अमृतकाल में आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री
इलेक्ट्रानिक मीडिया के (कु) ख्यात एंकर ने पंद्रह अगस्त के मौके पर ये बताने की कोशिश की कि भारत छोड़ो आंदोलन का कोई योगदान आजादी में नहीं था

- सर्वमित्रा सुरजन
इलेक्ट्रानिक मीडिया के (कु) ख्यात एंकर ने पंद्रह अगस्त के मौके पर ये बताने की कोशिश की कि भारत छोड़ो आंदोलन का कोई योगदान आजादी में नहीं था। इस एंकर के मुताबिक 1947 में भारत ही नहीं बहुत से देशों को अंग्रेजों ने आजाद कर दिया, जबकि हमें इतिहास में पढ़ाया गया है कि भारत छोड़ो आंदोलन के कारण आजादी मिली।
दक्षिणपंथी सोच के लोग आजादी की लड़ाई के वक्त से गांधी-नेहरू से खौफ खाते थे। अंग्रेजों के खिलाफ जब देश के लाखों लोग गांधी, नेहरू, पटेल, बोस, आजाद और भगत सिंह के नक्शे कदमों पर चलकर हंसते-हंसते कुर्बानी देने तैयार हो जाते थे, तब हिंदू महासभा जैसे संगठनों के अनुयायी अपने को बचाने, अंग्रेजों के वफादार बनने और इन स्वाधीनता सेनानियों के प्रयासों को विफल करने में जुटे रहते थे। हालांकि इनकी कोशिशें कामयाब नहीं हुईं। देश स्वाधीनता सेनानियों और लाखों-करोड़ों हिंदुस्तानियों की त्याग और तपस्या के बूते आजाद हो गया। दक्षिणपंथी लोगों की निगाह में देश की आजादी से अधिक जरूरी हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को खाद-पानी देना था। गांधीजी इस कोशिश में उन्हें बाधक की तरह दिखे तो बेझिझक गांधी की हत्या कर दी गई। लेकिन नेहरू उनके लिए बड़ी चुनौती बने रहे। आजादी के बाद जिस तरह पं. नेहरू ने देश को संभाला, आगे बढ़ाया, दुनिया के मानचित्र में भारत को प्रतिष्ठा दिलाई, दसियों देशों की आजादी के लिए प्रेरणास्त्रोत बने, उससे नेहरू को लेकर संघ का डर और बढ़ता गया।
संघ ने पांच-छह दशकों का लंबा इंतजार किया कि उसे किसी तरह नेहरू से बदला लेने का मौका मिले। नेहरू के बारे में बेबुनियाद, झूठी खबरें अफवाही तंत्र ने बहुत फैलाई और अब इस नापाक साजिश में और तेजी आ चुकी है। अब देश से नेहरू के नाम को मिटाने वाले फैसले लिए जा रहे हैं। नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी का नाम बदलकर पीएम म्यूजियम एंड लाइब्रेरी कर दिया गया है। ये फैसला जून में ही लिया जा चुका था, लेकिन इसे 15 अगस्त के मौके पर ही अमल में क्यों लाया गया, ये गंभीरता से सोचने वाली बात है। कांग्रेस ने इस फैसले पर पलटवार किया है। लेकिन कांग्रेस को अब बातों से बढ़कर एक्शन में दिखने की जरूरत है। क्योंकि नेहरू के साथ अब आजादी के आंदोलन को खारिज करने की कोशिश भी शुरु हो गई है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के (कु) ख्यात एंकर ने पंद्रह अगस्त के मौके पर ये बताने की कोशिश की कि भारत छोड़ो आंदोलन का कोई योगदान आजादी में नहीं था। इस एंकर के मुताबिक 1947 में भारत ही नहीं बहुत से देशों को अंग्रेजों ने आजाद कर दिया, जबकि हमें इतिहास में पढ़ाया गया है कि भारत छोड़ो आंदोलन के कारण आजादी मिली। साफ तौर पर समझ आता है कि देश में नए किस्म का इतिहास लिखने की तैयारी हो रही है। 1947 के पहले के इतिहास में भारत के लिए दक्षिणपंथियों का कोई योगदान दर्ज नहीं है, तो इसे छिपाने के लिए इतिहास ही बदला जा रहा है। कुछ दिनों से प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह क्विट इंडिया के नारे को परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण से जोड़ रहे हैं, वो भी ऐसी ही कोशिश है। इस कोशिश को श्री मोदी लालकिले से भी दोहराते नजर आए। 77वें स्वतंत्रता दिवस पर लगातार दसवीं बार प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। इस तरह डॉ.मनमोहन सिंह की बराबरी उन्होंने कर ली। लेकिन इस महत्वपूर्ण मौके की गरिमा बनाए रखने की जगह श्री मोदी ने चुनावी रैली की तरह लालकिले से भाषण दिया। उन्होंने ये तक कह दिया कि अगले साल भी वो ही आएंगे। उनके पहले जितने भी प्रधानमंत्री हुए, सभी में कोई न कोई कमी रही होगी, लेकिन आत्ममुग्धता से कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा ग्रसित नहीं रहा, जैसा मोदीजी दिखाई दिए।
