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नाले पर बना दिया तालाब

शासन गांव के विकास के लिये योजना बनाती है जिसके क्रियांवयन की जिम्मेदारी अधिकारी कर्मचारियों पर होती है परंतु इन अधिकारी कर्मचारी द्वारा योजना का क्या हाल किया जाता है

नाले पर बना दिया तालाब
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शासन की योजनाओं का लगा रहे पलीता
पेण्ड्रा । शासन गांव के विकास के लिये योजना बनाती है जिसके क्रियांवयन की जिम्मेदारी अधिकारी कर्मचारियों पर होती है परंतु इन अधिकारी कर्मचारी द्वारा योजना का क्या हाल किया जाता है यदि देखना है तो पेण्ड्रा-कोटमीकला मुख्य मार्ग पर खुज्जी नाला से लगे रोजगार गारंटी योजना से खोदे गए तालाब को देखा जा सकता है। यहां खुज्जी नाला में बीच धार में तालाब की मेढ़ बना दिया गया है जिसका तेज बारिश होने पर बहना निश्चित है। जिससे शासन का लाखों रूपया पानी में चला जायेगा।

पेण्ड्रा विकासखण्ड के ग्राम पण्डरीखार में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लगभग 9 लाख की लागत से इस वर्ष एक तालाब बनाया गया है। यह तालाब खुज्जी नाला से सटाकर इस तरह बनाया गया है कि तालाब की एक मेढ़ खुज्जी नाला के बीच धार में है। खास बात यह है कि जहां पर तालाब बनाया गया है। वहां खेतों और गांव का पानी खुज्जी नाले में मिलता है।

ऐसे में यह तालाब पहली बारिश भी बर्दाश्त कर ले तो बहुत बड़ी बात होगी। वहीं तालाब की मेढ़ खुज्जी नाले के लगभग बीच धार में है। बीते कई वशों से ठीक बारिस नही होने के कारण भले ही खुज्जी नाला सूखा हुआ है परंतु जब अच्छी बारिश होती है तब खुज्जी नाला पूरे उफान पर रहता है और वह पाटोपाट बहती है तब लाखों रूपये की लागत से बनाये गए इस तालाब की क्या स्थिति होगी यह तो अच्छी बारिश होने के बाद ही पता लगेगा।

तालाब निर्माण में जिस तरह की तकनीकी बरती गई है उससे यही पता लगता है तालाब निर्माण के प्रभारी इंजीनियर को तकनीकी ज्ञान बिलकुल नहीं है तथा उसने तकनीकी ज्ञान के अभाव में नदी के बीच धार में तालाब की मेढ बना दी है। जहां पर खुज्जी नाले में तालाब की मेढ़ बनी हुई है वहीं पर मुख्य मार्ग का पुल बना हुआ है। पुल में खड़े होने पर ही पता लग जाता है तालाब निर्माण में तकनीकी भूल हुई है।

उल्लेखनीय है कि सोन नदी की सहायक खुज्जी नाला में लटकोनी, गिरारी, पतगवां, कुडकई, झाबर, कुदरी खार का पानी आता है तथा यह नाला बाद में कोलबिरा के पास सोन नदी में मिल जाता है जिसमें बारिश के दिनों में अच्छा पानी रहता है। तालाब निर्माण के स्थान चयन को देखकर प्रथम दृष्टया तकनीकी लापरवाही तथा शासन के पैसों के दुरूपयोग का मामला दिखता है।


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