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अपने ही समर्थकों को दिग्भ्रमित करता मोदी का ईसाई-प्रेम

हर साल पड़ने वाला क्रिसमस इस मायने में थोड़ा अलग था

अपने ही समर्थकों को दिग्भ्रमित करता मोदी का ईसाई-प्रेम
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- डॉ. दीपक पाचपोर

मुद्दा यह है कि अगर उनके अनुभव इस छोटे से परन्तु शांतिप्रिय समुदाय के साथ इतने आत्मीय रहे हैं तो वे उस विचारधारा के साथ कैसे जुड़ गये जो इनके प्रति गहन नफ़रत का भाव रखती है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ज्यादातर वे ही लोग जुड़ते हैं जो अल्पसंख्यकों व ईसाइयों के प्रति बेतरह बैर भाव रखते हैं। मोदी का जुड़ाव भी सम्भवत: इसी आधार पर हुआ होगा।

हर साल पड़ने वाला क्रिसमस इस मायने में थोड़ा अलग था। वह ऐसे कि सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जीवन का यह अब तक गोपन रहा पक्ष सामने आया कि ईसाई समुदाय से उनके बहुत आत्मीय सम्बन्ध रहे हैं। मोदी के जीवन में इतनी विविधता है कि उसके सारे आयामों को एकमुश्त उद्घाटित नहीं किया जा सकता। इसलिये वे किश्तों में, ठहर-ठहरकर और माकूल वक्त पर सही खुलासे कर सभी को चमत्कृत करते रहते हैं। इसी क्रम में मसीही समुदाय के एक समारोह में शिरकत करने पहुंचे प्रधानमंत्री ने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय खोलते हुए बतलाया कि 'गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान वे ईसाई धर्मगुरुओं से सतत मिलते रहते थे।

जहां से वे चुनाव लड़ते थे, वहां बड़ी संख्या में ईसाई रहते हैं।' कुछ साल पहले पोप से मिलने को अपना 'सौभाग्य' बतलाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि वह उनके लिये यादगार पल था। क्रिसमस में उपहार देने की परम्परा की उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा कि 'सभी को देखना चाहिये कि आने वाली पीढ़ी को कैसे बेहतर धरती का उपहार दे सकते हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि 'पवित्र बाइबिल बतलाती है कि भगवान ने हमें जो कुछ दिया है वह दूसरों की सेवा के लिये इस्तेमाल करना चाहिये।' मोदी ने इसे ही 'सेवा परमो धर्म' से निरूपित किया। मोदी ने दर्शन के स्तर पर जाकर कहा कि 'यह संयोग की बात है कि सभी धार्मिक ग्रंथ परम सत्य को जानना चाहते हैं। 'सभी धर्मों के समन्वय' के माध्यम से उन्होंने 21वीं सदी के भारत को नयी ऊंचाइयों तक ले जाने का मार्ग भी बतलाया'। उन्होंने भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार अपनी योजनाओं के लाभों को सभी वर्गों तक पहुंचाने के लिये कटिबद्ध है जिनमें 'ईसाई समुदाय के गरीब व वंचित लोग' भी शामिल हैं।

मोदी का यह बयान ईसाइयों को लेकर सम्भवत: पहला है। पिछले 10 वर्ष प्रधानमंत्री के रूप में और उसके पहले तीन बार गुजरात के सीएम रहने के दौरान उन्होंने इस अल्पसंख्यक समुदाय के साथ अपनत्व की बातें लोगों को नहीं बतलाई थीं। इसलिये माना जा सकता है कि उनका ईसाइयों से यह पुराना रिश्ता वैसा ही है जिस प्रकार का कई अनेक समुदायों, प्रदेशों, क्षेत्रों से रहता आया है। यहां तक कि मुसलमानों के साथ भी। वे बतला चुके हैं कि उनके एक मित्र अब्बास उनके घर में रहते थे जिन्हें उनकी दिवंगत माताजी पकवान बनाकर खिलाती थीं। हालांकि इस अब्बास मियां को दुनिया वैसी ही ढूंढ रही है जिस प्रकार से लोग वडनगर रेलवे स्टेशन पर उनके हाथ से चाय पीने वालों को खोज रहे हैं या उनके साथ एंटायर पोलिटिकल साइंस में एमए करने वाले सहपाठियों और उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों को। अब दिग्भ्रमित मोदी समर्थकों और आईटी सेल के कर्मचारियों के लिये नया टास्क है कि वे मोदी की उन तस्वीरों को निकाल लायें जिनमें वे मुख्यमंत्री रहने के दौरान ईसाई धर्मगुरुओं या मसीहियों से चर्चा कर रहे हैं। जाहिर है कि फोटोशॉप तकनीक से ही इसका जुगाड़ हो सकेगा।

