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मोदीजी की चिठ्ठी देश के नाम

कर्नाटक चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी को जीत दिलवाने के लिए सारे पैंतरे आजमा लिए

मोदीजी की चिठ्ठी देश के नाम
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- सर्वमित्रा सुरजन

वैसे तो मोदीजी हर राज्य से अपना कोई न कोई पुराना नाता तलाश लेते हैं, लेकिन कर्नाटक से ऐसी कोई रिश्तेदारी नहीं निकल सकी, तो उन्होंने पूरे देश की तरक्की को कर्नाटक से जोड़ दिया। कर्नाटक का विकास होगा, तो देश दुनिया में बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा, ये नया सिद्धांत मोदीजी ने देश के विकास का प्रतिपादित किया है। अपनी चिठ्ठी में उन्होंने कर्नाटक के लोगों के सपने को अपना सपना बताया है।

कर्नाटक चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी को जीत दिलवाने के लिए सारे पैंतरे आजमा लिए। शुरुआत तो हुई डबल इंजन की सरकार से, लेकिन मतदान की तारीख नजदीक आते-आते, जब माहौल भाजपा के पक्ष में बनता नहीं दिखा, तो मोदीजी ने अपने तरकश को खंगालना शुरु कर दिया। फिर तो गालियों की गिनती से लेकर बजरंगबली की जय तक सारे तीर वे इस्तेमाल करने लगे। सहानुभूति से बात बनती नहीं दिखी तो हिंदुत्व का दांव चला, और आखिर तक बात कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमले तक ले आई गई। सोनिया गांधी के भाषण में मीन-मेख निकाली गई और संप्रभुता शब्द पकड़ कर आरोपों का नया दौर शुरु हुआ। कांग्रेस को टुकड़े-टुकड़े गैंग और गांधी परिवार को शाही परिवार कहकर जनता के बीच कांग्रेस विरोधी माहौल बनाने की कोशिश श्रीमान मोदी ने की। ये बात पहले कई बार लिखी जा चुकी है, लेकिन एक बार और लिखने में कोई हर्ज नहीं है कि देश ने इससे पहले ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं देखा, जिनके पास चुनाव प्रचार के लिए इतनी फुर्सत रहे और जो अपने पद की मर्यादा से परे जाकर चुनाव प्रचार करें।

कर्नाटक में तो अब मतदान हो चुका है, लेकिन कई रैलियां, रोड शो करने के बाद शायद मोदीजी आश्वस्त नहीं हैं, तो उन्होंने मतदान से ठीक एक दिन पहले कर्नाटक के लोगों के नाम संदेश दिया। ये संदेश खत और वीडियो दोनों के जरिए से दिया। प्रधानमंत्री ने खत में लिखा है, 'आप लोगों ने मुझे हमेशा प्यार और लगाव दिया है... यह मुझे दैवीय आशीर्वाद सरीखा लगता है... हमारे 'आज़ादी के अमृतकाल' में हम भारतीयों का लक्ष्य हमारे प्रिय देश को विकसित देश बना देना है... इस सपने को पूरा करने के लिए जारी प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए कर्नाटक बेहद उत्सुक है...।' उन्होंने लिखा, 'भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है... हमारा अगला लक्ष्य इसे शीर्ष तीन में शामिल करना है... यह तभी संभव हो सकेगा, जब कर्नाटक तेज़ी से तरक्की करे, और 10 खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाए...।' वैसे तो मोदीजी हर राज्य से अपना कोई न कोई पुराना नाता तलाश लेते हैं, लेकिन कर्नाटक से ऐसी कोई रिश्तेदारी नहीं निकल सकी, तो उन्होंने पूरे देश की तरक्की को कर्नाटक से जोड़ दिया।

कर्नाटक का विकास होगा, तो देश दुनिया में बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा, ये नया सिद्धांत मोदीजी ने देश के विकास का प्रतिपादित किया है। अपनी चिठ्ठी में उन्होंने कर्नाटक के लोगों के सपने को अपना सपना बताया है, यह भी रिश्तों की नयी शुरुआत सरीखा लगा। बस एक बात समझ नहीं आ रही कि सौ बार मन की बात कहने के बाद प्रधानमंत्री को अलग से चिठ्ठी लिखकर फिर से अपने मन के उद्गार प्रकट करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। इसके दो जवाब सूझते हैं कि या तो मोदीजी का मन इतना भरा है कि सौ-सौ बार कहने के बावजूद हल्का नहीं हो रहा या फिर जनता तक उनके मन के भाव पहुंच ही नहीं रहे।

वैसे अच्छा है कि जनता तक अपनी बात पहुंचाने की पूरी कोशिश श्री मोदी कर रहे हैं। लोकतंत्र में यही होना चाहिए कि जनता और शासक के बीच संवाद हमेशा कायम रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी अगस्त 1947 में पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हर पखवाड़े एक पत्र लिखने की परंपरा शुरू की, जिसमें वे उस समय देश की समस्याओं के बारे में खुलकर बात करते थे। इससे पहले बेटी इंदिरा को जेल से लिखे उनके पत्र तो ऐतिहासिक दस्तावेज ही है। मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्रों में भी राष्ट्र निर्माण, साम्प्रदायिकता, अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय, विज्ञान और विदेश नीति जैसे सवालों पर नेहरूजी की दृष्टि और विचारों का पता चलता है।

