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नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में कैसे बाजी मार रहे सुरक्षाबल

सालभर में करीब 350 नक्सलियों की मौत हुई है और सैकड़ों ने हथियार भी डाल दिए हैं. क्या यह नक्सलवाद के खात्मे का संकेत है

नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में कैसे बाजी मार रहे सुरक्षाबल
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भारत सरकार ने देश से नक्सलवाद के खात्मे के लिए 31 मार्च, 2026 की समयसीमा तय की है. सालभर में 350 से अधिक नक्सलियों की मौत हुई है और सैकड़ों नक्सलियों ने हथियार भी डाल दिए हैं. क्या यह नक्सलवाद के खात्मे का संकेत है.

सुरक्षाबलों ने झारखंड में तीन शीर्ष नक्सल नेताओं को मार गिराने की जानकारी दी है. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, 15 सितंबर को हजारीबाग जिले में एक मुठभेड़ में इन नक्सलियों की मौत हुई. इन तीनों पर कुल मिलाकर एक करोड़ 35 लाख रुपये का इनाम था. इनमें से एक सहदेव सोरेन, नक्सलियों की केंद्रीय समिति का सदस्य था और उस अकेले पर एक करोड़ रुपये का इनाम था.

यह सुरक्षाबलों को नक्सलियों के खिलाफ मिल रही सफलता का एक ताजा उदाहरण है. इससे पहले, 13 सितंबर को प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के वरिष्ठ नेताओं में शामिल सुजाता ने तेलंगाना में पुलिस महानिदेशक के सामने आत्मसमर्पण किया था. द हिंदू की खबर के मुताबिक, आत्मसमर्पण करने से पहले सुजाता ने 43 सालों तक अंडरग्राउंड रहकर काम किया था.

साल भर में मारे गए 350 से अधिक माओवादी

छत्तीसगढ़ के बस्तर रेंज के आईजी पी सुंदरराज ने 16 जुलाई को मीडिया को सीपीआई (माओवादी) द्वारा जारी किए गए एक पत्र के बारे में बताया था. सुंदरराज के मुताबिक, इस पत्र में सीपीआई (माओवादी) ने स्वीकार किया था कि पिछले साल भर में देशभर में हुई मुठभेड़ों में उसके 350 से ज्यादा सदस्यों ने जान गंवाई है. इनमें केंद्रीय समिति के चार और राज्य स्तरीय समिति के 15 सदस्य शामिल थे.

द हिंदू अखबार की खबर के मुताबिक, सुरक्षाबलों को दण्डकारण्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा सफलता मिली है, जो बस्तर रेंज के जिलों और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में फैला हुआ है. पुलिस आईजी सुंदरराज के मुताबिक, अकेले इसी इलाके में पिछले साल भर में 280 से ज्यादा माओवादी मारे गए हैं. यानी करीब 80 फीसदी नक्सली अकेले इसी इलाके में मारे गए हैं.

सुंदरराज ने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया कि दण्डकारण्य क्षेत्र पिछले चार-पांच दशकों से नक्सली आंदोलन का केंद्र रहा है. उनके मुताबिक, घने जंगल और दुर्गम क्षेत्र होने की वजह से यह नक्सलियों की पसंद रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया है कि इस क्षेत्र का उपयोग नक्सलियों द्वारा सुरक्षित ठिकाने या छिपने के स्थान के रूप में ना किया जाए.

पुलिस और प्रशासन की रणनीति

पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में सुरक्षाबलों ने 10 नक्सलियों का मारने की बात कही थी. इनमें नक्सलियों का एक सीनियर कमांडर भी शामिल था. अगस्त के आखिरी हफ्ते में छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में 30 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था. इससे पहले, 14 अगस्त को सुरक्षाबलों ने 1.16 करोड़ रुपये इनाम वाले दो नक्सलियों को मारने का दावा किया था.

