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रेयर अर्थ के मामले में आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करता भारत

पहली बार रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट का उत्पादन पूरी तरह से भारत में किया जाएगा. इसमें 7,280 करोड़ रूपये का निवेश होगा और काम सात साल में पूरा किया जाएगा. इसे लागू करने का लक्ष्य भारत की चीन पर आयात निर्भरता कम करना है

रेयर अर्थ के मामले में आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करता भारत
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पहली बार रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट का उत्पादन पूरी तरह से भारत में किया जाएगा. इसमें 7,280 करोड़ रूपये का निवेश होगा और काम सात साल में पूरा किया जाएगा. इसे लागू करने का लक्ष्य भारत की चीन पर आयात निर्भरता कम करना है.

केंद्र सरकार ने एक नई योजना की घोषणा की है जिसका लक्ष्य रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (आरईपीएम) का उत्पादन पूरी तरह से भारत में करना है. इसके लिए 7,280 करोड़ का बजट मंजूर कर दिया गया है. योजना के तहत देश में सालाना 6,000 मीट्रिक टन आरईपीएम तैयार किया जाएगा. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस योजना बारे में बताया कि भारत अगले तीन से चार वर्षों में आरईपीएम का उत्पादन करने लगेगा.

भारत के पास आरईपीएम बनाने के लिए खनिजों के बड़े भंडार मौजूद हैं. लेकिन उसके पास मजबूत सप्लाई चेन नहीं है. साथ ही उत्पादन की प्रक्रिया बहुत महंगी और तकनीकी रूप से कठिन है. इस नई योजना के तहत इंटीग्रेटेड मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी बनाई जाएगी. जिससे ऑक्साइड से मेटल और फिर मैग्नेट बनाने की पूरी प्रक्रिया भारत में ही हो सकेगी.

नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक गाड़ियों (ईवी) और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार का यह फैसला महत्वपूर्ण है. अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देश में रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट की खपत दोगुनी हो जाएगी. अभी भारत में इस जरूरत का ज्यादातर हिस्सा आयात से पूरा होता है. नई योजना को कई चरणों के अंतर्गत सात वर्षों में पूरा किया जाएगा. पहले दो वर्ष फैक्ट्री तैयार करने और उत्पादन शुरू करने की तैयारी में लगेंगे. अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस कदम से भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी और उद्योगों की सप्लाई चेन में मजबूती आएगी. वर्ष 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने में भी मदद मिलेगी.

इस योजना के लिए पांच कंपनियों को बोली प्रक्रिया के जरिए चुना जाएगा. हर कंपनी को सालाना 1,200 टन तक उत्पादन करने की क्षमता मिलेगी. योजना में पांच वर्ष के लिए 6,450 करोड़ रूपए का बिक्री प्रोत्साहन और फैक्ट्री बनाने के लिए 750 करोड़ रूपए की मदद भी शामिल है.

क्या है आरईपीएम?

रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट दुनिया का सबसे मजबूत मैग्नेट माना जाता है. यह लंबे समय तक अपनी ताकत नहीं खोते. इसे खास धातुओं जैसे नेओडिमियम, डाइस्प्रोसियम, टर्बियम और प्रासियोडिमियम से बनाया जाता है. इस प्रकार का मैग्नेट छोटे आकार में भी बहुत प्रभावी होता है. आरईपीएम का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहन,मिसाइल, ड्रोन, सैटेलाइट,मोबाइल फोन, हेडफोन, लैपटॉप, हार्ड ड्राइव जैसे हर जरुरी उपकरणों में किया जाता है.

भारत रेयर अर्थ भंडार के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में आता है. देश में लगभग 69 लाख मीट्रिक टन रेयर अर्थ धातु मौजूद हैं. रेयर अर्थ समुद्र किनारे रेत और पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है. ये महाराष्ट, ओडिशा, गोवा, तमिल नाडु, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात में फैला हुआ है. फिर भी वैश्विक उत्पादन में भारत का योगदान केवल एक प्रतिशत है.

