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मुस्लिम पक्षकारों का चबूतरे को राम का जन्मस्थान मानने से इंकार

अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने आज सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्वीकार किया कि कोर्ट में मामले की सुनवाई के इस स्तर पर उन्होंने गलती से राम चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान मान लिया था

मुस्लिम पक्षकारों का चबूतरे को राम का जन्मस्थान मानने से इंकार
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नई दिल्ली । अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने आज सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्वीकार किया कि कोर्ट में मामले की सुनवाई के इस स्तर पर उन्होंने गलती से राम चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान मान लिया था और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई की रिपोर्ट को विसंगतियों और अवसन्नताओं से भरा हुआ बताने के कारण उन्हें कोर्ट के तीखे सवालों का सामना करना पड़ा।

मामले की 31वें दिन की सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि वे राम चबूतरा को भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं, हालांकि उन्होंने 1885 में फैजाबाद कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती नहीं दी कि हिंदू भगवान के जन्मस्थान के तौर पर उस चबूतरे पर पूजा करते हैं।

राम चबूतरा विवादित स्थल के बाहरी आंगन में स्थित है, जो मुख्य गुंबद से 50 से 80 फुट की दूरी पर है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली न्यायाधीशों की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सवालों का सामना करने के बाद जिलानी ने स्वीकार किया कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और राम चबूतरा उनका जन्मस्थान था।

बुधवार को जिलानी ने हालांकि कहा कि इसका कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि बाबरी मस्जिद का अंदरूनी आंगन भगवान राम का जन्मस्थान है।

इस पर न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूण ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला दिया कि 1855 या 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम से पहले हिंदू और मुस्लिम मस्जिद के अंदर पूजा करते थे और यह बाड़ 1857 के बाद बनी है।

उन्होंने कहा, "चबूतरा हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान राम के जन्मस्थान की पहचान के तौर पर बना था।"

इस विचार का समर्थन करते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि 1855 या बाद में रेलिंग बना दी गई और जन्मस्थान बंट गया।

भूषण ने जिलानी से पूछा, "वे अंदर नहीं जा सके क्योंकि कोई रास्ता ही नहीं था। तो इसलिए चबूतरे का निर्माण किया गया?"

इसके जवाब में जिलानी ने कहा कि इस विचार को बल देने के लिए कोई सबूत नहीं है।

न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे ने इसके बाद मुस्लिम पक्षों से कुछ मुश्किल प्रश्न पूछे, "क्या कोई सबूत है कि 1855 से पहले और 1528 में बाबरी मस्जिद के निर्माण के बाद हिंदुओं ने पूजा करनी चाही हो और मुस्लिमों ने इंकार कर दिया हो? क्या किसी विवाद जैसे दोनों पक्षों में लड़ाई होने का सबूत है?"

उन्होंने जिलानी से ऐसा घटनाक्रम मांगा जब हिंदुओं ने विवादित ढांचे की चारदीवारी के अंदर पूजा की हो।

जिलानी ने कहा कि मस्जिद परिसर में गैर-हिंदू का पहला प्रवेश 1858 में हुआ, जब एक सिख आया और आंगन में झंडा लगा दिया। इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि सिख भगवान राम में विश्वास करते थे। उनके प्रवचनों में भगवान राम का उल्लेख है।

मुस्लिम पक्ष दूसरा कदम चलते हुए एएसआई रिपोर्ट को खारिज करने लगे। बहस गुरुवार को जारी रहेगी।


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