जैसे संकीर्ण राष्ट्रवाद के खतरों पर 20 सितंबर, 1953 को लिखे एक पत्र में नेहरूजी ने अल्पसंख्यकों के घटते प्रतिनिधित्व पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने ये भी लिखा है कि राष्ट्रवाद का एक अधिक कपटी रूप मन की संकीर्णता है जो एक देश के भीतर विकसित होता है, जब बहुसंख्यक खुद को संपूर्ण राष्ट्र के रूप में सोचते हैं और अल्पसंख्यक को अवशोषित करने के अपने प्रयास में वास्तव में उन्हें और भी अलग कर देते हैं। जाति और अलगाववाद की हमारी परंपरा के कारण हमें भारत में इससे विशेष रूप से सावधान रहना होगा। उन्होंने यह भी लिखा है कि साम्प्रदायिक संगठन राष्ट्रवाद की आड़ में अकड़ कर चलने वाले दृष्टिकोण की अति संकीर्णता के स्पष्टतम उदाहरण हैं।

1 मार्च, 1950 को अल्पसंख्यकों और 'वफादारी' विषय पर नेहरूजी ने मुख्यमंत्रियों को लिखा कि यदि भारत को प्रगति करनी है, तो हमें भारत में विभिन्न अल्पसंख्यकों, और विशेष रूप से मुसलमानों को आत्मसात करना होगा और अपना बनाना होगा। हममें से कुछ लोगों के बीच भारत में मुसलमानों से वफादारी की मांग करने और उनमें पाकिस्तान समर्थक प्रवृत्ति की निंदा करने की प्रवृत्ति है। बेशक, ऐसी प्रवृत्तियां गलत हैं और उनकी निंदा की जानी चाहिए। नेहरूजी के ऐसे तमाम खतों में भारत को आगे ले जाने की विचारदृष्टि दिखाई देती है। मोदीजी भी भारत को आगे ले जाने का दावा करते हैं, बल्कि वे तो देश को विश्वगुरु बनाने का दावा करते हैं और उनके समर्थकों के मुताबिक 2014 से पहले तो देश में कुछ हुआ ही नहीं। देश को असली आजादी 2014 में मिली और भारत का गौरव दुनिया में मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही कायम हुआ।

इस गलतफहमी की स्थिति में प्रधानमंत्री होने के नाते श्री मोदी को पहल करनी चाहिए और अपने समर्थकों को नेहरूजी की चि_ियों से अवगत कराना चाहिए, ताकि उन्हें पता चले कि 1947 में, देश को आजादी मिलने के साथ ही कितनी व्यापक सोच के साथ विकास का रास्ता तैयार किया जा रहा था। मोदीजी चाहे तो एक चिठ्ठी अपने पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा के नाम लिखें, क्योंकि श्री नड्डा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान यह कहा है कि 2014 के पहले भारत घुटनों के बल चल रहा था, अब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है। मोदीजी को उन्हें बताना चाहिए कि भारत 1947 से ही सीना तान कर, अपने पैरों पर खड़ा था। कई सार्वजनिक उद्योग, अंतरिक्ष मिशन, स्वास्थ्य, शिक्षा, अनुसंधान के लिए बड़े सरकारी संस्थान, कृषि, अधोसंरचना और रक्षा के क्षेत्र में कई बड़े कार्यों की शुरुआत हो चुकी थी।

मोदीजी एक चिठ्ठी मणिपुर के लोगों के नाम भी लिखें और उन्हें आश्वस्त करें कि न जनजातीय आबादी के साथ, न अन्य समुदायों के साथ कोई अन्याय होगा। उनके नेतृत्व वाली सरकार, जिसे वे डबल इंजन कहते हैं, हर किसी के लिए रोजगार, शिक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के अवसर प्रदान करेगी। प्रधानमंत्री मोदी एक खत जंतर-मंतर पर बैठे पहलवानों के नाम लिखें और उन्हें बताएं कि वे सत्यवादी, निष्पक्ष प्रशासक हैं और वे हर दोषी को सजा दिलवाएंगे, चाहे वो उनका कितना ही करीबी क्यों न हो। एक चिठ्ठी देश के युवाओं के नाम प्रधानमंत्री लिखें और उन्हें निश्चिंत करें कि किसी को रोजगार की चिंता नहीं करनी है, उनकी सरकार हर साल 2 करोड़ रोजगार के वादे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

देश के किसानों के लिए मोदीजी चिठ्ठी लिखकर बताएं कि 2022 न ही, 2024 तक उनकी आय दोगुनी हो ही जाएगी और एमएसपी की गारंटी भी सरकार दे देगी। सीमा पर खड़े सैनिकों को मोदीजी की चिठ्ठी पहुंचे, कि वे अगर देश की प्राणपण से रक्षा करते हैं तो सरकार भी उनकी सुरक्षा के लिए हर संभव उपाय करेगी। पुलवामा जैसी घटनाओं में सैनिक शहीद नहीं होंगे। देश के व्यापारियों को प्रधानमंत्री चिठ्ठी लिखें कि जिस तरह एक-दो उद्योगपतियों को दुनिया के अमीरों की सूची में आने का मौका मिला, वैसे ही अवसर उनके लिए भी जुटेंगे।

कर्नाटक चुनाव की व्यस्तता तो अब नहीं है, सो प्रधानमंत्री चिठ्ठी लिखने के इस नेक काम के लिए वक़्त निकालें, देश बेसब्री से उनके खतों का इंतजार कर रहा है।


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