एक ही मुखड़े पर अटके मोदी के सुर
भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच हो रहे मुकाबले में अब तक बसपा किसी के साथ नहीं थी

- सर्वमित्रा सुरजन
भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच हो रहे मुकाबले में अब तक बसपा किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंगलवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने अचानक अपने उत्तराधिकारी और पार्टी संयोजक आकाश आनंद को उनके दायित्वों से मुक्त कर दिया। मायावती ने आकाश आनंद की अपरिपक्व बताते हुए यह फैसला लिया। जबकि इस बार आकाश आनंद का बसपा के लिए प्रचार काफी सुर्खियां बटोर रहा था।
देश में सात चरणों में हो रहे मतदान में तीन चरण पूरे हो चुके हैं और अब बचे चार चरणों के लिए राजनैतिक दलों के प्रचार जोरों पर हैं। दूसरे चरण के मतदान 26 अप्रैल को हुए थे और तीसरे चरण के 11 दिन बाद 7 मई को, इन 10-11 दिनों के अंतराल में राजनैतिक घटनाक्रम में तेजी से बदलाव आए। कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। राहुल गांधी एक बार फिर से उत्तरप्रदेश से उम्मीदवारी के लिए तैयार हुए। कांग्रेस ने उन्हें अपनी मां सोनिया गांधी की संसदीय सीट को संभालने का जिम्मा सौंपा है, वहीं उनकी पहले की सीट अमेठी से कांग्रेस ने इस बार गांधी परिवार के नजदीकी के एल शर्मा को खड़ा किया है। प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल और राजनैतिक सहयोगी के एल शर्मा के लिए जमकर प्रचार कर रही हैं। बीते सोमवार 6 मई से प्रियंका अमेठी और रायबरेली में हैं और 18 मई तक उनका यहीं रहने का इरादा है। 20 मई को पांचवे चरण के मतदान में अमेठी और रायबरेली की सीटें भी शुमार हैं। कांग्रेस इस बार अपनी इन दोनों सीटों को फिर से हासिल करने की तैयारी में है। भाजपा को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में कुछ ऐसा दांव खेल जाएगी, क्योंकि भाजपा ने अमेठी को अपने लिए सुरक्षित सीट मान लिया था और सोनिया गांधी की गैरमौजूदगी में रायबरेली पर भी कब्जा करने की तैयारी उसकी थी। लेकिन कांग्रेस ने एक तीर से इस बार कई शिकार कर लिए। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए अब जीतना कठिन हो गया है और हारने पर उनके सियासी भविष्य के लिए संकट होगा, क्योंकि जनता के बीच संदेश जाएगा कि वे कांग्रेस के एक साधारण कार्यकर्ता से हार गईं। वहीं रायबरेली से भी अगर राहुल गांधी की जीत होती है तो फिर वे वायनाड या रायबरेली किसी एक सीट को छोड़ सकते हैं और मुमकिन है उसके उपचुनाव में प्रियंका गांधी को खड़ा कर दिया जाए।
इस तरह कांग्रेस के लिए हर तरफ से जीत है, जबकि भाजपा के लिए इसमें नुकसान है। अमेठी में कांग्रेस के पक्ष में बन रहे इस माहौल के बीच ही रविवार रात कांग्रेस कार्यालय के बाहर खड़ी गाड़ियों में तोड़-फोड़ की गई और कुछ लोगों को चोट भी पहुंचाई गई है। यह कृत्य किसका है, फिलहाल इसकी जांच ही चल रही है, लेकिन अमेठी में इससे पहले कभी इस तरह चुनावों के वक्त किसी राजनैतिक दल पर हमले की घटनाएं नहीं हुई हैं। इस बार क्यों हुई हैं, यह विचारणीय है। अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस की बढ़त बनाने की रणनीति के साथ-साथ हरियाणा से भी भाजपा के लिए अच्छी खबर नहीं आई। वहां तीन निर्दलीय विधायकों दादरी से सोमबीर सांगवान, पुंडरी से रणधीर गोलन और धर्मपाल गोंधर ने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया और भाजपा की सरकार से हाथ पीछे खींच लिए, जिसके बाद नायब सिंह सैनी की सरकार अल्पमत में आ गई है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जेजेपी के दुष्यंत चौटाला ने भी कांग्रेस को साथ देने की बात कही है ताकि वह सरकार बना सके। यानी भाजपा से एक और राज्य की सत्ता जा सकती है। वहीं तीसरे चरण के मतदान के दिन ही महाराष्ट्र में एनसीपी नेता शरद पवार ने बयान दिया कि कुछ क्षेत्रीय दल कांग्रेस में खुद को मिला सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि अब कांग्रेस के बढ़ते कद को दूसरे नेता भी स्वीकार करने लगे हैं।
