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मप्र : गांधी की यादों को संजोने वाला 'दूसरा राजघाट' बनेगा दूसरी जगह

सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ने से मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी की सभ्यता और संस्कृति तो प्रभावित होगी ही, साथ ही महात्मा गांधी की यादों को संजोने वाला 'दूसरा राजघाट' भी नदी में जलसमाधि लेने वाला है

मप्र : गांधी की यादों को संजोने वाला दूसरा राजघाट बनेगा दूसरी जगह
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भोपाल। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ने से मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी की सभ्यता और संस्कृति तो प्रभावित होगी ही, साथ ही महात्मा गांधी की यादों को संजोने वाला 'दूसरा राजघाट' भी नदी में जलसमाधि लेने वाला है। इस दूसरे राजघाट को कुकरा गांव में शिफ्ट किया जाना है और वहां फिर से बनाना है। इस काम के लिए राज्य सरकार ने सिर्फ सवा लाख रुपये मंजूर किए हैं।

इतनी कम रकम मंजूर किए जाने पर विपक्ष ने शिवराज सरकार को असंवेदनशील करार दिया है।

राजघाट के तौर पर ज्यादातर लोगों को नई दिल्ली का महात्मा गांधी का समाधि स्थल ही याद आता है, मगर एक और राजघाट है जो मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। बड़वानी का राजघाट दिल्ली के राजघाट से कम महत्व का नहीं है, क्योंकि यहां बनाई गई समाधि में महात्मा गांधी ही नहीं कस्तूरबा गांधी और उनके सचिव रहे महादेव देसाई की देहराख (एश) रखी हुई है।

राज्य सरकार के नर्मदा घाटी विकास मंत्री लाल सिंह आर्य ने भी विधानसभा में विधायक रमेश पटेल के सवाल के जवाब में माना है कि कई गांव के साथ राजघाट भी डूब क्षेत्र में आएगा और उसका विस्थापन किया जाना है। गांधी स्मारक के लिए कुकरा गांव में बनाए गए पुनर्वास स्थल पर विस्थापित मंदिरों के पास चार हजार वर्ग मीटर में बनाया जाएगा। इसके लिए बड़वानी जिलाधिकारी के खाते में एक लाख 25,022 रुपये की राशि भी जमा कराई गई है।

इस स्थान पर गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी तीनों महान विभूतियों की देह राख जनवरी 1965 में लाए थे और समाधि 12 फरवरी, 1965 को बनकर तैयार हुई थी। इस स्थल को राजघाट नाम दिया गया। बताते हैं कि त्रिवेदी ने इस स्थान को गांधीवादियों का तीर्थस्थल बनाने का सपना संजोया था। ताकि यहां आने वाले लोग नर्मदा के तट पर गांधी की समाधि के करीब बैठकर अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ सकें।

समाधि स्थल पर एक संगमरमर का शिलालेख लगा है, जिसमें छह अक्टूबर, 1921 में महात्मा गांधी के 'यंग इंडिया' में छपे लेख का अंश दर्ज है। इसमें लिखा है, "हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति और हमारा स्वराज अपनी जरूरतें दिनों दिन बढ़ाते रहने पर, भोगमय जीवन पर, निर्भर नहीं करते, परंतु अपनी जरूरतों को नियंत्रित रखने पर, त्यागमय जीवन पर, निर्भर करते हैं।"

यह स्थान उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है, जो अहिंसा और गांधी के समर्थक हैं। मेधा पाटकर से लेकर बाबा आम्टे जैसे लोगों को यहां से प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने रास्ते को आगे बढ़ाया।

बड़वानी के जिलाधिकारी तेजस्वी नायक ने आईएएनएस को बताया, "प्रारंभिक तौर पर राजघाट को कुकरा पुनर्वास स्थल के करीब अस्थायी रूप से स्थापित किया जाना है। स्थानीय लोगों की मंशा भव्य स्मारक बनाने की है, इस बात का ध्यान रखते हुए उनकी ओर से शासन को एक प्रस्ताव भेजा जा रहा है, ताकि शासन भव्य स्मारक के लिए राशि मंजूर कर सके।"

वहीं नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने राजघाट को विस्थापित करने की योजना का विरोध करते हुए कहा, "वह स्थान मध्यप्रदेश के लिए गौरवशाली है, एक तीर्थ है, वहां लोग अहिंसा का पाठ पढ़ने जाते हैं, महात्मा गांधी की स्मृति को ही विस्थापित करना राज्य सरकार के असंवेदनशील, असहिष्णु रवैए को जाहिर करने वाला है। इन लोगों से यही उम्मीद है। इन्होंने कभी गांधी को नहीं स्वीकारा और स्वीकारते भी हैं तो मजबूरी के चलते।"

निर्माण कार्यो से जुड़े लोगों का मानना है कि सवा लाख रुपये में एक अच्छा कमरा ही बन पाता है, इतनी राशि में चार हजार वर्ग फुट में निर्माण कार्य कैसे होगा, यह तो कराने वाले ही जानें। अगर इतने क्षेत्र में सरकारी स्तर पर निर्माण हो गया तो वह अचरज होगा।

ज्ञात हो कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाकर 138 मीटर की जा रही है। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश है कि 31 जुलाई के पहले पुनर्वास का काम पूरा हो जाए और उसके बाद ही उस ऊंचाई तक पानी भरा जाए। इसके चलते मध्यप्रदेश के 192 गांव और एक नगर के लगभग 40 हजार परिवार प्रभावित होने वाले हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर का आरोप है कि अभी तक पुनर्वास नहीं हुआ है और प्रशासन लोगों को डरा धमकाकर गांव व मकान खाली करा रहा है। इतना ही नहीं, इस परियोजना से मध्यप्रदेश के खाते में सिर्फ नुकसान और गुजरात के खाते में मुनाफा ही मुनाफा आने वाला है।

- संदीप पौराणिक


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