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भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक विकास दर को आगे बढ़ाने में निभा रही मुख्य भूमिका : आरबीआई

अस्थिर और चुनौतीपूर्ण वैश्विक हालातों के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक विकास दर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है

भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक विकास दर को आगे बढ़ाने में निभा रही मुख्य भूमिका : आरबीआई
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नई दिल्ली। अस्थिर और चुनौतीपूर्ण वैश्विक हालातों के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक विकास दर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसकी वजह अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार और नीतिगत समर्थन होना है। यह बयान भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को दिया।

रिजर्व बैंक ने अपनी 'वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर)' के जून 2025 अंक में कहा कि बढ़ती आर्थिक और व्यापार नीति अनिश्चितताएं वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली की मजबूती की परीक्षा ले रही हैं।

रिपोर्ट में आगे कहा गया, "वित्तीय बाजार अस्थिर बने हुए हैं, खास तौर पर कोर सरकारी बॉन्ड बाजार, जो बदलती नीति और भू-राजनीतिक माहौल के कारण प्रभावित हैं। साथ ही, मौजूदा कमजोरियां जैसे कि सार्वजनिक ऋण का बढ़ता स्तर और उच्च परिसंपत्ति मूल्यांकन नए झटकों को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं।"

केंद्रीय बैंक ने आगे कहा कि घरेलू वित्तीय प्रणाली बैंकों और गैर-बैंकिंग कंपनियों की स्वस्थ बैलेंस शीट द्वारा मजबूत बनी हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय बाजारों में कम अस्थिरता और उदार मौद्रिक नीति के कारण वित्तीय स्थितियां आसान हुई हैं। कॉर्पोरेट बैलेंस शीट की मजबूती समग्र व्यापक आर्थिक स्थिरता को भी समर्थन दे रही है।

आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, "अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की सुदृढ़ता और मजबूत पूंजी बफर, कई दशकों में सबसे कम एनपीए अनुपात और मजबूत आय से संभव हुई है।"

केंद्रीय बैंक के मुताबिक, मैक्रो स्ट्रेस टेस्ट के परिणाम पुष्टि करते हैं कि अधिकांश एससीबी के पास प्रतिकूल तनाव परिदृश्यों के तहत भी विनियामक न्यूनतम की तुलना में पर्याप्त पूंजी बफर है। स्ट्रेस टेस्ट म्यूचुअल फंड और क्लियरिंग कॉरपोरेशन की मजबूती को भी मान्यता देते हैं।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) बड़े पूंजी बफर, मजबूत आय और बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता के साथ स्वस्थ बनी हुई हैं। बीमा क्षेत्र का कंसोलिडेटेड सॉल्वेंसी अनुपात भी न्यूनतम सीमा से ऊपर बना हुआ है।

आरबीआई के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की अर्थव्यवस्था 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती है।


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