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नरेंद्र मोदी सरकार को बांग्लादेश के साथ व्यवहार में सावधानी बरतनी होगी

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 5 अगस्त को अचानक अपना देश छोड़ दिया

नरेंद्र मोदी सरकार को बांग्लादेश के साथ व्यवहार में सावधानी बरतनी होगी
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- कल्याणी शंकर

नई दिल्ली का इंतजार करो और देखो की नीति अपनाने का फैसला एक सकारात्मक कदम है। स्थिति चुनावों के समय की स्थितियों, दो बांग्लादेशी नेताओं के बीच के संबंधों तथा उनकी भावी योजनाओं पर निर्भर करती है। यदि नया नेतृत्व उभरता है, तो नई दिल्ली को एक रुख अपनाने की आवश्यकता होगी। क्षेत्रीय शांति बनाये रखने के लिए बांग्लादेश को सामान्य स्थिति में लौटने में सहायता करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण और जरूरी है।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 5 अगस्त को अचानक अपना देश छोड़ दिया, जिससे उनके देश और दक्षिण एशिया क्षेत्र में तत्काल चिंता पैदा हो गई।
बीबीसी के अनुसार, सुरक्षा अधिकारियों ने नहीं, बल्कि हसीना के परिवार ने सुरक्षा चिंताओं के कारण उन्हें जाने के लिए राजी किया। उनके बेटे ने कहा, 'जैसे ही हिंसक भीड़ आई, हमने उनसे विनती की कि वे तुरंत चले जायें।' उनके भागने के तुरंत बाद भीड़ उनके घर में घुस गई। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दे, बाहरी भागीदारी और उग्र राजनीतिक विरोध पतन का कारण बना।

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद को उनकी भारत यात्रा और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों पर संभावित प्रभाव के बारे में जानकारी दी है। जिस अशांति के कारण वह चली गईं, उसमें करीब 560 लोगों की मौत हो चुकी है और इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है, जिसका असर क्षेत्रीय सुरक्षा और विदेशी संबंधों पर पड़ सकता है।

शुरू में, अपने 15 साल के लंबे शासनकाल में, हसीना को बांग्लादेश की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में देखा जाता था, जो आर्थिक बदलाव के लिए प्रयास कर रही थीं। हालांकि, बाद में वह असहिष्णु और सत्तावादी हो गईं, मीडिया आलोचकों पर नकेल कसने लगीं और विरोधियों को जेल में डाल दिया।

उन्होंने भारतीय नेताओं के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाये रखा, जिससे भारत विरोधी प्रदर्शन भड़क उठे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उल्लेख किया कि पिछले साल उन्होंने उनसे दस बार मुलाकात की थी। यह दोस्ती आपसी रही है, क्योंकि बेगम हसीना ने भी भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादियों को खदेड़कर और पारगमन सुविधाओं के लिए रियायतें देकर इसका बदला चुकाया। वह मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के दौरान पहली राजकीय अतिथि थीं।

1971 में बांग्लादेश के जन्म के बाद से ही भारत का बांग्लादेश के साथ एक विशेष संबंध रहा है। 1975 में बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद, हसीना ने भारत में छह साल बिताये। इसके बाद, वह अवामीलीग का नेतृत्व करने के लिए ढाका चली गईं।

स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 फीसदी आरक्षण और सरकारी पदों के लिए 56फीसदी कोटा के खिलाफ 5 जुलाई को शुरू हुए मौजूदा छात्र विरोध प्रदर्शनों ने बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया है। इस कोटे को बढ़ाने के हसीना सरकार के प्रस्ताव के कारण व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और 200 लोगों की मौत हो गई। बांग्लादेश की विपक्षी पार्टियों ने सरकार की नीतियों के प्रति बढ़ते असंतोष को व्यक्त करने के लिए 'लॉन्ग मार्च' का आयोजन किया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, हसीना और अमेरिका के बीच तनाव तब बढ़ गया जब देश से भागने के बाद उनका अमेरिकी वीजा रद्द कर दिया गया। अमेरिकी विदेश विभाग ने बांग्लादेश में दीर्घकालिक शांति और राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने में अंतरिम सरकार के महत्व पर जोर दिया। यू.के. और अन्य देशों ने भी यही रुख अपनाया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय डॉ. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का समर्थन करने के लिए काम कर रहा है, जो सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए जिम्मेदार हैं। नई दिल्ली ने स्थिति से निपटने के लिए एक निगरानी समिति का गठन किया है और सीमा नियंत्रण बढ़ा दिया है।

