मप्र : साझा सम्मेलन में विस्थापितों के लिए लड़ने का ऐलान
मध्यप्रदेश की राजधानी में बुधवार को जुटे किसान संगठनों, खेत मजदूरों और विस्थापन के शिकार गांव-शहर के नागरिकों ने साझा सम्मेलन में हिस्सा लेकर नर्मदा घाटी के विस्थापितों सहित अन्य विस्थापितों के हित की

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी में बुधवार को जुटे किसान संगठनों, खेत मजदूरों और विस्थापन के शिकार गांव-शहर के नागरिकों ने साझा सम्मेलन में हिस्सा लेकर नर्मदा घाटी के विस्थापितों सहित अन्य विस्थापितों के हित की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया। सम्मेलन ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर और अन्य संगठनों से जुड़े लोगों ने कहा कि मध्यप्रदेश पूरी तरह से कार्पोरेट घरानों और भूमाफियाओं का चारागाह बन गया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी तथा प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार द्वारा चंद औद्योगिक घरानों और भूमाफियाओं के हितों को संरक्षण देने के लिए प्रदेश के किसानों, ग्रामीण गरीबों, विशेषकर दलितों और आदिवासियों को उनकी पीढ़ियों से काबिज जमीनों से बेदखल किया जा रहा है।
सम्मेलन में शामिल 40 से अधिक संगठनों ने जबरिया विस्थापन-जमीन और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ लड़ने तथा सभी आंदोलनों में समन्वय बनाने के निर्णय लेने और भूमि संबंधी सवालों पर साझे आंदोलन के लिए कार्य नीति बनाई गई।
सम्मेलन में नर्मदा विस्थापितों के पूर्ण पुनर्वास के बिना कार्पोरेट के मुनाफे के लिए घाटी में की जाने वाली 'जलहत्या' जैसी स्थिति पर भी विचार कर एक तात्कालिक आंदोलन की घोषणा की गई। इसके तहत 15 व 16 सितंबर को प्रदेशभर में मशाल जुलूस निकाला जाएगा और 17 सितंबर को धरना व प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण न किए जाने की मांग की जाएगी।
साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी मांग की जाएगी कि मध्यप्रदेश की जनता की जलसमाधि की कीमत पर होने वाले इस विद्रूप आयोजन में वे न जाएं।
सम्मेलन में देशभर में सक्रिय किसानों के संयुक्त मंच 'भूमि अधिकार आंदोलन' की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी एक मंच का गठन किया गया। यह मंच हर विस्थापन प्रभावित इलाके तक जाकर पहले तहसील और फिर जिलास्तरीय जेल भरो सत्याग्रह करेगा, उसके बाद राजधानी में अनिश्चितकालीन 'घेरा डालो-डेरा डालो' आंदोलन किया जाएगा।
सम्मेलन में मेधा पाटकर के अलावा विभिन्न संगठनों से जुड़े जसविंदर सिंह, बादल सरोज, राजकुमार सिन्हा, अशोक तिवारी, उमेश तिवारी, श्यामा बहन, प्रह्लाद वैरागी, राजेश तिवारी, नवरत्न दुबे, पोह पटेल, बद्रीप्रसाद, पंकज सिंह, गुलजार सिंह मरकाम, मनीष श्रीवास्तव, के.के. शुक्ला, प्रेमनारायण माहोर, अरुण चौहान, रामजीत सिंह, बलराज सिंह और शैलेंद्र कुमार शैली ने अपने विचार रखे।
वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया ने नर्मदा विस्थापन पर जांच के लिए गए दल की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया, "सरकार नर्मदा घाटी में सारी शर्म-हया छोड़कर खुद गैरकानूनी कामों में जुटी है, ताकि कुछ कार्पोरेट कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा सके।"
बाद में सभी प्रतिनिधियों ने नर्मदा विकास प्राधिकरण के कार्यालय के समक्ष जाकर प्रदर्शन किया। 14 सितंबर को भी सुबह 9 से 12 बजे तक नीलम पार्क में धरना देने की घोषणा की गई है।


