नरेन्द्र मोदी की अमर चित्रकथा
एक न्यूज चैनल की एंकर को दिए तथाकथित एक्सक्लूसिव साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ही बारे में एक बड़ा खुलासा किया

- सर्वमित्रा सुरजन
नेहरू-गांधी पर अनगिनत किताबें लिखी गई हैं, कई शोध पत्र तैयार हुए हैं, जिसमें उनके पारिवारिक जीवन, बचपन, शिक्षा, राजनैतिक-सामाजिक जीवन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान, अलग-अलग राजनेताओं के साथ उनके रिश्ते, उनके आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषायी, धार्मिक मुद्दों पर विचार, वैश्विक राजनीति पर उनका दृष्टिकोण इन तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई है, लेकिन सभी में तथ्य एक जैसे ही हैं।
एक न्यूज चैनल की एंकर को दिए तथाकथित एक्सक्लूसिव साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ही बारे में एक बड़ा खुलासा किया। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि वे बॉयलॉजिकल यानी जैविक तरीके से इस दुनिया में नहीं आए हैं, उनमें परमात्मा का अंश है। श्री मोदी ने ये सीधे-सीधे नहीं कहा कि वे दैवीय अवतार हैं, लेकिन उनकी बातों से यही समझा जाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी के बचपन के कई किस्से अमर चित्रकथा की तरह दस सालों में प्रचारित-प्रसारित किए जा चुके हैं। उनकी मां के घर-घर जाकर बर्तन मांजने से लेकर, खुद नरेन्द्र मोदी के वडनगर स्टेशन में चाय बेचने, मगरमच्छ के बच्चे को घर में उठाकर ले आने, हिमालय की गोद में तपस्या करने, फकीर बनकर रहने जैसी अनगिनत कहानियां देश सुन चुका है। नरेन्द्र मोदी भिक्षाटन करके जीवनयापन भी करते थे, इसी दौरान उनकी विदेश यात्राओं की तस्वीरें भी हैं और फिर वे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भी हिस्सा लेते हैं। वे संघ के कार्यालयों में दरी बिछाने, झाड़ू लगाने जैसे काम करते हैं, फिर ये भी बताते हैं कि उन्होंने ई मेल का इस्तेमाल कब से करना शुरु कर दिया, उनके पास डिजीटल कैमरा किस जमाने में था। अमेरिका का एक किस्सा नरेन्द्र मोदी ने बताया कि उनके पास एक डिजीटल डायरी हुआ करती थी, और अमेरिका की एक गैजेट वाली दुकान में उन्होंने उसका एकदम नया संस्करण दिखाने कहा तो उस दुकानदार का जवाब था कि उसने खुद ऐसी डायरी पहली बार देखी है। यानी जो डिवाइस अमेरिका की दुकानों में नहीं थी, वो भारत में फकीरों का जीवन जीने वाले मोदीजी के पास थी। संन्यास, फकीरी, तपस्या के साथ डिजीटल उपकरण भी नरेन्द्र मोदी के पास थे और इन सबके बीच उन्होंने एंटायर पॉलिटिकल साइंस यानी समग्र राजनीति विज्ञान में एम ए की डिग्री भी हासिल कर ली।
अगले बरस श्री मोदी के जैविक तौर पर 75 बरस पूरे होने वाले हैं। अवतारों की आयु की गणना किस हिसाब से की जाती है, यह हमें नहीं मालूम। इस बारे में नरेन्द्र मोदी ही बता सकते हैं कि उनकी अवतारी आयु कितनी है। वैसे साधारण इंसानों के लिए नरेन्द्र मोदी के 75 बरसों की कहानियों को ही सिलसिलेवार तरीके से लगाना कठिन है। अगर कोई शोधार्थी नरेन्द्र मोदी के जीवन पर शोध करे, तो उसके लिए बड़ी समस्या रहेगी कि वह कब और कहां से इसकी शुरुआत करे। नेहरू-गांधी पर अनगिनत किताबें लिखी गई हैं, कई शोध पत्र तैयार हुए हैं, जिसमें उनके पारिवारिक जीवन, बचपन, शिक्षा, राजनैतिक-सामाजिक जीवन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान, अलग-अलग राजनेताओं के साथ उनके रिश्ते, उनके आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषायी, धार्मिक मुद्दों पर विचार, वैश्विक राजनीति पर उनका दृष्टिकोण इन तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई है, लेकिन सभी में तथ्य एक जैसे ही हैं। उनमें कोई झोल, कोई बदलाव नहीं है कि एक किताब में गांधीजी को इंग्लैंड से पढ़ा हुआ बताया गया है, और दूसरी किताब में दावा है कि उन्होंने तो पहले ही अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार कर दिया था। हर किताब, हर लेख में तारीखों और तथ्यों में कोई बदलाव नहीं है। क्योंकि गांधी-नेहरू का जीवन जैसा था, सबके सामने था। उनके विचारों में भी अगर कोई बदलाव आया तो उसका भी तर्क सहित कारण मौजूद है कि किस घटना के बाद किसी मुद्दे पर उनके विचार बदले या उनका निर्णय बदला। क्योंकि गांधी-नेहरू भी अपने कार्यों और विचारों से महान होने के बावजूद थे तो इंसान ही। उनका भी जैविक तौर पर ही जन्म हुआ था। अलबर्ट आइंस्टाइन ने भले ही गांधीजी के लिए कहा था कि आज से पांच सौ साल बाद की पीढ़ियां यह नहीं मानेंगी कि हाड़-मांस का कोई ऐसा इंसान भी था। लेकिन श्री मोदी अपने लिए पांच सौ साल बाद के हालात का इंतजार नहीं करना चाहते। आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में क्या कहें और क्या न कहें, इससे बेहतर है कि खुद ही अपने लिए किस्से गढ़ लें।