आईजी सुंदरराज बताते हैं कि नक्सलियों के खिलाफ बढ़त हासिल करने के लिए चार अलग-अलग क्षेत्रों में काम किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि सुरक्षा अभियानों की पहुंच बढ़ाई जा रही है, सुरक्षाबलों के कैंपों को विकास केंद्र के तौर पर विकसित किया जा रहा है, सड़कें बनाकर कनेक्टिविटी बढ़ाई जा रही है और स्थानीय समुदायों के अंदर सुरक्षाबलों के प्रति भरोसा पैदा करने के लिए भी उपाय किए जा रहे हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "पहले भी हम बहुत सारे अभियान चला रहे थे लेकिन पिछले कुछ सालों में हमारे ऑपरेशनल बेस कैंपों की संख्या बढ़ी है, जिससे अब अभियानों की पहुंच बढ़ गई है.” उन्होंने बताया कि सुरक्षाबलों के बेस कैंपों को विकास केंद्रों के रूप में भी विकसित किया जा रहा है, जहां आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को राशन की दुकानें, प्राइमरी स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं, जिससे स्थानीय लोगों में भरोसा बढ़ता है.

क्या बदल रहा है स्थानीय लोगों का नजरिया

नरेश मिश्रा छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय से बस्तर को कवर करते रहे हैं. वे कहते हैं कि यह नक्सलवाद के लिए बहुत मुश्किल का दौर है और नक्सल संगठनों ने अपने बयानों में इस बात को कबूल किया है. नरेश मिश्रा ने डीडब्ल्यू को बताया, "आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सलियों का कहना है कि वे इसलिए हथियार डाल रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि वे लंबे समय तक इस लड़ाई को जारी रख पाएंगे."

नरेश मिश्रा कहते हैं कि यह एक बदलाव का दौर है. उनके मुताबिक जब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के कैंप खुलने शुरू हुए तो इनका बहुत विरोध हुआ, लेकिन इनकी वजह से स्थानीय लोगों को सुविधाएं भी मिलने लगीं. उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय लोगों के लिए सरकारी सुविधाएं तो बढ़ रही हैं लेकिन उनकी स्वीकार्यता में समय लग रहा है.

हालांकि, मिश्रा सरकार के इस दावे पर संदेह करते हैं कि नक्सलवाद 31 मार्च, 2026 तक पूरी तरह खत्म हो जाएगा. वे कहते हैं, “भरोसे की जो समस्या लंबे समय से है, उसमें कुछ कदम सरकार आगे बढ़ी है. लेकिन गांवों में और नए क्षेत्रों में पूरी तरह से भरोसा कायम होने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा और अगर ऐसा हो पाया तभी एक तरह से नक्सलवाद का खात्मा होगा, जो मुझे नहीं लगता कि 2026 तक हो पाएगा”.

80 फीसदी कम हुई वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा

भारत की केंद्र सरकार ने हालिया समय में नक्सल आंदोलन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश से नक्सलवाद के खात्मे के लिए 31 मार्च, 2026 की समयसीमा तय की है. उन्होंने इसी महीने की शुरुआत में कहा था कि जब तक सभी नक्सली आत्मसमर्पण नहीं कर देते, पकड़े नहीं जाते या मारे नहीं जाते, तब तक सरकार चैन से नहीं बैठेगी.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 12 अगस्त को लोकसभा को अपने लिखित जवाब में बताया था कि देश में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में कमी आई है. उन्होंने बताया कि साल 2010 से लेकर 2024 तक, वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसक घटनाओं में 81 फीसदी की कमी आई है और इनके परिणामस्वरूप होने वाली आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की मौतों में 85 फीसदी की कमी आई है.

नित्यानंद राय ने अपने जवाब में बताया कि साल 2013 में कुल 126 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित थे और अप्रैल 2025 में इनकी संख्या घटकर 18 पर आ गई है. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नीति और एक्शन प्लान 2015 को अच्छी तरह से लागू करने की वजह से हिंसा में लगातार कमी आई है और वामपंथ उग्रवाद के भौगोलिक विस्तार में भी कमी आई है.

इसके साथ ही, आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की संख्या भी बढ़ी है. प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के मुताबिक, साल 2024 में करीब 930 नक्सलियों ने समर्पण किया था. वहीं, साल 2025 के शुरुआती चार महीनों में ही 700 से ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने 12 जुलाई को एक्स पर बताया था कि पिछले 15 महीनों में छत्तीसगढ़ में 1,500 से ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.


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