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मोदी के राजनैतिक मॉडल को बड़े पैमाने पर नकारा जनता ने

निर्वाचन आयोग की सुस्ती के चलते मंगलवार की शाम तक लोकसभा चुनाव की सारी सीटों के नतीजे तो नहीं आ पाए

मोदी के राजनैतिक मॉडल को बड़े पैमाने पर नकारा जनता ने
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- डॉ. दीपक पाचपोर

अपने 'कांग्रेस मुक्त भारत' व बाद में 'विपक्ष मुक्त भारत' के सपने को पूरा करने के लिये मोदी-शाह की जोड़ी ने देश भर के उन सभी राज्यों में 'ऑपरेशन लोटस' चलाया जिसके अंतर्गत विरोधी दलों की सरकारों को गिराया गया। इस दशक भर में 400 से अधिक विपक्षी विधायकों, सांसदों व नेताओं को खरीदकर या डरा-धमकाकर भाजपा में शामिल कराया गया।

निर्वाचन आयोग की सुस्ती के चलते मंगलवार की शाम तक लोकसभा चुनाव की सारी सीटों के नतीजे तो नहीं आ पाए, लेकिन जितने परिणाम आ सके और धुंधली सी ही भावी लोकसभा की जैसी तस्वीर बनती नज़र आ रही है वह यह तो अब तक नहीं बता पाई है कि किसकी सरकार बनने जा रही है, लेकिन एक बात जो स्पष्ट हो गयी है वह यह कि देश की जनता ने निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नकारात्मकता एवं उनके द्वारा पिछले एक दशक में लागू राजनैतिक मॉडल को पूर्णत: अस्वीकृत कर दिया है। शाम तक भाजपा प्रणीत एनडीए व कांग्रेस के नेतृत्व में बने इंडिया गठबन्धन की बराबरी की टक्कर जारी थी। कभी किसी के आंकड़े ऊपर जा रहे थे तो कभी किसी के। हो सकता है कि जोड़-तोड़ में माहिर भारतीय जनता पार्टी सरकार बना ले और मोदी तीसरी बार पीएम बनने का अपना सपना भी पूरा कर लें, लेकिन यह निश्चित है कि मोदी बेहद कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर काम कर सकेंगे। उनके पास पहले दो कार्यकालों जैसा न तो रौब-दाब होगा और न ही वे सरकार व पार्टी के भीतर एकछत्र राज कर पायेंगे। इस लिहाज़ से कहा जा सकता है कि आने वाली राजनीति उन दुर्गुणों से मुक्त हो सकती है जो मोदी लेकर आये थे।

उल्लेखनीय है कि दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के शाम तक आये आंकड़े बहुमत के ईर्द-गिर्द थे। इसका अर्थ यह है कि जिसकी भी सरकार बनेगी वह घटक दलों पर बहुत ज्यादा आश्रित रहेगी। मोदी को अपनी सियासत का वह स्वरूप छोड़ना होगा जो उन्होंने बड़े बहुमत के बल पर गढ़ा था। उनकी व्यक्तिवादी राजनीति भाजपा पर भारी पड़ती नज़र आई है। इस लिहाज से कहें तो पार्टी भी उनके बारे में सोच सकती है कि क्या वह उन्हीं के नेतृत्व में सरकार बनाये या कोई नया चेहरा तलाश किया जाये। खैर, यह भाजपा व उसके सहयोगी दलों के सोचने की बात है परन्तु उन बिन्दुओं पर विचार किया जाना ज़रूरी है जो मोदी निर्मित राजनीति के हिस्से हैं। उनमें पहला तो है निरंकुशता का। याद हो कि 2014 में आये मोदी ने सारी शक्तियां अपने हाथों में ले ली हैं। संसद हो या कार्यपालिका अथवा कोई भी संवैधानिक संस्थाएं- सारी की सारी मोदी ने अपनी मु_ियों में कैद कर रखी थीं। जितने भी निर्णय लिये गये, वे सारे मोदी द्वारा या गिने-चुने लोगों के साथ मिलकर लिये गये। जीएसटी से लेकर नोटबन्दी व बुलेट ट्रेन से लेकर सेंट्रल विस्टा तक के फैसले अकेले मोदी ने लिये। संसद को कभी भरोसे में नहीं लिया गया। मंत्रिपरिषद नाममात्र की थी। फोकस मोदी पर ही रहा। समारोहों एवं विज्ञापनों में केवल मोदी ही होते थे। किसे चुनावी टिकट देने हैं और किन्हें नहीं- यह फैसला भी मोदी व उनके खासमखास केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह लेते रहे। पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मुहर मात्र हैं।

