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छात्रवृत्ति घोटाले बाजों पर मेहरबान है एमपी सरकार! क्या यह व्यापम 2 है?
जिस तरह व्यापम कांड में पूरा सिस्टम शामिल था उसी प्रकार का बड़ा घोटाला या कहें उससे भी बड़ा घोटाला यह भी है। जिस तरह उस घोटाले में सैंकड़ों आरोपी थे उसी तरह इस घोटाले में भी सैंकड़ों आरोपी हैं अब तक 100 पर तो एफआईआर दर्ज हो चुकी है। जब व्यापम घोटाले की जांच सीबीआई ने कि थी तब....

गजेन्द्र इंगले
भोपाल/ ग्वालियर: मध्य प्रदेश में पैरामेडिकल छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपियों पर सरकार जमकर मेहरबान है। इस बात का अंदाज़ा आप इस बात दे लगा सकते हैं कि न तो हाईकोर्ट को सही जानकारी दी जा रही और न ही जांच निष्पक्ष हो रही है। सालों से चल रहे छात्रवृत्ति घोटाले में मध्यप्रदेश के सैंकड़ों कॉलेज संलिप्त है जो मंत्रियों के खास दार लोगों द्वारा संचालित है। ग्वालियर में तो हालात ये हैं कि जब कभी कोई पुलिस अधिकारी छात्रवृत्ति घोटाले की परतें खोलता है तो उसका ट्रांसफर करा दिया जाता है। यह घटनाक्रम आपको फिल्मी लग सकता है। लेकिन मध्यप्रदेश में हुए छात्रवृत्ति घोटाले का काला सच यही है।
मामला जबलपुर हाईकोर्ट में है। कई अवसर देने के बाद भी इन कॉलेजों के खिलाफ कार्यवाही न होने से नाराज मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर 25 हजार की कॉस्ट लगा दी थी। कई कॉलेजों से उस छात्रवृत्ति राशि की वसूली होनी है जो उन्होंने अवैध तरीके से फर्जी एकाउंट खोल कर हड़प ली थी। लेकिन इस वसूली में भी प्रदेश सरकार उदासीन नजर आ रही है। हालाकि सरकार ने कोर्ट मै बताया है कि जिन कॉलेजों की राशि वापस नहीं आई है उनकी सम्पत्ति की नीलामी जल्द की जाएगी। चीफ जस्टिस रवि मलिमठ व चीफ जस्टिस विशाल मिश्रा की पीठ ने जबलपुर व ग्वालियर के ऐसे सभी कॉलेजों का रिकॉर्ड मांगा है। जिन पर अब तक कार्यवाही की गई है।
प्रदेश के सैकड़ों निजी पैरामेडिकल कॉलेजों के संचालकों ने 2010 से 2015 तक फर्जी छात्रों का प्रवेश दिखाकर करोड़ों रुपए की छात्रवृत्ति हड़प ली थी. इस मामले मै जब पुलिस ने जांच शुरू की तो कई कोलेज में फर्जी छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति हड़पना पाया गया। इस घोटाले कि जांच इतना आसान नहीं है जितना फोरी तौर पर देखने मै लगता है। देशबन्धु संवाददाता ने इस घोटाले कि गहराई समझने के लिए कई कोलेज संचालकों व कई जांच अधिकारियों से बात की है। इस बातचीत के दौरान कई चौंकाने वाले सच भी सामने आए। जांच अधिकारी ने बताया कि अनुसूचित जाति जनजाति विभाग से किसी भी प्रकार का रिकॉर्ड मांगना बहुत मुश्किल काम रहा है। कई मामलों में तो रिकॉर्ड दीमक खाना बता कर विभाग ने पल्ला झाड़ लिया। मतलब साफ है कि इस विभाग में ही इस घोटाले के पुख्ता सबूत बन्द है। जो यदि बाहर निकले तो कई सफेदपोशों के काले चेहरे जनता के सामने होंगे।
इस छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में पता चला कि जिन छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति निकाली गई, वे परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए.एक ही छात्र के नाम पर कई कॉलेजों में एक ही समय में छात्रवृत्ति निकाली गई थी। जांच के बाद प्रदेश भर में 100 से ज्यादा कॉलेज संचालकों पर एफआईआर दर्ज हुई थी। इसके बाद पूरे प्रदेश में निजी पैरामेडिकल कॉलेजों से करोड़ों रुपए की वसूली के आदेश जारी हुए थे। लेकिन अभी तक वसूली नहीं हो पाई। पैरामेडिकल छात्रवृत्ति घोटाले में लोकायुक्त में भी 100 से अधिक मामले दर्ज हैं। इस मामले में प्रदेश भर के निजी पैरामेडिकल संचालकों से 24 करोड़ रुपए वसूल किए जाने हैं,लेकिन अभी तक केवल 1.23 करोड़ रुपए वसूल किए गए हैं। मतलब साफ है कि इतने बड़े गड़बड़झाले में भी सरकार और प्रशासन बहुत ज्यादा सक्रियता से काम नहीं कर रहा है । कोर्ट को संतुष्ट करने के लिए जितने कार्यवाही की ज़रूरत होती है उतनी दिखाकर इतिश्री कर ली जाती है।