इधर उत्तरप्रदेश में तीन चरणों के मतदान के बाद खबरें आ रही हैं कि भाजपा को इस बार इंडिया गठबंधन से कड़ी टक्कर मिली है। जिस राज्य में भाजपा अपनी जीत का बड़ा आधार मान रही थी, वहां से उसे झटका मिला है। भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच हो रहे मुकाबले में अब तक बसपा किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंगलवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने अचानक अपने उत्तराधिकारी और पार्टी संयोजक आकाश आनंद को उनके दायित्वों से मुक्त कर दिया। मायावती ने आकाश आनंद की अपरिपक्व बताते हुए यह फैसला लिया। जबकि इस बार आकाश आनंद का बसपा के लिए प्रचार काफी सुर्खियां बटोर रहा था। लंदन से पढ़ाई करके आने के बाद अपनी बुआ की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने और दलितों के लिए राजनैतिक सत्ता की बात करने वाले आकाश आनंद अपने भाषणों में भाजपा पर तीखे प्रहार कर रहे थे। उनके भाषणों में वह धार मतदाताओं को दिख रही थी, जिसकी उम्मीद अब तक बहनजी से की जाती रही, लेकिन कई बरसों से निराशा ही मिल रही थी। दलितों से जुड़े अनेक गंभीर मामलों में बहनजी की चुप्पी उनके समर्थकों को अखर रही थी, लेकिन आकाश आनंद के कारण उनमें नया जोश भरा था। ऐसे में बसपा के लिए सीटें बढ़वाने की गुंजाइश बन रही थी, लेकिन शायद भाजपा की नाराजगी को भांपते हुए मायावती ने ऐसा फैसला ले लिया।
तीसरे चरण के मतदान के दौरान और उससे पहले हुई इन सियासी घटनाओं के बीच ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी ने अदालत में स्वीकार किया कि उसकी बनाई कोरोना वैक्सीन के घातक साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसके बाद कंपनी ने दुनिया भर में भेजी गई अपनी वैक्सीन को वापस मंगाने का फैसला भी लिया। इसी कंपनी के फार्मूले पर भारत में कोविशील्ड बनी थी और वैक्सीन प्रमाणपत्र पर मोदीजी की तस्वीरें तो होती ही थीं। लेकिन अब सरकार ने वैक्सीन के प्रमाणपत्र से नरेन्द्र मोदी की फोटो हटा ली है। इसका मतलब यह समझा जा सकता है कि इलेक्टोरल बॉंड के खुलासे की तरह कोविशील्ड के साइड इफेक्ट की बात से पर्दा उठना भाजपा के लिए महंगा पड़ चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों में भी पहले चरण से लेकर तीसरे चरण तक कई बदलाव आ गए, हालांकि उसका मुखड़ा एक ही रहा। कांग्रेस की आलोचना करना श्री मोदी के भाषणों का स्थायी मुखड़ा रहता है और अंतरे में मंगलसूत्र, भैंस, राम मंदिर, बाबरी ताला अपनी सुविधा से लाते रहते हैं। लेकिन बुधवार को उनके अंतरे ने सभी को चौंका दिया। इस बार अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि अडाणी, अंबानी का नाम अब वो नहीं ले रहे हैं, क्या उनके पास बोरियों में काला धन पहुंच गया है। प्रधानमंत्री के तेलंगाना में दिए इस भाषण के बाद प्रतिक्रियाओं का ढेर लग गया और सबमें लगभग एक जैसी ही राय दिखी कि क्या अब नरेन्द्र मोदी पर हार का डर इतना हावी हो गया है कि वे अडाणी-अंबानी के बारे में कह रहे हैं उन्होंने कांग्रेस की मदद की है।
दस सालों में प्रधानमंत्री मोदी को मुकेश अंबानी और गौतम अडाणी के साथ नजदीकी संबंध निभाते तो कई बार देखा गया, लेकिन इस दौरान विपक्ष ने जब भी सवाल उठाए कि देश की सार्वजनिक संपत्ति, सारे संसाधनों पर केवल दो लोगों को हक क्यों दिया जा रहा है। विकास का ये कौन सा गुजरात मॉडल है। आखिर श्री मोदी इन दो उद्योगपतियों पर इतने मेहरबान क्यों हैं। तो इन सवालों का कोई जवाब नरेन्द्र मोदी ने नहीं दिया। उन्होंने दावा किया था कि काला धन वापस ले आएंगे और नोटबंदी का मकसद भी यही था। लेकिन अब वे कह रहे हैं कि इन उद्योगपतियों से कांग्रेस को काला धन मिला है। यानी प्रधानमंत्री मोदी अपनी विफलता के साथ-साथ देश की जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर भी सवाल उठा गए।
इलेक्टोरल बॉंड के साथ शुरु हुए इस बार के चुनावी सफर में अब वो मुकाम आ गया है जहां नरेन्द्र मोदी अडाणी-अंबानी को अपने भाषण का हिस्सा बना रहे हैं। इस सफर में अभी कई मोड़, कई ऊंचे-नीचे रास्ते आना बाकी हैं। देखना होगा कि श्री मोदी के भाषणों में कांग्रेस और गांधी परिवार की आलोचना के अलावा जनता से जुड़े मुद्दे भी शामिल होते हैं या उनके सियासी सुर एक ही मुखड़े पर अटके रहेंगे।


