मप्र : महिलाओं का खुशहाल हुआ जीवन, धुएं से मिली मुक्ति
कई बार छोटी-छोटी समस्याएं जहां जीवन को मुश्किल भरा बना देती हैं तो सार्थक कोशिश हालात को बदल देती है

आगर-मालवा। कई बार छोटी-छोटी समस्याएं जहां जीवन को मुश्किल भरा बना देती हैं तो सार्थक कोशिश हालात को बदल देती है। मध्य प्रदेश के आगर-मालवा जिले के चिपिया गांव में भी ऐसा ही कुछ हुआ है, जहां गोबर गैस संयंत्र ने महिलाओं की जिंदगी को खुशहाल बना दिया है।
महिलाओं को जहां एक तरफ धुएं से मुक्ति मिली है, तो वहीं दिनभर लकड़ी और गोबर का इंतजाम करने में बर्बाद होने वाला समय भी बच रहा है।
आगर-मालवा जिले का चिपिया गांव की आबादी लगभग एक हजार है और यहां ढाई सौ परिवार निवास करते हैं। यहां खाना बनाने के लिए महिलाएं लकड़ी और कंडे का उपयोग कर चूल्हे में भोजन बनाती रही हैं। इससे महिलाओं को धुएं की समस्या से दो-चार तो होना ही पड़ता था, साथ ही मकान भी अंदर से काले हो जाते थे।
चिपिया गांव की महिलाओं को धुएं की समस्या से छुटकारा दिलाने के मकसद से युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका की संस्था इंजीनियर्स विदाउट बार्डर्स (ईडब्ल्यूबी) ने रिलायंस फाउंडेशन के साथ मिलकर लगभग एक करोड़ रुपये की लागत से चिपिया गौशाला में गौबर गैस प्लांट स्थापित करने की योजना बनाई, ताकि ग्रामीणों को गौबर गैस से भोजन बनाने की सुविधा उपलब्ध कराई है।
गांव की माणक बाई बताती है कि पहले चूल्हा जलाया करते थे तो लकड़ी नहीं मिलती थी। इस स्थिति में जंगल लकड़ी बीनने जाना होता था। इतना ही नहीं, खाना बनाते समय धुआं उठता था, जिससे आंखों को भी नुकसान होता था। मकान भी काला होता था। अब बायोगैस के चलते इन समस्याओं से मुक्ति मिल गई है।
ईडब्ल्यूबी के हिमांशु डबार बताते है कि ईडब्ल्यूबी संस्था से जुड़े हुए दुनियाभर के इंजीनियर अपनी और से संस्था में अंशदान तथा साथ ही सेवाएं भी देते हैं। संस्था के वॉलेंटियर्स इस राशि को लोगों के कल्याण व सुविधा के लिए खर्च करते हैं। चिपिया में रिलायंस फाउंडेशन के साथ मिलकर बायोगैस संयंत्र स्थापित किया है। इससे घरों तक जहां गैस पहुंच रही है और घरों का चूल्हा जलाने की पहल की है, वहीं गोबर का उपयोग खाद के तौर पर भी किया जाता है।
बताया गया है कि इस योजना के मुताबिक, गौशाला से पाइप लाइन डालकर लगभग सौ घरों तक गैस पहुंचाने की योजना बनाई गई। इस योजना के तहत अब तक 70 घरों तक गैस पाइप लाइन पहुंच चुकी है। गौशाला से चिपिया तक तीन किलोमीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछाकर ग्रामीणों को कनेक्शन दिए गए हैं। गैस के बदले प्रतिमाह ग्रामीणों से आने वाली राशि को गौशाला के खाते में जमा की जाती, जिससे गौशाला भी आत्मनिर्भर बन रही है।
रिलायंस फाउंडेशन के सुनील श्रीवास्तव ने बताया है कि यह कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'लोकल को वोकल' के संदेश को मजबूती प्रदान करने वाली है। बायोगैस संयंत्र के चलते जहां महिलाओं की परेशानी दूर हो रही है, वहीं गोबर की खाद से उर्वरक क्षमता भी बढ़ रही है।
स्थानीय पत्रकार महेश शर्मा का कहना है कि 800 से अधिक गायों वाली इस गौशाला में प्रतिदिन तीन टन गोबर निकलता है। गोबर की उपलब्धता को देखते हुए इस बायोगैस संयंत्र के स्थापित होने से ग्रामीणों के समय की बचत तो हुई ही है, साथ ही महिलाओं की धुआं संबंधी समस्या भी मुक्ति मिली है, घर काले नहीं होंगे। इसके अलावा ग्रामीण जितना समय जंगल जाकर ईंधन के लिए लकड़ी-कंडे इकट्ठा करने में लगाते हैं। उसका उपयोग अन्य कार्यो में अच्छी जगह कर सकेंगे, इसके साथ ही पेड़-पौधों तथा जंगल की कटाई पर भी रोक लगेगी।