अब आप यह समझें कि इस छात्रवृत्ति घोटाले को व्यापम 2 क्यों कहना उचित होगा। जिस तरह व्यापम कांड में पूरा सिस्टम शामिल था उसी प्रकार का बड़ा घोटाला या कहें उससे भी बड़ा घोटाला यह भी है। जिस तरह उस घोटाले में सैंकड़ों आरोपी थे उसी तरह इस घोटाले में भी सैंकड़ों आरोपी हैं अब तक 100 पर तो एफआईआर दर्ज हो चुकी है। जब व्यापम घोटाले की जांच सीबीआई ने कि थी तब ट्रक लोडिंग भर भर के फाइलों के पहाड़ होने की खबर ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थी। छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में तो ऐसे कागजातों की संख्या कहीं अधिक होगी क्योंकि जितने छात्रों के नाम से छात्रवृत्ति ली गई हैं उनके सभी के मूल दस्तावेज व बैंक रिकॉर्ड की जांच होगी। अब वह कारण हम आपको बताते हैं जो निश्चित ही इसे व्यापम से बड़ा घोटाला बना देगा। अभी मामला केवल पैरामेडिकल कोर्स में फर्जी छात्रों के नाम से हड़पी गई छात्रवृत्ति का है , अब इस जांच में यदि अन्य कोर्स भी शामिल कर लिए जाएं तो आंकड़ा कई गुना बढ़ जाएगा। अभी जो मामला जांच में है वह 2010 से2015 तक फर्जी तरीके से हड़पी गई छात्रवृत्ति का है। आपको बता दें कि पीजीडीएम के नाम से एक दो वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी मध्यप्रदेश में कई सालों तक यहां तक कि 2015 के बाद भी संचालित रहा। इस डिप्लोमा को AICTE ने सारे नियम ताक पर रख कर कई कॉलेजों को मान्यता दी। सबसे बड़ा गड़बड़झाला यह रहा कि इस कोर्स की छात्रवृत्ति अन्य किसी भी कोर्स से कहीं अधिक रखी गई। मतलब एससीएसटी विभाग ने कोलेज संचालकों से मिलकर अपने फायदे के लिए सारे नियम ताक पर रखकर छात्रवृत्ति निर्धारित करली। यह छात्रवृत्ति एक छात्र के लिए तीन से साढ़े तीन लाख रुपए तक थी। इसकी राशि में भी कोलेज के रसूख के अनुसार अंतर था। अब यदि यह सब छात्रवृत्ति के मामले भी जांच के दायरे में लाए जाएं तो यह छात्रवृत्ति घोटाला हजारों करोड़ तक पहुंच सकता है।
छात्रवृति घोटाले की जांच इतनी आसान नहीं है। क्यूंकि इसमें लाखों छात्रों के दस्तावेजों को बारीकी से जांचना होगा। बैंको की हेराफेरी समझने के लिए फाइनेंशियल एक्सपर्ट की भी ज़रूरत होगी। सबसे बड़ी बात इस घोटाले कि जांच के लिए एक स्वतंत्र व निष्पक्ष एजेंसी की ज़रूरत है। पुलिस विभाग अब तक जितना कर सकता था कर चुका है इससे ज्यादा परते खोलना शायद अब पुलिस विभाग के लिए भी सम्भव न हो। छात्रवृत्ति घोटाले का पूरा चिट्ठा तभी खुल सकता है जब इसकी जांच के लिए या तो एस आई टी गठित हो या सीबीआई जांच हो।
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में ज्यादातर कॉलेज राजनीतिक रसूख रखने वाले लोगों द्वारा संचालित हैं। या ते सीधे तौर पर कोलेज के मालिक कोई मंत्री या पूर्व मंत्री या मंत्री के रिश्तेदार हैं। या किसी नेता के खास सिपहसालार हैं । ऐसे में सरकार आगे आकर इस घोटाले कि जांच में सहयोग करे इसकी संभावना शून्य है। हालाकि मामला न्यायालय में हैं लेकिन न्यायालय तक सही आंकड़े तभी पहुंचेंगे जब निष्पक्ष जांच हो। न्यायालय स्वत संज्ञान लेकर भी इस छात्रवृत्ति घोटाले की जांच के लिए एस आई टी के गठन के लिए सरकार को आदेशित के सकता है। खैर शिक्षा माफिया मध्यप्रदेश में कितना हावी है यह समझने के लिए इतना ही काफी है कि चुटकी बजाते ही ए एसपी डी एसपी रेंक के अधिकारी को जांच से हटा दिया जाता है
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