नरेन्द्र मोदी ने जब खुद में दैवीय अंश होने का ऐलान कर दिया है तो फिर नेहरू-गांधी से उनका मुकाबला अपने आप खारिज हो जाता है। एक अन्य साक्षात्कार में श्री मोदी ने यह दावा भी किया था कि राहुल गांधी उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बनते देखना चाहते, क्योंकि उन्हें डर है कि फिर वे उनकी दादी और परनाना से आगे निकल जाएंगे। यानी श्री मोदी ने स्वयं को पहले ही इंदिरा गांधी और प.नेहरू से उच्च स्थान दे दिया था। साधारण इंसान के लिए यह बड़ी उपलब्धि होती कि देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों से आगे वे निकल रहे हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी चूंकि अवतारी हैं, इसलिए उन्हें इतने में संतुष्टि नहीं हुई और अब वे प्रधानमंत्रियों से आगे परम पद अपने लिए बनाना चाहते हैं। देश के कई पूर्व प्रधानमंत्रियों को भारत रत्न दिया गया है, जो देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। लेकिन श्री मोदी के लिए भाजपा को पहले ही कोई अन्य सम्मान गढ़ लेना चाहिए था, जो केवल उन्हें हासिल हो, क्योंकि भारत रत्न श्री मोदी के लिए संभवत: पर्याप्त नहीं है।
ऐसा लगता है कि श्री मोदी का मुकाबला अब देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों से नहीं, सीधे विष्णु के राम और कृष्ण जैसे अवतारों से हैं। राम और कृष्ण की कहानियां देश भर में प्रचलित हैं। उनके अलग-अलग नाम और रूपों से अलग-अलग मंदिर बने हुए हैं। लेकिन इन अवतारों ने भी जीवन तो आम इंसानों की तरह ही जिया और जब भी सत्ता का सवाल आया तो सत्ता की जगह पीड़ित प्रजा के साथ खड़ा होना स्वीकार किया। धार्मिक ग्रंथों में भारत का संविधान नहीं है, जो प्रजा को नागरिक होने की शक्ति से संपन्न करता है। उसे अधिकार देता है कि वह अपने शासक से आंख में आंख डालकर सवाल कर सके कि उसके साथ अन्याय क्यों हुआ, उसके हक क्यों मारे गए। इसलिए जब तक किसी धार्मिक ग्रंथ में नरेन्द्र मोदी को अवतारी घोषित नहीं किया जाता, तब तक उन्हें भी संविधान की दी गई शक्ति के आधार पर जनता के प्रति जवाबदेह तो माना ही जाएगा। इस जिम्मेदारी से वे खुद को दैवीय शक्ति का अंश बताकर बरी नहीं हो सकते। धार्मिक ग्रंथों में अवतारी पुरुषों को पीड़ितों के पक्ष में, न्याय के साथ खड़ा हुआ इसलिए दिखाया गया है ताकि इंसान सबक ले सकें कि ब्रह्मांड, ईश्वर, दैवीय शक्ति, हर किसी के आगे जब भी सच और झूठ, गलत और सही में से किसी एक का पक्ष लेने की बात आएगी तो वो सच और सही का ही साथ देंगे। इसलिए दुर्योधन को कृष्ण अपनी सारी सेना देते हैं, लेकिन खुद अर्जुन के रथ के सारथी बनते हैं। इसी तरह राम बाली का साथ न देकर अन्याय का शिकार बने सुग्रीव का साथ देते हैं।
अब सवाल यह है कि नरेन्द्र मोदी ने अब तक किसका साथ दिया या आगे किसका साथ देंगे। एक तरफ सत्ता और धन की शक्ति से संपन्न लोग हैं, जिनके पास देश की संपत्ति का बड़ा हिस्सा है और दूसरी तरफ वो करोड़ों लोग हैं, जिनके लिए 20-30 रूपए रोजाना के खर्चे के आधार पर तय किया जाता है कि वे गरीबी रेखा से ऊपर हैं या नीचे हैं। जिन्हें पांच किलो अनाज के लिए अपने आत्मसम्मान को किनारे रखकर कतार में खड़ा होने की मजबूरी है। आश्चर्य की बात है कि दस सालों में अपनी अवतारी शक्ति से श्री मोदी ने गरीबों की मजबूरी और पीड़ा को दूर करने का चमत्कार करके क्यों नहीं दिखाया। क्योंकि राम और कृष्ण की कहानियों में तो ऐसे चमत्कार भरे पड़े हैं। नेहरू-गांधी, मौलाना आजाद, सरदार पटेल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद की कहानियों में चमत्कार नहीं है, लेकिन अन्याय के खिलाफ हिम्मत से लड़ने और सच की लड़ाई में त्याग करने की बहादुरी अवश्य है। देश अब तक इस हिम्मत और त्याग से प्रेरणा लेता आया है। नरेन्द्र मोदी देश को कौन सी प्रेरणा देने वाले हैं, यह जानना दिलचस्प होगा।


