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पैसे से कांग्रेस की सेहत नहीं सुधरेगी!

जो गांधी का मूल उद्देश्य था और देवीलाल का हमने बताया कि पैसा नहीं उसके पीछे जोड़ने की भावना

पैसे से कांग्रेस की सेहत नहीं सुधरेगी!
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- शकील अख्तर

जो गांधी का मूल उद्देश्य था और देवीलाल का हमने बताया कि पैसा नहीं उसके पीछे जोड़ने की भावना? तो इसके लिए कांग्रेस को अपनी नई टीम सामने लानी होगी। एक साल से ज्यादा समय हो गया है, नए अध्यक्ष भी लिखना अब अजीब लगता है, पुराने हो गए उन खरगे जी की टीम अभी तक नहीं बनी है। गैर-जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं।

हर पार्टी का अपना नेचर होता है। भाजपा में हवा हवाई बातें चल जाती हैं। मगर कांग्रेस में नुकसान कर जाती हैं। भाजपा के साथ एक तो मीडिया होता है दूसरे उसके और संघ के कार्यकर्ता जो इस बात को भी मिनटों में घर-घर पहुंचा सकते हैं कि गणेश जी दूध पी रहे हैं या राहुल पप्पू हैं और मोदी जो चाहे कर सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के पास अगर ठोस बातें और जनपक्षीय कार्यक्रम नहीं हैं तो केवल प्रयोग के लिए प्रयोग से या प्रतीकात्मकता से उसे कोई फायदा नहीं होता उल्टा नुकसान ही होता है।

ईवीएम एक ऐसा ही प्रयोग था जिससे आज कांग्रेस ही सबसे ज्यादा परेशान है। ईवीएम कांग्रेस ही लाई थी। नोटा भी वही लाई। आरटीआई भी। ये सब उसके लिए घातक साबित हुए। बिना जनता के स्तर को ऊपर उठाए अति आदर्शवादी व्यवस्था, नए प्रयोग, उस पार्टी के लिए हमेशा नुकसानदेह होता है जिसे जनता वास्तविक आधारों पर जांचती है। कांग्रेस जब मनरेगा लाती है, किसानों की कर्ज माफी करती है तो लाभान्वित हुए लोगों के सीधे समझ में आता है। और वह 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को वापस ले आते हैं। मगर 2012 के बाद जब वही कांग्रेस अन्ना जी, अन्ना जी करने लगती है तो जनता उसे पसंद नहीं करती। अन्ना जी को लाने वाले ओरिजनल लोगों के साथ चली जाती है।

इन विधानसभा चुनावों में हार के लिए ईवीएम एक कारण हो सकता है! होगा। लेकिन अगर ऐसा है तो कांग्रेस ने इसके खिलाफ कौन सी मुहिम शुरू की। आडवानी ने 2009 के चुनाव हार जाने के बाद बाकायदा इसके खिलाफ एक मुहिम शुरू की थी। अपने पार्टी के नेता जीवीएल नरसिम्हा राव से किताब लिखवाई थी। खुद उस ईवीएम विरोधी किताब की प्रस्तावना लिखी थी। मगर 2019 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले 2017 में हुए कई विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने इस पर सवाल तो हमेशा उठाए मगर कोई निर्णायक आन्दोलन शुरू नहीं किया। हमें याद है 2017 के बाद जब राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बन गए थे तो दिल्ली के इन्दिरा गांधी ओपन स्टेडियम के कांग्रेस सम्मेलन में उन्होंने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस ने इसके खिलाफ एक प्रस्ताव भी पारित किया था। मगर बाद में कोई फालोअप नहीं हुआ। कांग्रेस पूर्व ब्यूरोक्रेटस की, जो चुनाव कार्यों से जुड़े रहे, एक कमेटी बना सकती थी। उनसे जांच करवा सकती थी। कई रिटायर वरिष्ठ अफसरशाह कांग्रेस से जुड़े हुए हैं।

मशीन में गड़बड़ी करने वालों को सख्त मैसेज दे सकती थी। जैसे गडकरी ने बोला था यूपीए के समय, जब उनकी जांच चल रही थी कि किसी भी अफसर को छोड़ेंगे नहीं। वैसे ही सख्त भाषा में बोल सकती थी। आखिर कोई भी डिपार्टमेंट हो, करता तो इंसान ही होगा ना ईवीएम में गड़बड़ी। उसे चेताया तो जा सकता है! मगर कांग्रेस ने हर हार के बाद बोला तो जरूर मगर कोई गंभीर पहल नहीं की। और फिर जनता के मन में यह भी सवाल उठता है कि 2014 में तो कांग्रेस बुरी तरह हारी। तब तो केन्द्र में उसी की सरकार थी। तब भी क्या ईवीएम मैनेज कर ली गई थी? और अगर कांग्रेस के शासन में कांग्रेस के ही खिलाफ ईवीएम मैनेज की जा सकती है तो फिर बात करना ही बेकार है!
हालांकि इसमें इतने आश्चर्य की बात नहीं। 2012 से 2014 तक पूरी अफसरशाही, दूसरी संस्थाएं मीडिया सब पूरी तरह कांग्रेस के विरोध में हो गए थे। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 2012 से 2014 तक सबसे कमजोर सरकार रही। इतनी तो चन्द्रशेखर की सरकार भी कमजोर नहीं थी।

