मदर टेरेसा की नीली बॉर्डर वाली साड़ी 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की बौद्धिक संपदा
पूरा जीवन गरीबों और वंचितों की सेवा में समर्पित करने वाली महान संत मदर टेरेसा की नीली बार्डर वाली सफेद साड़ी ‘मिशनरीज आफॅ चैरिटी’ की बौद्धिक संपदा है, जिसका खुलासा अब एक साल बाद किया गया है

नई दिल्ली। पूरा जीवन गरीबों और वंचितों की सेवा में समर्पित करने वाली महान संत मदर टेरेसा की नीली बार्डर वाली सफेद साड़ी ‘मिशनरीज आफॅ चैरिटी’ की बौद्धिक संपदा है, जिसका खुलासा अब एक साल बाद किया गया है।
देश के बौद्धिक संपदा एटार्नी विश्वजीत सरकार ने बताया कि भारत सरकार के ट्रेडमार्क पंजीकरण कार्यालय ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी को इसकी अनुमति चार सितम्बर 2016 को ही दे दी थी , जिस दिन वेटिकन ने मदर को संत की उपाधि देने की घोषणा की थी।
मिशनरी की ओर से इसके लिए आवेदन 12 दिसंबर 2013 को किया गया था। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने साड़ी को मिशनरीज की बौद्धिक संपदा घोषित करने का फैसला मदर के सम्मान स्वरुप किया था।
किसी परिधान को बौद्धिक संपदा घोषित करने का यह अपने किस्म का अकेला मामला है।
श्री सरकार ने कहा कि मिशनरी किसी बात का महिमा मंडन करने में विश्वास नहीं रखती इसलिए इस बात को सार्वजनिक नहीं किया गया था लेकिन पिछले कुछ समय से मदर की पहचान वाली इस साड़ी का दुनिया भर में कई संगठनाें के कार्यकर्ताओं द्वारा धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाने को देखते हुए आखिरकार यह बात सार्वजनिक करनी पड़ी है।
अपने जन्म स्थान मेसिडोनिया से बेहद कम उम्र में 1929 में कोलकाता में आ बसी मदर टेरेसा 1948 से अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक यही नीली बार्डर वाली सफेद साड़ी पहनती रही।
इस साड़ी के किनारों में तीन नीली धारियां बनी हुई हैं जिनमें बाहरी धारी अंदर की दो धारियों से थोड़ा ज्यादा चौड़ी है।
हर साल ऐसी चार हजार साड़ियां मिशनरी के 24 परगना में टीटागढ़ स्थित गांधीजी प्रेम निवास में बुनी जाती हैं और दुनिया भर में मिशनरीज आॅफ चैरिटी की ननों के बीच इन्हें बांटा जाता है।


