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सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्ति का विवरण अपलोड करने की समय सीमा बढ़ाने से किया इनकार

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सरकारी पोर्टल 'उम्मीद' पर वक्फ संपत्ति का विवरण अपलोड करने की समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्ति का विवरण अपलोड करने की समय सीमा बढ़ाने से किया इनकार
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वक्फ संपत्ति विवरण अपलोड करने की समय सीमा बढ़ाने संबंधी याचिका खारिज

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सरकारी पोर्टल 'उम्मीद' पर वक्फ संपत्ति का विवरण अपलोड करने की समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने आवेदनों का निपटारा करते हुए आवेदकों को वैधानिक समय सीमा से पहले अपने संबंधित न्यायाधिकरणों से संपर्क करने की सलाह दी।

पीठ ने कहा कि एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम की धारा 3बी वक्फ न्यायाधिकरणों को उचित मामलों में समय सीमा बढ़ाने का अधिकार देती है।

आवेदकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह संशोधन 8 अप्रैल को लागू हुआ और पोर्टल 6 जून को चालू हुआ, जबकि नियम 3 जुलाई को अधिसूचित किए गए। उन्होंने तर्क दिया कि छह महीने की समय सीमा अपर्याप्त थी, खासकर सदियों पुराने वक्फों के लिए जहाँ मूल वक्फ की पहचान जैसे विवरण उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इन विवरणों के बिना पोर्टल विवरणों को स्वीकार नहीं करेगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पोर्टल में तकनीकी खराबी है। आवेदकों ने निर्देशों के पालन की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन उन्हें अधिक समय चाहिए।

महाधिवक्ता तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि धारा 3बी का न्यायाधिकरणों को अलग-अलग मामलों को आधार पर पंजीकरण के लिए समय बढ़ाने का स्पष्ट अधिकार देता है।

सिब्बल ने हालांकि बताया कि इससे लगभग 10 लाख मुतावल्लियों को व्यक्तिगत आवेदन दाखिल करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि आवेदक अपनी शिकायतों के साथ न्यायाधिकरणों से संपर्क कर सकते हैं।

सिब्बल ने जब तर्क दिया कि पोर्टल की तकनीकी खराबी के कारण अनुपालन असंभव हो गया है, तो न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, "यदि पोर्टल कार्यात्मक (फंक्शनल) है, जैसा कि महाधिवक्ता कहते हैं और आप इसका विरोध करते हैं, तो आपको कुछ सामग्री दिखानी होगी।" इस पर सिब्बल ने तकनीकी खराबी का विवरण देते हुए एक नोट प्रदान करने का जिम्मा लिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद ने कहा कि यह मुद्दा धारा 3बी के तहत पहले से पंजीकृत वक्फों के डिजिटलीकरण से संबंधित है, न कि पंजीकरण से और इस पहलू पर न्यायालय के अंतरिम आदेश में विचार नहीं किया गया था।

वकील निज़ाम पाशा ने तर्क दिया कि छह महीने की अवधि 10 अक्टूबर को पहले ही समाप्त हो चुकी थी, क्योंकि इसे संशोधन की तारीख से गिना जाना चाहिए। महाधिवक्ता ने इस पर टिप्पणी की कि पोर्टल के चालू होने की तारीख के आधार पर समय सीमा 6 दिसंबर है।

पीठ ने हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा, "चूँकि आवेदकों के लिए न्यायाधिकरण के समक्ष उपाय उपलब्ध है, हम धारा 3बी (1) के तहत निर्धारित छह महीने की अवधि की अंतिम तिथि तक न्यायाधिकरण से संपर्क करने की स्वतंत्रता देते हुए सभी आवेदनों का निपटारा करते हैं।"

यह मामला वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 से उत्पन्न हुआ है, जो उम्मीद पोर्टल पर 'वक्फ बाई यूज़र' के रूप में वर्गीकृत संपत्तियों सहित सभी वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य करता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सांसद असदुद्दीन ओवैसी सहित विभिन्न पक्षों ने इस कानून के पालन के लिए अवधि के विस्तार की मांग की है।

शीर्ष न्यायालय ने अपने 15 सितंबर, 2025 के अंतरिम आदेश में वक्फ बनाने के लिए कम से कम पाँच साल इस्लामी प्रथाओं का पालन करने सहित कुछ संशोधित प्रावधानों पर रोक लगा दी थी, लेकिन अनिवार्य पंजीकरण की आवश्यकता पर रोक नहीं लगाई थी।

ओवैसी की याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि छह महीने की लगभग पूरी अवधि तब समाप्त हो गई जब मामला न्यायालय के समक्ष लंबित था, जिससे विस्तार न मिलने पर पुराने वक्फों को बेदखली और तीसरे पक्ष के दावों का सामना करना पड़ सकता है।


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