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फीडबैक के जरिये माहौल बनाने की कवायद करेंगे मोदी

आम चुनाव की दहलीज पर खड़े और भारत के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने को आतुर नरेन्द्र मोदी अब लोगों से जानना चाहते हैं कि देश ने विभिन्न क्षेत्रों में कैसी तरक्की की है

फीडबैक के जरिये माहौल बनाने की कवायद करेंगे मोदी
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- डॉ. दीपक पाचपोर

जितने क्षेत्रों के कामों के बारे में पीएम जनता की राय पूछ रहे हैं, क्या उनके बारे में सारी स्थितियां सामने नहीं हैं? मसलन, रोजगार के अवसरों की ही बात करें तो शासकीय आंकड़े बतलाते हैं कि नवम्बर, 2016 में लाई गई नोटबन्दी और तत्पश्चात कोरोना के चलते करोड़ों लोगों ने अपने रोजगार खोये हैं। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने लिये रोजगार ढूंढने ही बन्द कर दिये हैं।

आम चुनाव की दहलीज पर खड़े और भारत के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने को आतुर नरेन्द्र मोदी अब लोगों से जानना चाहते हैं कि देश ने विभिन्न क्षेत्रों में कैसी तरक्की की है। शायद वे पहले पीएम हैं जो अपने 10 वर्षों के कामों पर जनता का सीधे फीडबैक मांग रहे हैं। इस लिहाज से उनकी तारीफ की जा सकती है परन्तु यह भी समझना होगा कि क्या वे केवल अपने बारे में रायशुमारी कर रहे हैं या सचमुच देश की प्रगति का आंकलन करना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव-2024 को बामुश्किल 3-4 माह ही रहते हैं, ऐसे में फीडबैक की उपयोगिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगते हैं।

जनता से मिलने वाले विचारों के मुताबिक कम से कम इस कार्यकाल में तो वे अपनी कार्यपद्धति में संशोधन नहीं कर सकते; तो क्या यह माना जाये कि वे आम राय का उपयोग अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिये करेंगे? ऐसा इसलिये लगता है क्योंकि मोदी का प्रशासन लगभग सभी मोर्चों पर नाकाम साबित हुआ है और उनकी छवि ने भी पिछले दिनों बड़ी गिरावट दर्ज की है। ऐसे में उन्हें अपनी छवि के पुनर्निर्माण की बेहद आवश्यकता है। उनके हाथों 22 जनवरी को उद्घाटित होने जा रहे जिस राममंदिर के बल पर वे अगला चुनाव जीतने की जुगत में है, उसका असर हिन्दीभाषी एवं उनसे लगे कुछ राज्यों से बाहर होने की संभावना नहीं दिखती। ऐसे क्षेत्रों में दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्वी राज्य, जम्मू-कश्मीर आदि का उल्लेख किया जा सकता है। इसलिये मोदी के लिये ज़रूरी है कि वे कुछ नया धमाल करें ताकि उनके समर्थक मानें कि उनका करिश्मा समाप्त नहीं हुआ है। सम्भवत: प्रस्तावित फीडबैक का उपयोग इसी उद्देश्य के लिये होगा।

अयोध्या में भव्य हवाई अड्डे के उद्घाटन से उत्साहित मोदी ने सोमवार को अपने एक्स (पहले का ट्विटर) पर पोस्ट कर लोगों से यह राय मांगी है। उन्होंने लिखा है- 'पिछले 10 वर्षों में अलग-अलग क्षेत्रों में भारत द्वारा हासिल की गई प्रगति के बारे में आप क्या सोचते हैं? अपनी प्रतिक्रिया नमो एप में 'जन मन सर्वे' के जरिए सीधे मुझ तक पहुंचाएं।' पीएम ने जिन क्षेत्रों में हुए कामों पर जनता से फीडबैक मांगा है, वे हैं- बुनियादी ढांचे का निर्माण, रोजगार के अवसर, राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, किसान समृद्धि, महिला सशक्तिकरण, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, कानून-व्यवस्था एवं शहरी विकास।

लोग मोदी शासन, उनके सांसदों एवं निर्वाचन क्षेत्र की विशिष्टताओं पर भी अपनी राय दे सकते हैं। यह भी पूछा गया है कि वे केन्द्र सरकार की किन योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। वैसे तो यह सर्वे नमो एप पर 19 दिसम्बर से जारी है लेकिन लगता है कि अब प्रधानमंत्री द्वारा एक्स पर पोस्ट करने के बाद इसमें तेजी आएगी। देखना यह भी होगा कि क्या इसमें केवल समर्थक ही जगह पायेंगे या फिर प्रतिकूल टिप्पणियों को भी नोट किया जायेगा? ऐसी आशंका इसलिये जताई जा सकती है क्योंकि मोदी अपनी आलोचनाओं को गालियां मानते हैं और उनकी डिक्शनरी में वे शब्द नहीं हैं जो उनके कामों के खिलाफ व्यक्त किये जाते हैं। यह सर्वे कितना पारदर्शी होगा- यह भी देखना होगा। कितनी ईमानदारी से इसके निष्कर्षों का प्रस्तुतीकरण होगा, इस पर भी गौर फरमाना चाहिये।

