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कश्मीर में 33 साल बाद मुहर्रम का जुलूस

भारत प्रशासित कश्मीर में हजारों की संख्या में शिया मुसलमानों ने मुहर्रम का जुलूस निकाला. कई दशकों से यहां मुहर्रम का जुलूस निकालने पर प्रतिबंध था.

कश्मीर में 33 साल बाद मुहर्रम का जुलूस
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इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से वर्तमान में मुहर्रम का महीना चल रहा है. शिया मुसलमानों के लिए यह पूरी दुनिया में पवित्र माना जाता है जब पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन की शहादत की स्मृति में बड़े जुलूस निकाले जाते हैं. हुसैन की शहादत सातवीं सदी में हुई थी. हालांकि अधिकारियों ने कश्मीर में 1990 से ही इन जुलूसों पर प्रतिबंध लगा रखा था. इसके एक साल पहले कश्मीर के कई हिस्सों में सशस्त्र विद्रोह शुरू हुआ था खासतौर से उन इलाकों में जिन पर पाकिस्तान अपना दावा जताता है.

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कैसे निकला जुलूस

चार साल पहले कश्मीर का प्रशासन सीधे अपने हाथ में लेने के बाद भारतकी केंद्रीय सरकार कश्मीर में सुरक्षा हालात के सुधरने का श्रेय लेने के लिए आतुर है. कई दशकों से यहां चली आ रही अशांति ने कश्मीरी लोगों को बहुत परेशान किया है. जुलूस के दौरान श्रीनगर की सड़कों पर जब लोग छाती पीटते और झंडे लहराते चले तो उनके साथ साथ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी सुरक्षा के लिए मौजूद थे. इससे पहले अधिकारियों और मौलवियों के बीच कई दौर की बातचीत हुई जिसके बाद जुलूस की अनुमति दी गई.

जुलूस के शांति से गुजर जाने के बाद नगर प्रशासन के शीर्ष अधिकारी मोहम्मद एजाज ने पत्रकारों से कहा, "यह शांति का लाभांश है." 1990 के बाद कुछ छोटे जुलूसों की अनुमति दी गई है लेकिन अकसर इसका नतीजा हिंसा के रूप में सामने आया. जुलूस निकालने वाले आजादी की मांग करने लगते हैं जिसके बाद सुरक्षा बल भीड़ को तितर बितर करने के लिए आंसू गैस और पैलेट गन का इस्तेमाल करते हैं.

कश्मीर के सुरक्षा हालात

कश्मीर में शिया मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, यहां बड़ी संख्या सुन्नी मुसलमानों की है. हालांकि अधिकारियों का मानना है कि करीब 1.4 करोड़ की आबादी वाले इस इलाके में 10 फीसदी आबादी शियाओं की है. इस साल का जुलूस मौजूदा पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा था और इसमें बड़ी संख्या में लोगों को हिस्सा लेने दिया गया. अधिकारियों ने शर्त रखी थी कि जुलूस की अनुमति तभी दी जाएगी जब लोग "राष्ट्रविरोधी नारे और प्रचार" नहीं करेंगे ना ही विद्रोही गुटों या "प्रतिबंधित संगठनों" का कोई जिक्र करेंगे.

कश्मीर में 1989 में भारत के खिलाफ शुरू हुए विद्रोह के बाद दसियों हजार आम लोग, सैनिक और विद्रोहियों की जान गई है. भारत सरकार ने कश्मीर को मिला विशेषाधिकार 2019 में खत्म कर दिया. इसके बाद भारतीय पर्यटकों का यहां आना काफी ज्यादा बढ़ गया है. कई दशकों तक बंद रहने के बाद पिछले साल यहां सिनेमा हॉल खुल गये. इस साल मई में यहां जी20 की बैठक भी हुई. हालांकि आलोचकों का कहना है कि सरकार ने अशांति रोकने की कोशिश में नागरिक स्वतंत्रता में भारी कटौती की है. यहां पत्रकारों, सार्वजनिक विरोध और धार्मिक गतिविधियों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गये हैं.


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