याचिका को फिर से खुलने वाले सप्ताह (गर्मी की छुट्टियों के बाद 14 जुलाई से शुरू होने वाले सामान्य कार्य दिवस) में सूचीबद्ध किया जाएगा।
याचिका में बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस अंतरिम आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें संबंधित मराठा आरक्षण कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम फैसला आने तक 10 फीसदी आरक्षण की अनुमति दी थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष वकील ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और इसे अंतरिम आधार पर लागू करने की अनुमति दी।
शीर्ष अदालत के समक्ष वकील ने दलील दी, “यह उद्देश्य के लिए पर्याप्त नहीं है। इस माननीय न्यायालय ने इससे पहले के विवाद में रोक लगाई, यहां तक कि उच्च न्यायालय ने रोक लगाई थी।”
उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने 11 जून को एक आदेश पारित किया, जिसमें मराठा समुदाय को 'मराठा आरक्षण कानून 2024' को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम फैसला आने तक शिक्षा और रोजगार में 10 फीसदी आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति दी गई है।
उच्च न्यायालय ने मामले के शीघ्र निपटान करने के उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसरण में आने वाली चुनौतियों पर विचार के लिए शनिवार को विशेष बैठकें आयोजित करने का भी प्रस्ताव रखा।
उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024 की वैधता को चुनौती दी गई है, जो ओबीसी श्रेणी के तहत मराठों को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करता है।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुनील बी. शुक्रे के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएसबीसीसी) की एक रिपोर्ट के आधार पर 20 फरवरी, 2024 को राज्य विधानमंडल में अधिनियम पारित किया गया था।
इस रिपोर्ट में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के औचित्य के रूप में "असाधारण परिस्थितियों' का हवाला दिया गया, जो राज्य में कुल आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से अधिक है।
शीर्ष अदालत की एक संविधान पीठ ने 2018 में बनाए गए पहले के मराठा आरक्षण कानून को 2021 में रद्द कर दिया था, जिसमें 16 फीसदी आरक्षण दिया गया था। इसमें कहा गया था कि कोई भी असाधारण परिस्थिति मराठों के लिए अलग से आरक्षण को उचित नहीं ठहराती है, जो 1992 के इंद्रा साहनी (मंडल) फैसले द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है।
शीर्ष अदालत ने मराठों के सामाजिक पिछड़ेपन को स्थापित करने के लिए प्रस्तुत अनुभवजन्य आंकड़ों पर भी सवाल उठाया।