हसीना के जाने के बाद मैडम खालिदा जिया और अन्य विपक्षी नेताओं को रिहा कर दिया गया। खालिदा के दो कार्यकालों के दौरान बांग्लादेश-भारत संबंध कमजोर हुए। दिल्ली में उनकी यात्रा भी एक आपदा थी। खालिदा की रिहाई से उन्हें अपनी पार्टी का नेतृत्व करने में मदद मिल सकती है, और उन्होंने लोकतांत्रिक बांग्लादेश की आवश्यकता और शांति और एकता पर जोर दिया।

हसीना और खालिदा के बेटे अपनी-अपनी पार्टियों की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। इन दोनों और अन्य विपक्षी नेताओं की संभावित वापसी बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है।

हसीना के बेटे के अनुसार, वह किसी भी जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं, लेकिन अभी तक पार्टी के नेतृत्व पर फैसला नहीं किया है। इस बीच, हसीना ने अपने निष्कासन के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया। उनके बेटे का दावा है कि उनके पास इस्तीफा देने का समय नहीं था और वह अभी भी प्रधानमंत्री हैं। हसीना का समर्थन करने वाले बांग्लादेशियों ने व्हाइट हाउस और यू.के. के सामने विरोध प्रदर्शन किया है।

नई दिल्ली स्थिति पर बारीकी से नज़र रख रही है, खासकर सीमा और क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ-साथ बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के बारे में। मोदी सरकार बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर आशंकित है। प्रधानमंत्री ने हिंसक घटनाओं के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा का आह्वान किया है। हिंदू अल्पसंख्यकों ने सांप्रदायिक तत्वों द्वारा उन पर किये गये हमलों के विरोध में बांग्लादेश के प्रमुख शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किये।

बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था, जो ऊपर की ओर बढ़ रही थी, नवीनतम घटनाओं के कारण अब गिर रही है। देश आवश्यक वस्तुओं और बुनियादी ढांचे के लिए भारत पर निर्भर है। भारत अंतरिम सरकार के साथ निकट संपर्कमें है। भारत की बांग्लादेश के साथ 4096 किलोमीटर की सीमा है। भारतीय बीएसएफ भाग रहे बांग्लादेशियों, विशेष रूप से हिंदुओं और अवामीलीग के कार्यकर्ताओं के किसी भी अवैध प्रवेश को रोकने के लिए सक्रिय है। अगर बांग्लादेश में आंतरिक स्थिति स्थिर नहीं होती है तो सीमा पर बड़ा खतरा है।

नई दिल्ली का इंतजार करो और देखो की नीति अपनाने का फैसला एक सकारात्मक कदम है। स्थिति चुनावों के समय की स्थितियों, दो बांग्लादेशी नेताओं के बीच के संबंधों तथा उनकी भावी योजनाओं पर निर्भर करती है। यदि नया नेतृत्व उभरता है, तो नई दिल्ली को एक रुख अपनाने की आवश्यकता होगी। क्षेत्रीय शांति बनाये रखने के लिए बांग्लादेश को सामान्य स्थिति में लौटने में सहायता करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण और जरूरी है। एक शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध बांग्लादेश भारत के सर्वोत्तम हित में है। भारत को इसे सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।

घटनाक्रम तेजी से बदल रही है, और बांग्लादेश के भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य की अनिश्चितता स्पष्ट है। चुनावों की घोषणा होने और अंतरिम सरकार की योजनाओं का खुलासा होने के बाद हमें और अधिक जानकारी मिलेगी।


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