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म्यांमार की सेना के हवाई हमले में 100 से ज्यादा मौत

म्यांमार में सैन्य सरकार की ओर से कथित विद्रोहियों पर ताजा हवाई हमलों में महिलाओं और शिशुओं समेत 100 से ज्यादा लोगों की मौत की खबरों के बाद वहां से भारत की ओर पलायन और तेज हो गया है.

म्यांमार की सेना के हवाई हमले में 100 से ज्यादा मौत
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म्यांमार की सेना ने मंगलवार को सैन्य शासन के खिलाफ एक कार्यक्रम में शामिल भीड़ पर हवाई हमले किए. सीमा पार से आने वाली खबरों में कहा गया है कि सागाइंग इलाके में किए गए इस हमले में बच्चों समेत सौ से ज्यादा लोग मारे गए हैं. इनके मुताबिक, यह कार्यक्रम सैन्य शासन के विरोधियों की ओर से आयोजित किया गया था और उसमें आम लोग भी शामिल हुए थे. खबरों में कहा गया है कि म्यांमार की सेना ने एक गांव पर हवाई हमले की पुष्टि की है.

संयुक्त राष्ट्र ने आम नागरिकों पर म्यांमार की सेना के हवाई हमले की निंदा की है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने एक बयान जारी कर कहा कि हवाई हमले की रिपोर्ट काफी परेशान करने वाली है. उनके मुताबिक, ऐसा लग रहा है कि पीड़ितों में कार्यक्रम में नृत्य कर रहे स्कूली बच्चे और उद्घाटन समारोह में भाग लेने वाले आम नागरिक शामिल हैं. सेना ने उस समारोह पर हेलीकॉप्टर से बम गिराए.

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स्थानीय लोगों ने मीडिया को बताया कि हवाई हमले में सैन्य शासन विरोधी समूह नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) का कार्यालय तबाह हो गया है. उन्होंने कहा कि हमले के समय समारोह में महिलाओं और बच्चों समेत 150 से ज्यादा लोग भाग ले रहे थे. उन्होंने कहा कि मृतकों में सैन्य शासन विरोधी सशस्त्र समूहों और अन्य राजनीतिक संगठनों के नेता भी शामिल हैं.

म्यांमार की सेना ने फरवरी 2021 में तख्तापलट कर देश की सत्ता अपने हाथ में ले ली थी. तब से देश में सैन्य शासन के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. सेना इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए लोगों पर बलपूर्वक कार्रवाई कर रही है. सेना की कार्रवाई में अब तक तीन हजार से अधिक नागरिकों के मारे जाने का अनुमान है.

भारत की ओर पलायन तेज

विद्रोहियों पर हवाई हमले के बाद सीमा पार से चिन समुदाय के शरणार्थियों का पलायन अचानक तेज हो गया है. वहां से भारी तादाद में लोग मिजोरम पहुंच रहे हैं. राज्य में शरणार्थियों की आवक बढ़ने से कई समस्याएं पैदा हो गई हैं. म्यांमार में सेना की ओर से तख्तापलट के बाद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 31 हजार से ज्यादा शरणार्थी सीमा पार कर मिजोरम पहुंच चुके हैं और विभिन्न जिलों में बने शिविरों में रह रहे हैं. लेकिन गैर-सरकारी संगठनों के मुताबिक यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा है. मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा सरकार कुकी-चिन-मिजो समुदायों के शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति जताती रही है. सरकार ने इनके लिए राहत शिविरों की स्थापना की है. राज्य के सबसे बड़े और ताकतवर सामाजिक संगठन सेंट्रल यंग मिजो एसोसिएशन भी शरणार्थियों को भोजन और आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा रही है.

मिजोरम के छह जिले--चम्फाई, सियाहा, लवंगतलाई, सेरछिप, हनाहथियाल और सैतुल—म्यामांर की सीमा से सटे हैं. सीमा के दोनों ओर रहने वाले चिन समुदाय के लोगों में आपसी रिश्तेदारी है. इस इलाके में सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ नहीं लगी है.

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म्यांमार और मिजोरम के बीच एक पहाड़ी नदी तिआऊ ही अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखांकित करती है. बरसात के सीजन के अलावा साल के बाकी समय इसे पैदल ही पार किया जा सकता है. इस रास्ते दोनों ओर से लोग अमूमन निर्बाध तरीके से सीमा पार कर एक-दूसरी ओर आवाजाही कर सकते हैं. म्यांमार के सॉफ्ट ड्रिंक या बीयर सीमा से सटे भारतीय बाजार में आसानी से मिल जाते हैं. म्यांमार में बनी मोटरसाइकिल भी भारतीय इलाके में काफी लोकप्रिय है.

मिजोरम अलावा मणिपुर और असम में भी ऐसे लोग लगातार पहुंच रहे हैं. अभी बीते सप्ताह ही म्यांमार की सीमा से सटे मणिपुर के मोरे कस्बे से ऐसे 23 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

पहले भी हुए थे हमले

इससे पहले इस साल फरवरी में भी म्यांमार ने सीमावर्ती इलाके में कथित विद्रोहियों के शिविरों पर बम बरसाए थे. उनमें से एक बम भारतीय सीमा में भी गिरा था जिससे एक ट्रक क्षतिग्रस्त हो गया था. बम गिरने की खबर सबसे पहले स्थानीय लोगों के हवाले ब्रिटिश अखबार ‘द गार्डियन' ने छापी थी. लेकिन सेना ने पहले तो उसे तुरंत खारिज कर दिया था. लेकिन घटना के कोई तीन सप्ताह बाद विदेश मंत्रालय ने इस पर चुप्पी तोड़ते हुए माना था कि वह बम तिआऊ नदी में गिरा था.

लोगों की आवाजाही का इतिहास

पूर्वोत्तर के चार राज्यों—मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश की 1,643 किमी लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. सीमावर्ती इलाकों में आबादी, बोली, रहन-सहन और संस्कृति में भी काफी समानताएं है. वहां रहने वाली जनजातियों में आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता चलता है. म्यांमार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल का खास कर मिजोरम पर सीधा असर पड़ता है.

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मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. राज्य की सबसे बड़ी मिजो जनजाति जातीय रूप से सीमा पार चिन राज्य की चिन जनजाति से जुड़ी है. चिन समुदाय मणिपुर के कूकी-जोमी समुदाय से भी जुड़ा है. म्यांमार में नागा जनजाति के लोग भी काफी तादाद में हैं. उनके संबंध मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में रहने वाले नागा जनजाति के लोगों से हैं.

म्यांमार से चिन समुदाय के लोगों के मिजोरम पलायन का इतिहास तीन दशकों से भी ज्यादा पुराना है. वर्ष 1988 में म्यांमार में लोकतंत्र के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान भी सैन्य बलों के कथित अत्याचार के बाद चिन समुदाय के कई लोग सीमा इलाके के अलावा घने जंगलों के रास्ते या फिर नदी पार करके मिजोरम की राजधानी आइजोल पहुंचे थे.


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