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छत्तीसगढ़ के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह में उमड़ रहे है संगीत प्रेमी

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में गणेश चतुर्थी से शुरू हुए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त10 दिवसीय 34वें चक्रधर समारोह में संगीत प्रेमियों की भीड़ निरन्तर उमड़ रही है

छत्तीसगढ़ के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह में उमड़ रहे है संगीत प्रेमी
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रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में गणेश चतुर्थी से शुरू हुए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त10 दिवसीय 34वें चक्रधर समारोह में संगीत प्रेमियों की भीड़ निरन्तर उमड़ रही है।

चक्रधर समारोह का इतिहास बेहद पुराना है और इसकी शुरूआत राजा भूपदेव सिंह द्वारा चक्रधर सिंह के जन्म के उपलक्ष्य में गणेश उत्सव के रूप में की गई थी।बाद में राजा चक्रधर सिंह के समय में इस उत्सव ने पूरे देश में ख्याति बटोरी थी।उस समय गणेश उत्सव एक माह का हुआ करता था और महल में कला, संगीत, लोक कला, साहित्य का दरबार लगा करता था। चक्रधर सिंह के दरबार में कला मर्मज्ञों का काफी सम्मान हुआ करता था।

रियासत काल के चोटी के कला गुरू राजा चक्रधर सिंह के दरबार में रहा करते थे। राजा चक्रधर सिंह की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी स्वयं राजा चक्रधर सिंह एक कुशल तबला वादक रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में संगीत से संबंधित कई ग्रंथों की रचना की है जिसमें राग रत्न मंजूसा, ताल तोए निधी प्रमुख हैं। इलाहाबाद के अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में संगीत सम्राट की उपाधि से नवाजा गया था।
देश की आजादी एवं रियासत के विलीनीकरण के बाद तथा राजा चक्रधर सिंह के देहावसान के बाद शहर के प्रसिद्ध गणेश उत्सव सुर, छंद, लय व ताल से सजने वाली परंपरा लडख़ड़ा सी गई और बाद में 1949 के बाद यह समारोह पूरी तरह से बंद हो गई।

रायपुर के सांसद रहे एवं गांधीवादी नेता स्वं केयूर भूषण की पहल पर 35 साल बाद 1984 में चक्रधर ललित कला केन्द्र की स्थापना की गई। 1985 में स्थानीय कलाकारों साहित्यकारों के सहयोग से 10 दिवसीय गणेश उत्सव चक्रधर समारोह की शुरूआत मोती महल से शुरू हुई और इस समारोह का पुर्नजन्म हुआ।


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