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युवाओं को मोदी का अनूठा टास्क ; सेल्फी खेंचो- एप्प में डाल तमाशा देखो

काशी और बाकी देश के युवाओं को किसी ए आई- नकली बुद्धिमत्ता- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जरूरत नहीं है

युवाओं को मोदी का अनूठा टास्क ; सेल्फी खेंचो- एप्प में डाल तमाशा देखो
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- बादल सरोज

काशी और बाकी देश के युवाओं को किसी ए आई- नकली बुद्धिमत्ता- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जरूरत नहीं है। अपने हर रोज के अनुभव से वह इन बातों को जानता समझता है। युवा भारत यह सब समझता है यह जानकर ही हुक्मरान ज्यादा परेशान और घबराए दीखते हैं और उसे इधर उधर उलझाने की तिकड़म ढूंढते हैं, साजिशें रचते हैं। मगर काठ की हांडियां बार-बार नहीं चढ़ती - इस बार भी नहीं चढ़ेंगी।

भाजपा के सुप्रीमो युगपुरुष मोदी जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि देश की जनता जब उनसे प्रधानमंत्री- जिस रूप में वे शायद ही कभी रहे हों- के नाते खेत के बारे में कुछ जानना चाहती है तब वे खलिहान की बात करते हैं, जब जमीन पर धधकती आग के बारे में कुछ सुनना चाहते हैं वे आसमान की बात करते हैं, जब सवाल हिन्दुस्तान के होते हैं तब वे पाकिस्तान की बात करते हैं।

अगम्भीर राजनीतिक प्रलाप और अपनी ही जनता के बड़े हिस्से के खिलाफ जो रिकॉर्ड उन्होंने अपने 10 साल के प्रधानमंत्री कार्यकाल में कायम किये हैं उसकी मिसाल दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलती। मगर बनारस विश्वविद्यालय में हाल में दिया उनका भाषण खुद उनके ही अब तक के शोचनीय स्तर से भी काफी चिन्ताजनक स्तर का था। दुनिया और देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जब शिक्षण संस्थाओं में, विश्वविद्यालयों में जाते हैं तो ज्ञान की, विज्ञान की, दर्शन की, इतिहास की, दुनिया और समाज की नई नई जानकारियां देते हैं, पुरानी का नया भाष्य प्रस्तुत करते हैं। ऐसी नयी बातें बोलते हैं जो न सिर्फ सुनने वालों की जानकारियां बढ़ाते हैं, उन्हें समृद्ध करते हैं बल्कि एक संग्रहनीय दस्तावेज के रूप में भविष्य में भी काम आते हैं।

मोदी ऐसा करेंगे ऐसी उम्मीद तो किसी को भी नहीं थी मगर वे देश के इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के बीच मखौल करेंगे यह भी शायद ही किसी ने सोचा होगा। वे यही कर रहे थे, बाकायदा उनके बीच घूम-घूम कर उन्हें सिखा रहे थे, कि अपनी सेल्फी- स्वयं के मोबाइल से स्वयं के फोटो- कैसे लें और उन्हें खुद उनके नमो एप्प पर अपलोड कैसे करें ताकि ए आई के जरिये मोदी की हर फोटो के साथ वे अपनी फोटो देख सकें। जिस विश्वविद्यालय ने इंजीनियरिंग और चिकित्सा, दर्शन और साहित्य सहित हर विधा में देश को अनेक विद्वान व्यक्ति दिये हैं उसके विद्यार्थियों को वे बनारस का गाइड बनने का कौशल विकसित करने की सलाह दे रहे थे ; उन्हें हर हर शंभू का जाप करना सिखा रहे थे।

