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मुजफ्फरनगर का शेरपुर : पुलिस पर गोकशी के नाम पर फायरिंग का आरोप, दर्जनों घायल

विपक्षी दल भी प्रशासन के साथ खड़े .... रिहाई मंच ने मुजफ्फरनगर के शेरपुर गांव का किया दौरा, जारी किया घायल व पीड़ितों के परिजनों का वीडियो

मुजफ्फरनगर/लखनऊ 11 जून 2017। रिहाई मंच ने मुजफ्फरनगर के शेरपुर गांव में पुलिसिया गोलीबारी में एक लड़के की आंख फूट जाने और कई बच्चों के बदन पर छर्रों के निशान पर सवाल उठाया है।

रिहाई मंच ने शेरपुर का दौरा करने के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि जो छर्रों के निशान बच्चों के बदन पर दिख रहे हैं, वो सामान्य नहीं हैं। ऐसे में इस पूरी घटना की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए, क्योंकि अगर ऐसे किसी विशेष हथियार का पुलिस इस्तेमाल कर रही है तो यह बेहद खतरनाक संकेत है।

रिहाई मंच प्रतिनिधि मंडल में रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम, लेखक व पत्रकार शरद जायसवाल, सेंटर फॉर पीस स्टडी के सलीम बेग, ऑल इंडिया एससी कम्यूनिटी ऑर्गनाइजेशन के लक्ष्मण प्रसाद, पटना हाई कोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिवक्ता संतोष सिंह शामिल रहे।

पुलिसिया गोलीबारी में आंख खो चुके 24 वर्षीय फरमान की बहन अंजुम ने जांच दल को बताया कि 2 जून को कांधला से वह साइकिल से मजदूरी करके आ रहा था कि पुलिस द्वारा की जा रही गोली बारी में उसकी आंख में गोली के छर्रे लग गए। बावजूद इसके पुलिस उसे अस्पताल नहीं ले गई। पुलिस वाले उसे जबरदस्ती उठा के लेकर चले गए और थाने में उसकी पिटाई भी की। गोली लगने के बाद आंख निकल आई थी। रात में तीन बजे उसे पुलिस ने छोड़ा जिसके बाद घर वाले उसे पहले मुजफ्फर नगर ले गए लेकिन वहां इलाज नहीं हो पाने के कारण उसे मेरठ ले जाया गया। लेकिन वहां से भी जब डॉक्टरों ने जवाब दे दिया तब उसे दिल्ली ले गए। उसकी पूरी आंख खराब हो गई है। छर्रा भी नहीं निकला डाक्टरों ने कहा है कि एक महीने बाद फिर ऑपरेशन से छर्रा निकाला जाएगा।

अंजुम ने बताया कि परिवार में वही एक कमाने वाला था।

8 साल के असलम ने बताया कि वह दूसरे बच्चों के साथ खेल रहा था, तभी उसकी बांह में गोली के छर्रे लग गए। लेकिन पुलिस ने उसका इलाज कराने के बजाए उसे थाने ले जाकर बुरी तरह पीटा और उसके सामने इस्लाम धर्म को गाली देते हुए कहा कि अब तुम लोगों को सूअर के मांस से अफ्तार करवाया जाएगा।

वहीं 15 वर्षीय शाहरुख ने अपनी बांह पर लगे छर्रों के निशान दिखाते हुए बताया कि उसे भी छर्रे लगने के बावजूद पुलिस ने कोई इलाज नहीं करवाया और थाने में पीटा भी।

असलम और शाहरुख ने बताया कि पुलिस ने उनको चेतावनी दी कि कोई भी पूछे तो मत बताना कि गोली के छर्रे लगे हैं, यही कहना कि खेलने में चोट लग गई है। वहीं 15 वर्षीय अकरम ने अपनी गरदन में लगे छर्रे के निशान दिखाते हुए भी पुलिसिया जुल्म की दास्तान बताई।

गांव के अंतिम छोर पर ईदगाह के पीछे कामिल की मां अनवरी मिलीं। रिहाई मंच जांच दल को उन्होंने बताया कि 2 जून को पुलिस एकाएक उनके घर में घुस गई। अफ्तार का वक्त था। जो कुछ सब्जी बनी थी उसको वो कहने लगे कि गाय का मांस बनाए हो और चूल्हा तोड़ दिया।

कामिल की पत्नी रिजवाना ने बताया कि पुलिस ने घर के अंदर जो बक्सा रखा था उसे भी पुलिस ने यह कह कर खुलवा दिया कि इसमें गाय का मांस छुपा कर रखा है। जब मैंने विरोध किया तो पुलिस ने मेरा कपड़ा फाड़ दिया और मुझे धक्का दे कर गिरा दिया। इसके बाद बक्सा खोलकर बेटी की शादी के लिए जो गहने बनाए थे उसको जबरन लेकर चले गए।