असली बात तो यह है कि जितने क्षेत्रों के कामों के बारे में पीएम जनता की राय पूछ रहे हैं, क्या उनके बारे में सारी स्थितियां सामने नहीं हैं? मसलन, रोजगार के अवसरों की ही बात करें तो शासकीय आंकड़े बतलाते हैं कि नवम्बर, 2016 में लाई गई नोटबन्दी और तत्पश्चात कोरोना के चलते करोड़ों लोगों ने अपने रोजगार खोये हैं। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने लिये रोजगार ढूंढने ही बन्द कर दिये हैं। बड़े प्रयासों के बाद जितनी बड़ी तादाद में लोगों को गरीबी रेखा से बाहर लाया गया था, उससे कहीं ज्यादा लोग इन 10 वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे गये हैं। तभी तो 80 करोड़ लोग सरकारी राशन पर जिंदा हैं। अब तो सरकार ने इस बाबत आंकड़े रखने ही बन्द कर दिये हैं। सर्वे में उल्लिखित किसी भी क्षेत्र को देखें, तो बदहाली के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा।

सवाल तो यह भी है कि क्या मोदी इन तथ्यों को स्वीकारेंगे और तदनुसार अपने कामों में परिवर्तन लाएंगे? सरकारी कामकाज में जिन कमियों की ओर जो भी विरोधी दल के नेता, लेखक, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता आदि बातें करते हैं, उन्हें देशद्रोही या टुकड़े-टुकड़े गैंग करार दिया जाता है या कहा जाता है कि वह विदेशी शक्तियों के इशारों पर काम कर रहा है। आखिरकार देश की तरक्की की स्थिति पर ही तो संसद के सदस्य सदनों के भीतर बात करना चाहते हैं परन्तु उन्हें बोलने नहीं दिया जाता। जनता के प्रतिनिधियों से संवाद को बन्द कर मोदी जनता से सीधे जो राय लेना चाहते हैं, उसके पीछे की मंशा को भी समझना होगा।

सीधी सी बात है कि जो आंकड़े एकत्र होंगे, उन्हें चुनाव के पहले इस कदर पेश किया जायेगा कि देश में सब कुछ अब भी चंगा सी। बतलाया यह जायेगा कि देश ने मोदी के नेतृत्व में चहुंतरफा तरक्की की है। ऐसी प्रगति पहले कभी नहीं देखी नहीं गई। इसके लिये जहां एक ओर तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने में विशेषज्ञ लोगों एवं आईटी सेल का उपयोग होगा वहीं दरबारी मीडिया नमो-नमो का फिर से जाप करेगा। इसी सामग्री का उपयोग मोदी सरकार की कार्य कुशलता को साबित करने एवं मोदी की छवि एक महान प्रशासक के रूप में गढ़ने के लिये होगा जिसकी उन्हें इस वक्त सख्त ज़रूरत है।

गौतम अदानी के साथ उनके सम्बन्धों, मणिपुर की घटना, थोक के भाव में सांसदों का निलम्बन जैसे मुद्दों के चलते वे इमेज क्राइसिस से गुज़र रहे हैं। हालांकि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर उनका एवं भाजपा का उत्साह लौटा है, क्योंकि माना जा रहा था कि इनमें भाजपा जीतने नहीं जा रही है। श्रेय भी बेशक मोदी को ही जाता है। इसलिये पीएम एक बार फिर से अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिये कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं।

राममंदिर का मुद्दा तो प्रमुख आसरा रहेगा ही, मोदी को यह भी साबित करना आवश्यक है कि भौतिक मुद्दों पर भी वे सफल रहे हैं। हालांकि अपनी सफलता के गुणगान वे अपने ही मुंह से पहले से सभी मंचों पर करते आये हैं- चुनावी सभाओं व प्रचार रैलियों के जरिये। जहां उनका विरोध हो सकता है, उन संवाद चैनलों को वे पहले ही बन्द कर चुके हैं। इनमें मीडिया एवं संसद है। प्रेस कांफ्रेंस वे करते नहीं और लोकसभा हो या राज्यसभा- वहां वे उठाये गये मुद्दों पर प्रतिपक्ष को जवाब देते नहीं। जो अधिक विरोध करे उनके भाषणों को विलोपित कर दिया जाता है या निलम्बन के जरिये बाहर का रास्ता दिखला दिया जाता है।

देखना होगा कि इन परिस्थितियों में जनता मोदी के कामों को लेकर क्या विचार व्यक्त करती है और मोदी-भाजपा का प्रचार तंत्र उसे क्या इस रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम होगा कि मोदी तीसरी मर्तबा सरकार बना सकें? यह सवाल लाजिमी है क्योंकि अब कांग्रेस के नेतृत्व में देश के 28 राजनैतिक दल मोदी के खिलाफ लामबन्द हैं और उनके प्रोपेगैंडा का हर मौकों पर माकूल जवाब दे रहे हैं। फिर, राहुल की 'भारत न्याय यात्रा' भी तो अब निकलने वाली है।


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