रोजगारविहीन विकास की रणनीति पर नरेंद्र मोदी सरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बारे में कई बातें सामने आयी हैं, जिनमें से एक प्रमुख है वर्तमान में अपनायी जा रही रोजगार विहीन विकास की रणनीति जिसके कारण बेरोजगारी की ऊंची दरको लेकर चिंता बढ़ती जा रही है

- डॉ युगल रायलू
एक तरफ बेरोजगारी बढ़ती जा रही थी, दूसरी तरफ आबादी के एक छोटे से हिस्से के पास धन का अधिकाधिक संकेन्द्रण हो रहा था। आबादी का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा अब देश की सत्तर प्रतिशत (70प्रतिशत) संपत्ति का मालिक था। दुनिया में कहीं भी, अमीर और गरीब के बीच का अंतर इतना बड़ा नहीं है। भारत को 'एकाधिकार पूंजीवाद' के रास्ते पर ले जाया जा रहा है! सुविधाकर्ता 'भारत सरकार' है। अहमदाबाद से लेकर कोलकाता तक हर हवाई अड्डा अब अडानी समूह का है। हवाई यात्रा की लागत में अचानक वृद्धि के खिलाफ उंगली उठाने की हिम्मत किसी में नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बारे में कई बातें सामने आयी हैं, जिनमें से एक प्रमुख है वर्तमान में अपनायी जा रही रोजगार विहीन विकास की रणनीति जिसके कारण बेरोजगारी की ऊंची दरको लेकर चिंता बढ़ती जा रही है।
वर्ष 2014 में चुनाव के लिए प्रचार के दौरान, नरेंद्र मोदी ने मतदाताओं से कई वायदे किए थे। उनके द्वारा किये गये सबसे प्रमुख वायदों में से एक था हर साल दो करोड ऩौकरियों का सृजन करना। अपने वायदे के अनुसार, दस वर्षों में उन्हें और उनकी सरकार को प्रधानमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल के लिए जाने से पहले (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) बीस करोड़ नौकरियां (दो सौ मिलियन नौकरियां) पैदा करनी चाहिए थीं।
अपने कई वायदों की तरह, पीएम ने बहुत ही चतुराई और सुविधापूर्वक इस वायदे को भूलने का विकल्प चुना। वास्तव में उनके कई नीतिगत निर्णयों के कारण रोजगार में गिरावट आयी, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हुई कि पिछले चालीस वर्षों में बेरोजगारी सबसे अधिक बढ़ गयी। देश में रोजगार में गिरावट का एक महत्वपूर्ण कारण सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) को बेचना था। स्वतंत्र भारत में किसी अन्य सरकार ने इतने सस्ते दरों पर इतने सारे पीएसयू नहीं बेचे। कुल मिलाकर इसका असर न केवल उत्पादकता पर पड़ा, बल्कि रोजगार पर भी पड़ा। लाखों युवा बेरोजगार रह गये!
एक तरफ बेरोजगारी बढ़ती जा रही थी, दूसरी तरफ आबादी के एक छोटे से हिस्से के पास धन का अधिकाधिक संकेन्द्रण हो रहा था। आबादी का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा अब देश की सत्तर प्रतिशत (70प्रतिशत) संपत्ति का मालिक था। दुनिया में कहीं भी, अमीर और गरीब के बीच का अंतर इतना बड़ा नहीं है। भारत को 'एकाधिकार पूंजीवाद' के रास्ते पर ले जाया जा रहा है! सुविधाकर्ता 'भारत सरकार' है। अहमदाबाद से लेकर कोलकाता तक हर हवाई अड्डा अब अडानी समूह का है। हवाई यात्रा की लागत में अचानक वृद्धि के खिलाफ उंगली उठाने की हिम्मत किसी में नहीं है।
पीएम नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की कॉरपोरेट समर्थक आर्थिक नीतियों से जो निकला, वह 'बेरोजगारी वाला विकास' का एक पाठ्यपुस्तक मामला था। भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। हम जल्द या थोड़ी देर से 'पांच ट्रिलियन' की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं, फिर भी हमारे युवा बेरोजगार रहेंगे! पिछले साल जब फ्रांस में पर्याप्त नौकरियाँ नहीं बनीं और मौजूदा नौकरियों में 'हायर एंड फायर' की नीति लायी गयी, तो देश का पूरा युवा बेहतर नौकरी और बेहतर वेतन की माँग को लेकर सड़कों पर उतर आया। एक पूरे हफ़्ते तक फ्रांस में ज़िंदगी ठहर सी गयी थी। आखऱिकार मैक्रोन की सरकार ने युवाओं की माँगों के आगे घुटने टेक दिये। 'हायर एंड फायर' की नीति को समय की गारंटी से बदल दिया गया। तभी स्थिति सामान्य हो सकी। नौकरियाँ बहुत ज़रूरी हैं!
