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कांग्रेस ने कहा, अरावली क्षेत्र की नई परिभाषा के आंकड़ों का आधार गलत

कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने कहा अरावली देश की प्राकृतिक धरोहर है और इसका पारिस्थितिक महत्व अमूल्य है। ऐसे में इसका व्यापक पुनर्स्थापन और ठोस संरक्षण की आवश्यकता है।

कांग्रेस ने कहा, अरावली क्षेत्र की नई परिभाषा के आंकड़ों का आधार गलत
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नई दिल्ली : अरावली पहाड़ी क्षेत्र की नई परिभाषा को पर्यावरण के खिलाफ बताते कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार इस पहाड़ी रेंज को किसी के फायदे के लिए फिर से परिभाषित करने पर तुली है। कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने कहा अरावली देश की प्राकृतिक धरोहर है और इसका पारिस्थितिक महत्व अमूल्य है। ऐसे में इसका व्यापक पुनर्स्थापन और ठोस संरक्षण की आवश्यकता है। मगर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री के हाल में दिए स्पष्टीकरण ने इससे जुड़े सवालों को न केवल और उलझाया है बल्कि शक भी पैदा किया है।

68,000 एकड़ बहुत बड़ा क्षेत्र

अरावली पर सरकार के रुख का विरोध करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि पर्यावण मंत्री का कहना है कि अरावली के 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से फिलहाल केवल 0.19 प्रतिशत हिस्सा ही खनन पट्टों के अंतर्गत है। लेकिन यह भी लगभग 68,000 एकड़ होता है जो बहुत बड़ा क्षेत्र है। हालांकि 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर का आंकड़ा भ्रामक है क्योंकि इसमें चार राज्यों के 34 अरावली जिलों का पूरा क्षेत्र शामिल है। उन्होंने कहा कि सही आधार तो इन जिलों के भीतर वास्तव में अरावली के अंतर्गत आने वाला भूभाग होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि वास्तविक क्षेत्र को आधार माना जाए तो 0.19 प्रतिशत का आंकड़ा बहुत कम है। 34 जिलों में से 15 जिलों के आंकड़े सत्यापित किए जा सकते हैं, जिनमें अरावली क्षेत्र लगभग 33 प्रतिशत है।

पर्यावरण पर दबाव और बढ़ेगा

जयराम ने कहा कि नई परिभाषा के अनुसार स्थानीय प्रोफाइल को आधार बनाया जाता है तो ऐसे में 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली कई पहाड़ियां भी संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी। संशोधित परिभाषा के बाद दिल्ली-एनसीआर में अरावली के अधिकांश पहाड़ी इलाके रियल एस्टेट विकास के लिए खोल दिए जाएंगे जिससे पर्यावरण पर दबाव और बढ़ेगा।

90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षित क्षेत्र में ही रहेगा

उधर, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली पहाड़ियों के संरक्षण में ढील दिए जाने के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षित क्षेत्र में ही रहेगा। खनन की अनुमति केवल सीमित क्षेत्र में ही दी जाएगी, जो सुप्रीम कोर्ट की कड़ी निगरानी के अधीन होगा।

कोई छूट नहीं दी गई

अरावली पहाड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर उठे विवाद पर यादव ने कहा, "अरावली के मामले में कोई छूट नहीं दी गई है। अरावली पर्वतमाला चार राज्यों - दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात - में फैली हुई है। इस संबंध में एक याचिका 1985 से अदालत में लंबित है।" अपने एक्स पोस्ट में उन्होंने कहा, 'भ्रम फैलाना बंद करें! अरावली के कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मात्र 0.19 प्रतिशत हिस्से में ही खनन की पात्रता हो सकती है। बाकी पूरी अरावली संरक्षित और सुरक्षित है।'

गलत जानकारी फैलाई जा रही

विवादित "100 मीटर" वाली परिभाषा को स्पष्ट करते हुए मंत्री ने कहा कि गलत जानकारी फैलाई जा रही है। उन्होंने कहा, "कुछ यूट्यूब चैनल 100 मीटर की सीमा को शीर्ष 100 मीटर के रूप में गलत तरीके से पेश कर रहे हैं, जो सही नहीं है। 100 मीटर से तात्पर्य पहाड़ी के शीर्ष से नीचे तक के फैलाव से है, और दो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच का अंतर भी अरावली श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा। इस परिभाषा के अनुसार, 90 प्रतिशत क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है।"


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