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'राष्ट्रीय पार्टी' दर्जे की वजह से 2024 की बिसात हुई और पेचीदा

राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को लेकर चुनाव आयोग के नए फैसलों से उथल-पुथल मची हुई है. एक तरफ तो "आप" पहली बार यह दर्जा पाने का जश्न मना रही है, लेकिन दूसरी तरफ सीपीएम, टीएमसी और एनसीपी में दर्जे को गंवा देने की मायूसी है.

राष्ट्रीय पार्टी दर्जे की वजह से 2024 की बिसात हुई और पेचीदा
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चुनाव आयोग की नई घोषणा के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया गया है, जबकि आम आदमी पार्टी पहली बार राष्ट्रीय पार्टी बन गई है. अभी तक देश में आठ राष्ट्रीय पार्टियां थीं - बीजेपी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी, तृणमूल, एनपीपी और बीएसपी. नए फैसले के बाद देश में अब सिर्फ छह राष्ट्रीय पार्टियां रह गई हैं.

आयोग का फैसला 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2014 के बाद हुए 21 विधान सभा चुनावों में इन पार्टियों के प्रदर्शन पर आधारित है. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के नियम इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) आर्डर, 1968 में दिए हुए हैं.

कैसे मिलता है दर्जा

इन नियमों के मुताबिक यह दर्जा हासिल करने के लिए किसी भी पार्टी को तीन शर्तों में से एक पूरी करनी होती है - या तो पिछले लोक सभा या विधान सभा चुनावों में कम से कम चार राज्यों में पार्टी को कम से कम छह प्रतिशत वोट शेयर मिला हो और उसके पास कम से कम चार सांसद हों.

अगर पार्टी यह शर्त पूरी नहीं कर पा रही हो तो उसके पास लोकसभा में कम से कम दो प्रतिशत सीटें हों और उसके सांसद कम से कम तीन राज्यों से हों. अगर पार्टी इस कसौटी पर भी खरी न उतर सके तो उसके पास कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा हो.

राष्ट्रीय पार्टी दर्जा मिलने से पार्टियों को कुछ फायदे मिलते हैं, जिनमें दो प्रमुख हैं - पहला,पूरे देश में कहीं पर भी पार्टी के सभी उम्मीदवार पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ पाते हैं और दूसरा, पार्टी को दिल्ली में अपना दफ्तर खोलने के लिए जमीन मिल जाती है.

चुनाव आयोग ने बताया कि तृणमूल से यह दर्जा इसलिए वापस ले लिया गया क्योंकि अब वो मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में राज्य स्तर की पार्टी नहीं रही. अब वो बस पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय में राज्य स्तर की पार्टी रह गई है. एनसीपी ने गोवा, मणिपुर और मेघालय में राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा गंवा दिया. अब वो सिर्फ महाराष्ट्र और नागालैंड में राज्य स्तर की पार्टी है.

"आप" की उपलब्धि

सीपीआई अब पश्चिम बंगाल और ओडिशा में राज्य स्तर की पार्टी नहीं रही. अब उसके पास यह दर्जा सिर्फ केरल, तमिलनाडु और मणिपुर में उपलब्ध है. जहां तक "आप" का सवाल है, तो उसका इस दर्जे को हासिल कर लेना तय माना जा रहा था. पार्टी दो राज्यों - दिल्ली और पंजाब में भारी बहुमत के साथ सत्ता में है.

लेकिन इसके अलावा गोवा में भी पार्टी के पास 6.77 प्रतिशत वोट शेयर है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने गुजरात में 12.92 प्रतिशत वोट हासिल किए और वहां भी राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया. चार राज्यों में राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा हासिल कर "आप" अब एक राष्ट्रीय पार्टीबन गई है.

दर्जा गंवा चुकी पार्टियों ने अभी तक आयोग के इस फैसले पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन "आप" के नेता और कार्यकर्ता अपनी उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं. 2013 में शुरू की गई "आप" के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा कि "इतने कम समय में राष्ट्रीय पार्टी" बन जाना "किसी चमत्कार से कम नहीं" है.

बदल सकते हैं समीकरण

राष्ट्रीय पार्टी दर्जे के मिलने और छिन जाने के इस फेरबदल से देश की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं. जैसे जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, एनडीए के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा यह सवाल और जटिल होता जा रहा है. विपक्ष में सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस है लेकिन कई विपक्षी पार्टियां कांग्रेस को चुनावी रणनीति में आगे बढ़ने देने के लिए तैयार नहीं हैं.

तृणमूल की मुखिया ममता बनर्जी, "आप" के अरविंद केजरीवाल, सपा के अखिलेश यादव और बीआरएस के चंद्रशेखर राव ऐसे नेताओं में शामिल हैं. एनसीपी मुखिया शरद पवार ने भी हाल ही में अदाणी समूह के खिलाफ विपक्ष के अभियान का विरोध कर विशेष रूप से कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी.

बीआरएस और सपा तो पहले से ही राष्ट्रीय पार्टियां नहीं हैं लेकिन दर्जा खो जाने के बाद ममता बनर्जी और शरद पवार दोनों के लिए कांग्रेस से आगे निकलना मुश्किल हो सकता है. लेकिन "आप" को विपक्षी खेमे के अंदर कांग्रेस के खिलाफ लड़ने में बल मिल सकता है. ऐसे में देखना होगा कि इन पार्टियों और बाकी विपक्षी पार्टियों का अगला कदम क्या होता है.


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