जब भी अर्थव्यवस्था में मंदी आती है, तो सबसे पहले आकस्मिक कामगारों को मंदी का सामना करना पड़ता है। महिलाओं को सबसे पहले घर भेजा जाता है। फिर अस्थायी कामगारों का नंबर आता है। चूंकि असंगठित क्षेत्र में कोई यूनियन नहीं है, इसलिए गरीब कामगार ठेकेदारों की दया पर निर्भर हैं। रिपोर्ट कहती है कि जब भी बाजार में उथल-पुथल होती है, तो सबसे कम आय वाले लोगों की आय में सबसे ज्यादा गिरावट आती है।
मोदी सरकार ने एक और चाल चली है। गरीब लोगों को शिक्षा से दूर रखकर। ऐसे लोगों की रोजगार क्षमता कम हो जाती है। यह एक अवलोकन है कि जब युवा ठीक से शिक्षित नहीं होते हैं तो वे सबसे कम पारिश्रमिक पर जल्दी नौकरी की तलाश करते हैं। यह निजी कंपनियों के लिए अच्छा है।
जब कोई बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई किसी निजी कंपनी को सौंपी जाती है, तो सबसे पहले नया मालिक कर्मचारियों की संख्या कम कर देता है। इससे तुरंत लाभ की सीमा बढ़ जाती है। चूंकि काम वही रहता है, इसलिए मौजूदा कर्मचारियों को लंबे समय तक काम पर रहना पड़ता है। पूंजीवाद समर्थक स्तंभकार तुरंत निजी खिलाडिय़ों के अधीन कंपनी की कार्यकुशलता के बारे में लिखना शुरू कर देते हैं। वे चतुराई से इस तथ्य को छिपाते हैं कि बहुत से कर्मचारियों की नौकरी चली गयी और शेष कर्मचारियों का प्रतिदिन शोषण किया जा रहा है। बढ़ा हुआ लाभ शोषित श्रमिकों के खून-पसीने की कमाई का प्रतिबिम्ब है। हाल ही में भारत के एक बड़े पूंजीपति ने बैंगलोर में सत्तर घंटे काम करने का आह्वान किया।सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने तुरंत इस प्रस्ताव के खिलाफ आवाज उठाई।
जियो को लाभ में लाने के लिए, बीएसएनएल के 70,000 कर्मचारियों को वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) के नाम पर घर भेज दिया गया। वास्तव में उस योजना को सीआरएस (अनिवार्य सेवानिवृत्ति योजना) कहा जाना चाहिए था। कुछ समय तक जियो कम लागत पर सेवाएं देकर चमक सकता था। जब बीएसएनएल के ग्राहक जियो में बदल गये, तो असली खेल शुरू हुआ। अब जियो बहुत महंगा हो गया है और ग्राहक बीएसएनएल की ओर लौटना चाहते हैं। लेकिन समस्या यह है कि बीएसएनएल में अब कर्मचारियों की कमी है। जब तक सरकार तुरंत नये कर्मचारियों की भर्ती नहीं करती, ग्राहकों को परेशानी होती रहेगी और युवाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा।
कुछ साल पहले तक भारतीय रेलवे में कर्मचारियों की कुल संख्या 19 लाख थी। नई आर्थिक व्यवस्था शुरू होने के बाद भारतीय रेलवे में कर्मचारियों की संख्या में लगातार कमी की गयी। आज भारतीय रेलवे में कर्मचारियों की संख्या केवल 12 लाख रह गयी है। इस कमी का दुर्भाग्यपूर्ण प्रभाव सुरक्षा और सेवाओं पर पड़ा है। रेल पटरियों पर दुर्घटनाओं की एक श्रृंखला इस बात का प्रमाण है कि मानव संसाधन के अभाव में सबसे अच्छा स्वचालन भी विफल हो जाता है। जिस देश में हमारे पास तकनीकी रूप से शिक्षित मानव संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं, वहां स्वचालन पर किसी भी तरह की निर्भरता अनावश्यक है।
आज अधिकांश भारतीय युवा हैं। हमारी आबादी दुनिया में सबसे युवा है। इस स्थिति का उपयोग करने का सबसे अच्छा तरीका हमारे युवा बेटे-बेटियों के लिए अधिक से अधिक रोजगार सृजित करना है। इससे न केवल देश की विकास दर बढ़ेगी बल्कि इस महान भूमि के लाखों घरों में ढेर सारी खुशियाँ भी आयेंगी।भारत तभी समृद्ध होगा जब भारतीयों का जीवन सुखी होगा! (संवाद)


