बुंदेलखंड में खेली जाती है कीचड़ की होली
होली, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा त्योहार जिसका नाम आते ही आंखों के सामने सात रंगों की छटा उभरने लगती है

झांसी। होली, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा त्योहार जिसका नाम आते ही आंखों के सामने सात रंगों की छटा उभरने लगती है । जैसे रंगीला यह त्योहार है उतने ही तरीकों से देशभर में और दुनिया के दूसरे हिस्सों में जहां भारतीय लोग मौजूद हैं यह मनाया भी जाता है। इसी संदर्भ में ऐतिहासिक रूप से होली की उदगमस्थली माने जाने वाले बुंदेलखंड की धरती पर होली जलने के पहले दिन कीचड़ की होली खेलने का चलन है और इसके बाद दौज से रंगों की होली शुरू होती है जो रंगपंचमी तक चलती है।
रंग बिरंगे इस त्योहार का उदगम स्थल ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से बुंदेलखंड की ह्रदयस्थली झांसी जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर की दूरी पर बामौर विकासखंड में स्थित “ एरच धाम” को माना जाता है। होली का त्योहार भक्त प्रहलाद से जुड़ा है और श्रीमद् भागवत पुराण में सतयुग में भक्त प्रह्लाद का प्रसंग आता है जिसमें बताया गया है कि हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप दो राक्षस भाई थे, इनकी राजधानी एरिकेच्छ थी जो अब परिवर्तित होकर एरच हो गया। एरच जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी की दूरी पर बामौर विकासखण्ड में स्थित है। कथा में बताया जाता है कि जब पृथ्वी का हरण कर उसे पाताल लोक में हिरण्याक्ष ले जा रहा था, तब भगवान विष्णु ने वाराह अवतार में आकर हिरण्याक्ष का वध किया था। इस तरह भगवान ने पृथ्वी की रक्षा कर उसे वापस स्थान पर रख दिया था। तब से हिरण्याक्ष का भाई हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगा था।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद हुआ। उसका पालन पोषण मुनि आश्रम में होने के कारण वह बालक विष्णु भक्त हो गया। यह बात उसके पिता को बर्दाश्त नहीं हुई और उसने अपने पुत्र को तरह-तरह की यातनाएं देकर विष्णु की भक्ति से अलग करना चाहा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके बाद राक्षसराज अपने पुत्र को मारने के तमाम तरीके अपनाए, जब वह सबमें नाकाम रहा तो उसने अपनी बहन होलिका को यह काम सौंपा। होलिका को वरदान था कि वह जलती आग में बैठ जाएगी तो भी उसे आग की लपटें छू नहीं सकती थी। प्रह्लाद को उसके हवाले कर दिया गया और होलिका प्रह्लाद की हत्या करने के लिए उसे गोद में लेकर आग में बैठ गयी लेकिन प्रभु इच्छा के चलते प्रह्लाद के स्थान पर होलिका ही जल गई। यह देख अत्यंत क्रोधित हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए तलवार उठाई तो तलवार एक खंभे मे जा लगी और नरसिंह रुप में भगवान विष्णु प्रकट हो गए। उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। अपने राजा का वध होते देख हजारों राक्षसों उत्पात मचाना शुरु कर दिया। और नरसिंह भगवान को घेर लिया। नरसिंह जी ने उन सभी का भी वध कर दिया। तब से इस राक्षसी उपद्रव को कीचड़ की होली के रूप में बुंदेलखंड में मनाया जाता है।
इस संबंध में कथा व्यास गौरांगी देवी बताती हैं कि कुछ दिन पूर्व तक इस होली को अच्छे लोगों की होली नहीं कहा जाता था बल्कि उत्पात मचाने वाले ही इस होली को खेलते थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद जब भक्त प्रह्लाद का राज्याभिषेक कर दिया गया तो उत्पात थम गया और फिर खुशी में रंगों और फूलों की होली मनाई गई इसीलिए दौज पर रंगों की होली होती है जो रंगपंचमी तक चलती है।
इस कथा के बुंदेलखंड के साथ संबंध और होली का उदगमस्थल एरच ही होने के संबंध में पुरातात्विक प्रमाण भी मौजूद हैं। एरच में मिली होलिका और प्रह्लाद समेत नरसिंह की मूर्तियां इस बात को प्रमाणित करती हैं कि कहीं और नहीं बल्कि भक्त प्रह्लाद का जन्म एरच में ही हुआ था।
बौद्ध शोध संस्थान के उपाध्यक्ष और राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त इतिहासविद् हरगोविन्द कुशवाहा भी बताते हैं कि बुन्देलखंड ही वह धरा है जिसने विश्व का मार्गदर्शन किया। वह भी होलिका दहन के बाद होने वाले होली को उपद्रवी राक्षसों के उत्पात की होली बताते हैं, बाद में जब दोनों पक्षों में समझौता हो गया तो सभी खुशी में रंग और पुष्पों की वर्षा कर होलिका के दहन को उत्सव की तरह मनाते हैं। उन्होंने बताया कि यह कोई कल्पना नहीं है बल्कि अंग्रेजों ने झांसी के गजेटियर में भी इसका जिक्र किया है। गजेटियर के पृष्ठ 339 पर एरच और ढिकौली का जिक्र है। उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान एरच में 250 फुट जमीन के नीचे मिली पत्थर की होलिका और उसकी गोद में प्रह्लाद की मूर्ति इस बात का प्रमाण है कि यह वही एरिकेच्छ है,जो कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करता था। यहां पर आज भी कई सिक्के लोगों को खेतों में मिलते रहते हैं जो उस शासन की पुष्टि करते हैं।