चीन पर से निर्भरता कम करना जरुरी

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने करीब 53,748 मीट्रिक टन आरईपीएम आयात किया. इसका 90 प्रतिशत हिस्सा चीन से आता है. इस साल अमेरिका ने चीन समेत कई देशों के लिए नए टैरिफ और शुल्कों की घोषणा की. इसके जवाब में चीन ने आरईपीएम और अन्य रेयर अर्थ उत्पादों के व्यापार पर कुछ प्रतिबंध लागू कर दिए.

क्या रेअर अर्थ पर चीन का दबदबा खत्म कर सकते हैं पश्चिमी देश?

इस वक्त दुनिया की लगभग 90 प्रतिशत आरईपीएम उत्पादन क्षमता चीन के नियंत्रण में है. उसके पास रेयर अर्थ धातुओं के खनन का भी 70 प्रतिशत हिस्सा है. अमेरिका से तनाव के बीच चीन ने कुछ भारतीय कंपनियों को रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट आयात करने के लिए लाइसेंस देने की बात कही थी. लेकिन अब तक कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है.

इसके बाद से भारत को भेजे जाने वाले आरईपीएम की आपूर्ति धीमी हो गई. जिसकी वजह से इंटरनल कॉम्बशन इंजन (आईईसी) और इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) निर्माताओं को उत्पादन में समस्याओं का सामना करना पड़ा. आरईपीएम ट्रैक्शन मोटर्स के लिए भी बेहद जरूरी हैं. इससे साफ होता है कि भारत का उत्पादन विदेश नीतियों से कितनी जल्दी प्रभावित हो सकता है.

मैक्सवॉल्ट एनर्जी इंडस्ट्रीज लिमिटेड के को-फाउंडर मुकेश गुप्ता बताते हैं कि भारत में रेयर अर्थ पदार्थों को प्रोसेस करना और देश में ही आरईपीएम बनाना भारत को उन मुश्किलों से बचाएगा जो विदेश से आयात करने में आती हैं. इससे आयात की लागत कम होगी और विदेशी निवेश आकर्षित करना आसान होगा, साथ ही नौकरी के अवसर खुलेंगे.

मुकेश डीडब्ल्यू से कहते हैं, "आरईपीएम की आपूर्ति के लिए चीन पर निर्भरता अब तक एक बड़ी बाधा रही है. लेकिन अब ऐसा नहीं रहेगा. कंपनियों को बेहतर गुणवत्ता वाली ईवी बैटरियों को विकसित करने और बड़े पैमाने पर बनाने में मदद मिलेगी. भारत अपनी महत्वाकांक्षी इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में तेजी से बढ़ेगा."

सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को भी मिलेगा बल

अश्विनी वैष्णव ने इस मंजूरी को एक अहम रणनीतिक निर्णय बताया है. इससे भारत के हाल के सेमीकंडक्टर मिशन को भी मजबूती मिलेगी. उन्होंने कहा, "आज के आधुनिक फैक्ट्री और उद्योग बिना स्थायी आरईपीएम और सेमीकंडक्टर चिप्स के नहीं चल सकते."

कीटो मोटर्स के निर्देशक वेंकटेश चल्ला बताते हैं कि यह योजना भारत के सेमीकंडक्टर और तकनीकी क्षेत्र के लिए बहुत मददगार है. आरईपीएम सेंसर, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन के मोटर, सोलर और पवन ऊर्जा जैसे उपकरणों के लिए बहुत जरूरी है. ये सब सेमीकंडक्टर चिप्स के साथ काम करते हैं.

वेंकटेश डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "चीन को किल स्विच के नाम से बुलाया जाता है. चीन इस सेक्टर पर इतना हावी है. अगर चीन अपनी नीति या कीमतें बदल देता है, तो इससे उत्पादन धीमा हो सकता है. प्रोडक्ट लॉन्च में देरी हो सकती है और अचानक लागत बढ़ जाएगी. अगर भारत के पास घरेलू आरईपीएम उत्पादन होगा, तो सेमीकंडक्टर फैक्टरियां अपना काम तेजी से कर पाएंगी. भारत सेमीकंडक्टर का सिर्फ ग्राहक नहीं, बल्कि मजबूत और आत्मनिर्भर निर्माता बन सकता है."


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