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इंडिगो फ्लाइट संकट: सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की मांग

देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो की उड़ानें बड़े पैमाने पर रद्द होने के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है

इंडिगो फ्लाइट संकट: सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की मांग
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1,000 से अधिक उड़ानें रद्द, यात्रियों को मानवीय संकट का सामना

  • अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का आरोप, मौलिक अधिकारों पर सवाल
  • एफडीटीएल नियमों में चूक और एयरलाइन पर कुप्रबंधन का आरोप
  • मुंबई–दिल्ली टिकट 50 हजार तक, सुप्रीम कोर्ट से राहत की अपील

नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो की उड़ानें बड़े पैमाने पर रद्द होने के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील नरेंद्र मिश्रा ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को पत्र लिखकर इस पूरे संकट पर स्वतः संज्ञान लेने और मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की है।

पत्र के माध्यम से दायर पिटीशन में कहा गया है कि इंडिगो द्वारा बीते कुछ दिनों में 1,000 से अधिक उड़ानें रद्द करने और गंभीर देरी के कारण लाखों यात्री देशभर के एयरपोर्ट्स पर फंस गए, जिससे एक तरह का मानवीय संकट पैदा हो गया है।

मिश्रा ने इसे यात्रियों के मौलिक अधिकार, विशेषकर अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार), का गंभीर उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से त्वरित हस्तक्षेप की अपील की है।

वकील नरेंद्र मिश्रा द्वारा भेजी गई इस विस्तृत याचिका में कहा गया है कि देशभर में इंडिगो की उड़ानें लगातार चौथे दिन (5 दिसंबर 2025) भी बाधित रहीं। छह बड़े मेट्रो शहरों में एयरलाइन का ऑन-टाइम परफॉर्मेंस 8.5 प्रतिशत तक गिर गई। हजारों यात्री (जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, दिव्यांग और बीमारी से जूझ रहे लोग शामिल हैं) एयरपोर्ट्स पर घंटों तक फंसे रहे।

एयरपोर्ट्स पर खाने-पीने, आराम, कपड़े, दवाइयों और रहने की बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दी गईं, जबकि एयरलाइन ने खुद मान लिया है कि उसके पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। अनेक मामलों में आपातकालीन मेडिकल जरूरतों की भी अनदेखी कर दी गई।

याचिका में कहा गया है कि इंडिगो ने नई फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) फेज-2 लागू करने में गंभीर चूक की। यह नॉर्म पायलटों की सुरक्षा और थकान को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया था, लेकिन एयरलाइन के गलत प्लानिंग और रोस्टरिंग के कारण पूरा ऑपरेशन चरमरा गया। याचिका में इसे गंभीर कुप्रबंधन और यात्रियों के साथ अन्याय बताया गया है।

हजारों उड़ानें रद्द होने के बाद एक ओर जहां लोग एयरपोर्ट पर फंसे हैं, वहीं दूसरी ओर टिकटों की कीमतें भी अचानक बढ़ गईं। याचिका में उदाहरण दिया गया है कि मुंबई–दिल्ली सेक्टर में टिकट की कीमत 50,000 रुपए तक पहुंच गई। इसे यात्रियों का खुलेआम शोषण बताया गया।

याचिका में आरोप लगाया गया कि डीजीसीए और नागरिक उड्डयन मंत्रालय समय रहते स्थिति को नहीं संभाल पाए। हालांकि डीजीसीए ने बाद में कुछ नियमों में अस्थायी ढील भी दी, लेकिन पत्र में कहा गया है कि यह राहत तब दी गई जब संकट चरम पर था।

याचिका में पूछा गया है कि क्या बड़े पैमाने पर उड़ान रद्दीकरण से उत्पन्न मानवीय संकट अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है? क्या निजी एयरलाइन द्वारा हुई यह चूक यात्रियों के मौलिक अधिकारों का हनन मानी जा सकती है? क्या डीजीसीए ऐसी स्थिति में एफडीटीएल नियमों में अस्थायी छूट दे सकता है? क्या मंत्रालय और डीजीसीए ने अपने कानूनी कर्तव्यों में चूक की? क्या सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक हित में दिशा-निर्देश जारी कर सकता है?

याचिका में कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने के चार मुख्य कारण बताए गए हैं, जिनमें अनुच्छेद 21 का उल्लंघन (भोजन, पानी, दवा, सुरक्षा की कमी), नियामक निकायों की असफलता, जनहित और राष्ट्रीय महत्व, जवाबदेही और मुआवजा शामिल हैं।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग रखी गई है कि मामले में तुरंत स्वतः संज्ञान लेकर इसे पीआईएल के रूप में स्वीकार किया जाए। स्पेशल बेंच बनाकर तुरंत सुनवाई की जाए। इंडिगो को आदेश दिया जाए कि मनमाने रद्दीकरण रोके, सुरक्षित तरीके से सेवाएं बहाल करे और सभी फंसे यात्रियों को मुफ्त वैकल्पिक व्यवस्था दे।


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