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मोदी के सपने को पूरा करने की दिशा में मप्र ने बढ़ाया कदम

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दो दिन तक चले अखिल भारतीय वार्षिक सम्मेलन में जल संरक्षण और संचय के साथ उसके उपयोग पर चर्चा हुई

मोदी के सपने को पूरा करने की दिशा में मप्र ने बढ़ाया कदम
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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दो दिन तक चले अखिल भारतीय वार्षिक सम्मेलन में जल संरक्षण और संचय के साथ उसके उपयोग पर चर्चा हुई। इस दिशा में मध्य प्रदेश ने बड़ा कदम उठाने का साफ सन्देश और संकेत दिया है।

राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान कर दिया है कि राज्य में जल नीति जल्दी बनाई जाएगी। देष भर के जल मंत्रियों का भोपाल में जमावड़ा रहा, जिसमें पानी को लेकर विजन 2047 मंथन हुआ।

सभी राज्यों के लिए जल का संरक्षण, संचय, बारिश के पानी के ज्यादा से ज्यादा हिस्से को अपने राज्य की धरती पर रोकना बड़ी चुनौती है, वहीं उसका दोहन व्यवस्थित से हो, यह भी बड़ा सवाल है। ऐसा इसलिए क्योंकि पेयजल, सिंचाई जल, अपशिष्ट पुनर्चक्रीकरण से प्राप्त जल, औद्योगिक जल, वर्षा जल और भूजल के उपयोग व प्रबंधन के लिए कोई स्पष्ट नीति भी नहीं है।

राज्य के मुख्यमंत्री चौहान ने इस आयोजन के दौरान कहा मध्यप्रदेश में जल-संरक्षण और उसके मितव्ययी उपयोग के लिए संवेदनशीलता के साथ गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। सिंचाई क्षमता सात लाख से बढ़ कर 43 लाख हेक्टेयर हो गई है। जल के मितव्ययी उपयोग के लिए पाइप लाइन और स्प्रिंकलर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।

प्रदेश में वर्ष 2007 में जलाभिषेक अभियान आरंभ किया गया। प्रदेश में नदी पुनर्जीवन के कार्य को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। नर्मदा सेवा यात्रा में नदी के दोनों ओर वृक्षारोपण को अभियान के रूप में लिया गया।

राज्य में एक तरफ जहां जल संरक्षण और उसकी मितव्ययता को रोकने की दिशा में प्रयासों का मुख्यमंत्री ने हवाला दिया, तो वहीं दूसरी तरफ वादा किया कि राज्य में जल नीति बनाई जाएगी। जानकारों का मानना है कि अगर राज्य में जल नीति बन जाती है तो एक तरफ जहां उन विभागों में सामन्जस्य बनेगा, जिनका वास्ता पानी से होता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह माना है कि राज्यों में भी विभिन्न मंत्रालयों जैसे जल मंत्रालय हो, सिंचाई मंत्रालय हो, कृषि मंत्रालय हो, ग्रामीण विकास मंत्रालय हो, पशुपालन का विभाग हो। उसी प्रकार से शहरी विकास मंत्रालय, उसी प्रकार से आपदा प्रबंधन। यानी के सबके बीच लगातार संपर्क और संवाद और क्लियरिटी व विजन होना बहुत आवश्यक है। अगर विभागों को एक दूसरे से जुड़ी जानकारी होगी, उनके पास पूरा डेटा होगा, तो उन्हें अपनी प्लानिंग में भी मदद मिलेगी।

प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा था, हमें पॉलिसी लेवेल पर भी पानी से जुड़ी परेशानियों के समाधान के लिए सरकारी नीतियां और ब्यूरोक्रेटिक प्रक्रियाओं से बाहर आना होगा। हमें समस्या को पहचानने और उसके समाधान को खोजने के लिए टेक्नालजी को, इंडस्ट्री को, और खासकर स्टार्टअप्स को साथ जोड़ना होगा। जियो-सेन्सिंग और जियो मैपिंग जैसी तकनीकों से हमें इस दिशा में काफी मदद मिल सकती है।

जानकारों की मानें तो विभागों के बीच आपसी सामन्जस्य के अभाव में कई तरह की समस्याओं का सामना करना होता है। योजना होने में देरी होती है, लागत बढ़ती है और जरुरतमंद वर्ग को लक्ष्य के मुताबिक लाभ नहीं मिलता।

मसलन सिंचाई परियोजनाओं को लेकर पहले से समस्याओं के निदान पर ध्यान नहीं दिया जाता,योजना की निविदा जारी कर दी जाती है, निर्माण कंपनी निविदा के मुताबिक काम शुरू कर देती है और जमीन का अधिगृहण की प्रक्रिया बाद में ष्षुरु होती है। इसके चलते योजना में विलंब होता है तो वही लागत भी बढ़ती है। साथ ही जरुरतमंद को वर्षों बाद इसका लाभ मिल पाता है।


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