प्रधानमंत्री के भाषण में देश से अधिक सत्ता की चिंता नजर आई। लालकिले पर खड़े होकर भी उन्होंने विपक्ष को कोसने का मौका नहीं छोड़ा। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में देशवासियों को 'परिवारजन' कहकर संबोधित किया। जबकि इससे पहले अपने भाषणों में विपक्ष को परिवारवाद के नाम पर ही घेरने की कोशिश श्री मोदी करते रहे हैं और लालकिले से भी उन्होंने ऐसा ही किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' और कांग्रेस पर भी बिना नाम लिए तंज़ कसते हुए कहा, ''देश के लोकतंत्र में एक बीमारी आई है- परिवारवादी पार्टी. इनका एक ही मंत्र है- परिवार को, परिवार के लिए, परिवार के द्वारा।'' वहीं श्री मोदी ने देश की तीन बुराइयां बतलाईं भ्रष्टाचार, परिवारवाद,और तुष्टिकरण। जब से इंडिया का गठन हुआ है श्री मोदी इन्हीं तीन विषयों को हर मंच से उठाते रहे हैं। लालकिले से उन्होंने घमंडिया और परिवारवाद क्विट इंडिया जैसी बातें नहीं की, लेकिन जो कुछ कहा उसका मतलब इसी के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की खास बात ये रही कि उन्होंने शुरुआत में ही मणिपुर की बात की, जबकि पिछले साढ़े तीन महीनों से मोदी मणिपुर पर बोलने से वे बचते ही रहे हैं। संसद में भी उन्होंने मणिपुर पर केवल 2 मिनट दिए, लेकिन लालकिले से मोदी ने कहा कि ''पिछले समय से मणिपुर में हिंसा का जो दौर चला. कई लोगों को हिंसा को शिकार होना पड़ा. मां- बेटियों के साथ अत्याचार हुआ लेकिन कुछ दिनों से शांति की ख़बरें आ रही है।'' उन्होंने कहा कि 'देश मणिपुर के साथ है। केंद्र सरकार, राज्य के साथ मिलकर समाधान के प्रयास कर रही है और करती रहेगी'। वहीं मणिपुर की घटना को देश की एकता के साथ जोड़ते हुए श्री मोदी ने कहा घटना मणिपुर में होती है तो दर्द महाराष्ट्र में होता है। ये बात शायद राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के जवाब के लिए थी। लेकिन केवल दो लाइनों की बात चार हजार किमी की पदयात्रा का मुकाबला नहीं कर सकती।
खैर भाषण की शुरुआत प्रधानमंत्री ने मणिपुर से की तो आखिरी में अगले साल फिर से लाल कि़ले से भाषण देने की बात कही। जनता से अगले साल भी आने के लिए आशीर्वाद की अपील करना अलग बात है, ये काम चुनावी मंच से होना चाहिए। मगर नरेन्द्र मोदी ने जनता के सामने ऐलान कर दिया कि वे अगले साल भी आएंगे, इसका मतलब ये है कि उन्होंने भारत की लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली को ठेंगा दिखला दिया। जनता को ये तय करने का अधिकार नहीं दिया कि अगले साल वह किसे प्रधानमंत्री चुनना चाहती है, बस अपना फैसला सुना दिया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इतनी अलोकतांत्रिक बात जनता किस तरह स्वीकार करेगी, इस पर मंथन बेहद जरूरी है। सवाल ये भी है कि क्या श्री मोदी राहुल गांधी के बढ़ते कद की वजह से डर रहे हैं। पहले इंडिया और अब भारत माता के नाम की चुनौती उनके सामने पेश हो रही है।
राहुल गांधी ने स्वतंत्रता दिवस पर ट्वीट किया कि 'भारत माता हर भारतीय की आवाज है! वहीं भारत जोड़ो यात्रा और भारत माता की आवाज के बारे में एक खुली चि_ी में राहुल गांधी ने लिखा- 'पिछले साल मैंने एक सौ पैंतालीस दिन उस ज़मीन पर घूमते हुए बिताए जिसे मैं अपना घर कहता हूं। मैंने समुद्र के किनारे से शुरुआत की और गर्मी, धूल और बारिश से गुज़रा। जंगलों, कस्बों और पहाड़ियों से होते हुए, जब तक कि मैं मेरे प्यारे कश्मीर नहीं पहुंच गया।'
मेरी भारत माता, जमीन का टुकड़ा-भर नहीं, कुछ धारणाओं का गुच्छा-भर भी नहीं है, न ही किसी एक धर्म, संस्कृति या इतिहास-विशेष का आख्यान, न ही कोई खास जाति-भर। बल्कि हरेक भारतीय की आवाज है भारत माता, चाहे वह कमजोर हो या मजबूत। उन आवाजों में गहरे पैठी जो खुशी है, जो भय और जो दर्द है, वही है भारत माता।
भारत माता की यह आवाज सब जगह है। भारत माता की इस आवाज को सुनने के लिए आपकी अपनी आवाज को, आपकी इच्छाओं को, आपकी आकांक्षाओं को चुप होना पड़ेगा। भारत माता हर समय बोल रही हैं। भारत माता किसी अपने के कान में कुछ न कुछ बुदबुदाती है, मगर तभी-जब उस अपने का आत्म पूरी तरह से शांत हो, जैसे एक ध्यानमग्न मनुष्य का मौन।
सब कुछ कितना सरल था। भारत माता की आत्मा का वह मोती जिसे मैं अपने भीतर की नदी में खोज रहा था, सिर्फ भारत माता की सभी संतानों के हहराते हुए अनंत समुद्र में ही पाया जा सकता है।
भारत माता को देवी स्वरूप में प्रतिष्ठित कर उनकी जय-जयकार करने वालों को राहुल गांधी की ये बातें शायद ही समझ आएं। मगर देश को भारत माता के बारे में श्री गांधी के इन विचारों पर गौर करना चाहिए। वर्ना इतिहास का अधकचरा ज्ञान देश की आजादी को लील जाएगा।