खैर, मुद्दा यह है कि अगर उनके अनुभव इस छोटे से परन्तु शांतिप्रिय समुदाय के साथ इतने आत्मीय रहे हैं तो वे उस विचारधारा के साथ कैसे जुड़ गये जो इनके प्रति गहन नफ़रत का भाव रखती है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ज्यादातर वे ही लोग जुड़ते हैं जो अल्पसंख्यकों व ईसाइयों के प्रति बेतरह बैर भाव रखते हैं। मोदी का जुड़ाव भी सम्भवत: इसी आधार पर हुआ होगा। एक कार्यकर्ता के रूप में हो सकता है कि उनकी सीमाएं रही हों लेकिन पहले सीएम और बाद में देश के सबसे ताकतवर पीएम के रूप में वे ईसाइयों के प्रति घृणा भाव रखने वाले अपने कार्यकर्ताओं व समर्थकों का हृदय परिवर्तन क्यों नहीं कर रहे हैं? आज तो पूरा संगठन, यहां तक कि आरएसएस भी उनकी मुठ्ठी में है। पिछले करीब सौ वर्षों से संघ इस समुदाय के लोगों पर हिन्दू संस्कृति नष्ट करने का आरोप लगाता आया है। जितनी भी जगहों पर इस समुदाय के लोगों पर अत्याचार हुए हैं, ज्यादातर में इन्हीं संगठनों के लोगों की भूमिका रही है, फिर वह चाहे ग्राहम स्टेंस को उनके बच्चों समेत जला देना हो या फिर चर्चों में तोड़-फोड़ करना या उन्हें जलाना हो।

संघ-भाजपा के लोगों की दृढ़ मान्यता है कि ये लोग हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराते हैं। मोदी अपने लोगों को यह समझाने में सक्षम हैं कि इस समुदाय के लोगों के प्रति उन्हें भाई-चारा बनाकर रखना चाहिये। हाल के वर्षों में देश भर के सैकड़ों चर्चों को नष्ट किया गया है। उनके अनेक धर्मगुरुओं पर हमले हुए हैं। कई स्थानों पर तो कई पीढ़ी पहले ईसाई बन गये लोगों को वापस हिन्दू धर्म में लाया जा रहा है। मणिपुर की घटना को भला कौन भूल सकता है जिसमें ईसाई बन गये कुकी आदिवासियों के साथ बेइंतिहा जुल्म ढाये गये। उनके घरों को जलाया गया, दो महिलाओं को नग्न कर उनकी परेड निकाली गयी, हजारों बेदखल हो गये। फिर भी इस धर्म के अनुयायियों के साथ लगाव का दावा करने वाले मोदी चुप रहे। संक्षिप्त सा, कुछ मिनटों के लिये वे बोले भी तो इसलिये क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर उनकी सरकार ने कुछ न किया तो वह खुद कोई कार्रवाई करेगी।

यह किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के लिये बहुत शर्म की बात होगी कि इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनी गई। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को बड़ा खतरा बताया गया और इस सूचकांक पर विश्व इंडेक्स में देश की बड़ी फिसलन दर्ज हुई है। यूरोपीय संघ ने इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई और मोदी से उनकी अमेरिका यात्रा के दौरान सवाल किये गये। यह अलग बात है कि उन्होंने इसका गोलमोल उत्तर दिया और इस पर तो आश्वासन तक नहीं दिया जब उनसे पूछा गया कि क्या वे इस बाबत कोई कार्रवाई करेंगे। वैसे भी मोदी सहित उनके पूरे वैचारिक कुनबे को भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि, आजादी के बाद से देश की घोषित धर्मनिरपेक्षता की नीति तथा समावेशी चरित्र पर हमेशा से आपत्ति रही है। मुस्लिम एवं ईसाई उनकी आंखों में विशेष रूप से खटकते हैं। ये दो समुदाय ही मोदी शासन काल में सर्वाधिक निशाने पर आये हैं जिसे लेकर उनकी सरकार ने कभी कोई कड़े कदम नहीं उठाये। इससे साफ संदेश गया है कि इन पर होने वाली हिंसा, उत्पीड़न और अत्याचार सरकार पोषित-समर्थित है। मोदी को अगर ईसाई समुदाय; और पहले जैसा वे कह चुके हैं, मुस्लिम भी- तो इन दोनों की सुरक्षा व उनके विकास की जिम्मेदारी उन्हें दिखने लायक उठानी होगी। जुबानी जमा-खर्च से काम नहीं चलेगा।

शायद मोदी का यह बयान एक ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संतुष्ट करने के लिये है, तो वहीं आगामी वर्ष के मध्य में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र वे इस समुदाय को साधने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे उनके प्रयासों को बहुत सफलता मिलने की इसलिए उम्मीद नहीं है क्योंकि लोग देख रहे हैं कि एक ओर तो मोदी हमेशा की तरह इस समुदाय के साथ आधारहीन होकर व खुदगर्जी के चलते नाता जोड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर उनके समविचारी कहीं सांताक्लाज़ के पुतले जला रहे हैं या क्रिसमस के रंग में भंग करने पर आमादा हैं। अगर यह बात सच है कि मोदी के ईसाइयों से अच्छे ताल्लुक रहे हैं तो उनकी सुरक्षा व सम्मान को बरकरार रखा जाये।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)


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