ये कलाकारियां वे उस बीएचयू में सिखा रहे थे जिसके इसी कैंपस मे अभी चंद महीने पहले ही खुद उनकी पार्टी के युवा नेताओं, भाजपा आई टी सैल से संयोजक कुणाल पाण्डेय, सह-संयोजक सक्षम पटेल और कार्यसमिति सदस्य आनन्द उर्फ़ अभिषेक चौहान ने आई आई टी की एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। बलात्कार पीड़िता और उसके परिजनों की ही नहीं बाकी सभी लोगों की भी उम्मीद रही होगी कि इस जघन्य काण्ड की जगह पर बोलते हुए इस क्षेत्र का सांसद, जो देश का प्रधानमंत्री भी है, इसकी निंदा भर्त्सना का साहस भले न जुटा पाए मगर पीड़िता के प्रति संवेदना तो जताएगा ही, लड़कों को ऐसे आचरण से दूर रहने की सलाह तो देगा ही : मगर 'सेल्फी खेंचो -एप्प में डाल तमाशा देखो' वाले अपने भाषण में वे ऐसा कुछ भी नहीं बोले।

बोलने को तो वे उन युवाओं पर भी नहीं बोले जिनकी बीसियों हजार की भीड़ से ठीक उसी दिन यूपी के सारे रेलवे स्टेशन पटे हुए। ये वे युवा थे जो खूब तैयारी करके, आवेदन शुल्क के नाम पर सरकारी खजाने में करोड़ों रुपये जमा करके, मात्र 7 हजार पुलिस आरक्षकों की नौकरियों के लिए आधा करोड़ की संख्या में उस प्रतियोगी परीक्षा को देने जा रहे थे जिसका पर्चा लीक हो चुका था। परीक्षा पर चर्चा के नाम पर किशोर और युवाओं को इम्तहान पास करने के गुर सिखाने वाले मोदी इन परीक्षार्थियों के बारे में एक शब्द नहीं बोले; उन्हें पता था कि इन पर बोलेंगे तो उस रोजगार पर भी बोलना होगा जिसकी आस में ये 48 लाख मारे मारे घूम रहे हैं और निराश होकर लौट रहे हैं।

मोदी अपने विरोधी दल के नेता के भाषण को सन्दर्भ से काटकर रखते हुए उसके खिलाफ अपने श्रोता छात्र-छात्राओं को भड़का रहे थे। राहुल गांधी ने बनारस के युवाओं को नशेड़ी कहकर मेरी काशी, मेरी यूपी के युवाओं का अपमान किया है का आरोप लगाते हुए उनमे उन्माद पैदा कर रहे थे।

'गांठ से न दे भूसी- बातों से कर दे ख़ुशी' में दक्षता हासिल करने के लिए अनवरत रियाज करने वाले मोदी ने कहावतों को भी झाड़- पोंछकर, अदल-बदल कर अपने लायक बनाया हैं। ढपोर शंख और दंतनिपोर खोखली और कभी न पूरी होने वाली घोषणाओं के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले शब्द थे,मोदी ने इन्हें निचोड़ शंख तक पहुंचाया है; मतलब यह कि जो कह रहे हैं वह तो होगा ही नहीं, उसका ठीक उलटा अवश्य होगा । उन्होंने खुद अपने ही शब्दों को और आगे विकसित करते हुए पहले वायदों को जुमला बताया था, अब जुमलों को नया नाम देकर उन्हें मोदी की गारंटी कर दिया है।

इस सच्चाई को समझने के लिए काशी और बाकी देश के युवाओं को किसी ए आई- नकली बुद्धिमत्ता- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जरूरत नहीं है। अपने हर रोज के अनुभव से वह इन बातों को जानता समझता है। युवा भारत यह सब समझता है यह जानकर ही हुक्मरान ज्यादा परेशान और घबराए दीखते हैं और उसे इधर उधर उलझाने की तिकड़म ढूंढते हैं, साजिशें रचते हैं। मगर काठ की हांडियां बार-बार नहीं चढ़ती - इस बार भी नहीं चढ़ेंगी।
(लेखक लोकजतन संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसानसभा)


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