सत्ता से बाहर कांग्रेस को दस साल हो रहे हैं। और दो हार के बाद तीसरा चुनाव 2024 सिर पर खड़ा है। मगर अभी तक वह अपनी असली समस्या को समझ नहीं पा रही है। मामला हार्ट और ब्रेन का है। नेताओं के कमजोर दिल और निहित स्वार्थी दिमाग का! मगर पार्टी कास्मेटिक सर्जरी कर रही है।

अभी एक नया शिगूफा छेड़ा। क्राउड फंडिंग। राजनीति में यह सफल प्रयोग किया था देवीलाल ने। एक वोट एक नोट! जोर वोट पर था। नोट तो उनसे ज्यादा कोई खर्च कर नहीं सकता। उस समय जिप्सी नई गाड़ी आई थी। चुनाव में पुरानी महिन्द्रा और विलीज जीपें चलती थीं। गांवों में यही जा पाती थीं।

1989 में देवीलाल ने जनता दल के अपने सारे लोकसभा प्रत्याशियों के पास नई सफेद चमचमाती जिप्सी पहुंचा दी थीं। आज के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उसी समय अपना पहला चुनाव लड़े थे। और जीते थे। राजस्थान के झुन्झुनू से। खुद देवीलाल पड़ोस के सीकर से लड़ रहे थे। इसे शेखावाटी का इलाका कहते हैं।

जाट बेल्ट। उस समय के लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ को हराया था। खैर वह बात वोट और नोट की थी। तो वोट तो मिले ही। और नोट तो प्रतीकात्मक था। तो सारी जिप्सियां वहीं कार्यकर्ताओं को दे आए थे।

देवीलाल शाहखर्च थे। कांग्रेसी भी हैं। मगर दूसरे के पैसे खर्च करने में। अपना तो सब ने दबाकर रखा हुआ है। पता नहीं किस काम आएगा! जिनके पास रखा है वह कोई नहीं लौटाते हैं। बच्चे बेवजह परेशान होकर घूमते रहते हैं। इससे बेहतर है पार्टी को दे दें। मगर नहीं देंगे। पार्टी से और कुछ मिल जाएगा तो ले लेंगे।

खैर तो यहां कांग्रेस ने गांधी जी को याद किया है। मगर यह भूल गए कि गांधी महामितव्ययी थे। थर्ड क्लास में चलते थे। यहां तो हर नेता को
चार्टेड प्लेन चाहिए। शहर के सबसे अच्छे होटल का सबसे महंगा सुइट। बड़ी गाड़ी, सेवा में चार कार्यकर्ता। लगा लें हिसाब कांग्रेस कि जब पैसा नहीं है तो नेताओं ने जिनमें कुछ बड़े नेता छोड़ भी दो तो छोटे और मंझौले दर्जे के नेताओं के चुनाव में घूमने पर कितना खर्चा आया है। और कितने इन्होंने अपनी प्रदर्शनप्रियता और अफालतूनी रवैये से वोट कटवाए हैं। कितने भले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को गालियां दी हैं।

अपनी क्राउड फंडिंग को गांधी जी के 1920- 21 तिलक स्वराज कोष से प्रेरित बताना तो ठीक है मगर उनकी तरह पाई-पाई का हिसाब क्या कांग्रेस दे पाएगी? जनता पैसे देगी तो क्या हिसाब नहीं मांगेगी?

और फिर वही बात जो गांधी का मूल उद्देश्य था और देवीलाल का हमने बताया कि पैसा नहीं उसके पीछे जोड़ने की भावना? तो इसके लिए कांग्रेस को अपनी नई टीम सामने लानी होगी। एक साल से ज्यादा समय हो गया है, नए अध्यक्ष भी लिखना अब अजीब लगता है, पुराने हो गए उन खरगे जी की टीम अभी तक नहीं बनी है। गैर-जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं। अभी देखा कि कमलनाथ को जिन्हें पांच साल से ज्यादा कांग्रेस ने एकछत्र काम करने का मौका दिया। वह संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और प्रभारी रणदीप सुरजेवाला को

व्यंग्तात्मक बधाई और शुभकामनाएं दे रहे हैं। शुक्र है सोनिया और राहुल पर अटैक नहीं किया। अपने बेटे नकुलनाथ का राजनीतिक भविष्य ध्यान में आ गया होगा।
यह हाल है कांग्रेसियों का। सब कुछ देने के बाद भी थैंकफुल होने के बदले थैंकलेस ही नहीं कटुता दिखाते हैं। कभी आडवानी, मुरली मनोहर जोशी या रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, विजय गोयल या हां अभी ताजा शिवराज सिंह चौहान या वसुंधरा राजे के मुंह से एक भी शब्द नकारात्मक सुना!

कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भरमार है बड़े नेताओं की जो सब कुछ पाकर भी पार्टी और नेता पर हमले करते हैं। प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाया।
मगर संघ मुख्यलय नागपुर जा पहुंचे। बेटी को दिल्ली का चीफ स्पोकसपर्सन। मगर वह किताब लिखकर राहुल और सोनिया को कोस रही हैं। जी 23 इन कांग्रेसियों ने ही बनाया था ना! अब फिर कमजोर दिख रही है तो 23 से ज्यादा भी इकठ्ठा हो जाएंगे।

कांग्रेस की समस्या यह है, कृतध्न नेता! जब तक मलाई मिलेगी चिपटे रहेंगे। फिर गालियां देंगे। इन पर सख्ती जरूरी है। थोड़े हों, कम हों पर विश्वसनीय हों। कार्यकर्ता राहुल के साथ हैं। उन्हें ही आगे लाना होगा। क्षत्रपों को भाव देना बंद करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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