रिजवाना ने बताया कि पुलिस के डर से उन्होंने अपनी बच्चियों को रिश्तेदारी में भेज दिया। उन्होंने जांच दल को बताया कि अनिल और बाल किशुन ने ही सबसे ज्यादा तोड़-फोड़ और लूट की। पुलिस ने यूनुस के बेटों के घरो पर भी छापे मारी की और ठीक इसी तरह चूल्हा और घर में तोड़ फोड़ की। उनके घर की रिजवाना और नौशाबा ने पूरे हालात बताए।

इस्तखार के 75 वर्षीय बीमार पिता याकूब को भी पुलिस ने मारा-पीटा। इस्तखार की पत्नी आरिफा ने जांच दल को बताया कि उन्होंने जो अफ्तार के लिए बनाया था उसको पुलिस ने कहा कि ये गाय का मांस है। पुलिस ने गाय के मांस के नाम पर घर की तलाशी ली।

इस्तखार ने बताया कि घर में 36 हजार रुपए रखे थे पुलिस निकालकर लेकर चली गई। यहां भी उनके घरों में कांस्टेबल अनिल और बालकिशुन घुसे थे।

जांच समूह ने इस संबन्ध में गांव की प्रधान अफसरी बेगम के पति राव मुहम्मद हाशिम से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि मकानों की तलाशी के नाम पर औरतों को बेइज्जत किया गया। रात के खाने के लिए बने कढ़ी के पकौड़ी को फोड़वाकर चेक करवाया गया कि गौ मांस तो नहीं है। इसके बाद हमने सीओ साहब को फोन किया उन्होंने कहा कि वे थोड़ी देर में आएंगे। उसके बाद गाड़ी से पुलिस आई हमने सोचा कि सीओ साहब हैं पर जैसे ही गाड़ी रुकी पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया।

राव मुहम्मद हाशिम ने अपने शरीर पर लगे जख्मों के निशान दिखाते हुए बताया कि इसके बाद पुलिस गांव वालों पर लाठी चार्ज व गोली चलाने लगी। 2 जून को शाम साढ़े पांच-छह बजे के बीच की यह घटना है। चौकी इंन्चार्ज विनोद कुमार के साथ अनिल कुमार, अतुल, योगेश और बिना वर्दी में बाल कृष्ण आए थे। पुलिस गांव के पांच लड़कों को भी उठाकर ले गई। जिसमें अबरार, फरमान, सरफराज, शाहरुख व एक अन्य शामिल थे। जिसमें पुलिस ने अबरार और सरफराज का चलान करके जेल भेज दिया और बाकी 3 को छोड़ दिया।

राव मुहम्मद हाशिम ने जांच दल को बताया कि 27 मई को भी मुर्गा काटने के नाम पर हुए विवाद में उनकी सीओ और एसपी से वार्ता हुई थी।

जांच समूह ने जांच के दौरान पाया कि-

1- दरअसल यह मुर्गा काटने के नाम पर वसूली का मसला था जिसमें पुलिस जब अवैध वसूली नहीं कर पाई तो गौ मांस के नाम पर इस तरह का हमला किया।

2- गांव के जिन बच्चों को गोली के छर्रे लगे उनको पुलिस ने कहा कि किसी को यह मत बताना कि ये गोली के छर्रे के निशान हैं। कोई पूछे तो यही बताना कि आपस में मार-पीट में चोट लग गई। जबकि पुलिस ने इस घटना पर जो एफआईआर दर्ज किया है उसमें साफ लिखा है ‘भीड़ को हटाने के लिए सरकारी पम्प एक्शन 12 बोर से 3 हवाई फायर भी कराए’ जिससे साफ है कि जिन बच्चों को छर्रे लगे हैं वो पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में ही लगे हैं।

3- पुलिस ने 21 लोगों के खिलाफ जो नामजद मुकदमा दर्ज किया है। उसके तहत गांव वालों पर संगीन मुकदमें दायर किए हैं जिनकी धराएं कुछ इस तरह हैं मुकदमा अपराध संख्या 1081/17 धारा 147/143/149/332/333/353/354/504/307/427/435/336/349 भारतीय दंड विधान व 7 सीएलए एक्ट।

4- एफआईआर में लिखा है कि सूचना पर कि गांव शेरपुर में ईदगाह के पीछे कामिल व बुंदा के घर में गौकशी होने की सूचना है। यह बात पुष्ट करती है कि पुलिस गौ कशी के नाम पर गांव गई थी। अगर गौकशी हुई थी तो क्यों नहीं गौमांस पकड़ा गया। गाय के मांसा का न पाया जाना साबित करता है कि सूचना ही या तो गलत थी या फिर पुलिस ने गोमांस के बहाने मुसलमानों पर हमला बोला और उनके पैसों और गहनों की लूट की। गोकशी की झूठी खबर को अखबारों ने भी छापा है।

5- मुजफ्फरनगर के ग्राम नसीरपुर में 6 जून को सांप्रदायिक हिंसा के बाद बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गई। जिसमें महिलाओं को भी पुलिस उठाकर ले गई।


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