अपने 'कांग्रेस मुक्त भारत' व बाद में 'विपक्ष मुक्त भारत' के सपने को पूरा करने के लिये मोदी-शाह की जोड़ी ने देश भर के उन सभी राज्यों में 'ऑपरेशन लोटस' चलाया जिसके अंतर्गत विरोधी दलों की सरकारों को गिराया गया। इस दशक भर में 400 से अधिक विपक्षी विधायकों, सांसदों व नेताओं को खरीदकर या डरा-धमकाकर भाजपा में शामिल कराया गया। राजनैतिक विरोधियों ही नहीं बल्कि वैचारिक रूप से उनके खिलाफ सभी लोगों को उन्होंने प्रताड़ित किया है। बड़ी संख्या में लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस दौरान जेल का रास्ता दिखाया गया। संसद के भीतर विरोधी पार्टियों के सदस्यों को थोक के भाव से निकाल बाहर किया गया, उनके बयानों को कार्यवाहियों से हटाया गया। इस दौरान मोदी ने प्रेस या किसी भी तरह के उन्मुक्त संवाद से दूरी बनाये रखी। अलबत्ता ऐन चुनाव के वक्त पर उन्होंने 75 से अधिक साक्षात्कार देकर जनता को प्रभावित करने की कोशिश की।

मोदी ने भारत के सामाजिक माहौल को भी खराब किया है। उनके सारे चुनावी भाषण नफरत पर आधारित और विभाजनकारी थे। हिन्दू वोटों के धु्रवीकरण के फेर में मोदी अपने पद की गरिमा से काफी नीचे उतर गये थे। उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र पर 'मुस्लिम लीग की छाया' बतलाई तो वहीं यह झूठ बोला कि 'कांग्रेस की सरकार आई तो वह लोगों से मंगलसूत्र छीन कर कई-कई बच्चों वालों (मुसलमानों) को दे देगी।' उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 'कांग्रेस व इंडिया गठबन्धन वाले लोगों के घरों में एक्सरे के द्वारा सोना निकाल लेंगे। यहां तक कि दो भैंसें हों तो एक भैंस खोलकर ले जायेंगे।' वे विपक्ष के नेताओं, खासकर कांग्रेस के खिलाफ बहुत अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते रहे। नतीजे बताते हैं कि उनकी शब्दावली का उन्हें फायदा तो मिला नहीं, उल्टे भारी नुकसान ही हुआ है। यह भी लोगों ने पूरी तरह से अस्वीकार किया कि उनके पीएम इस कदर अशालीन भाषा का प्रयोग करें।

मोदी की राजनीति पूंजीवाद को बढ़ावा देने की रही है। 60 वर्षों के दौरान भारतीयों द्वारा कड़ी मेहनत कर बनाये गये अनेक सरकारी उपक्रमों को मोदी ने अपने मित्रों को औने-पौने भाव में बेच दिया या ऊपहारों की तरह सौंप दिया। निजीकरण को इस दौरान इस प्रकार से प्रचारित किया मानों उसी के बल पर भारतीयों के घरों में लक्ष्मी बरसेगी। हुआ इसके विपरीत। आज देश के 80 करोड़ से ज्यादा लोग शासकीय राशन (5 किलो) पर जीवित हैं। मोदी ने उन्हें नागरिक से लाभार्थी बनाकर रख दिया। दरअसल यह भी उनकी राजनीति का ही हिस्सा है जिसके पीछे नागरिकों को कमजोर करने का षडयंत्र छिपा हुआ है।

मोदी ने जिस धु्रवीकरण के बल पर तीसरी बार सत्ता पानी चाही है, हो सकता है कि उन्हें फिर से सरकार बनाने में कामयाबी मिल जाये लेकिन अयोध्या जिस सीट के अंतर्गत आता है, यानी फैजाबाद, वहां से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह हार गये। इसी प्रकार से कैराना सीट, जो हिन्दू बहुल है- वहां इकरा हसन ने जीत दर्ज कर बतला दिया है कि यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है और गंगा-जमुनी तहज़ीब ही इसकी प्रमुख पहचान है। पिछले कुछ समय से भाजपा यह बतलाने की कोशिश करती रही है कि भारत केवल हिन्दुओं का ही देश है और अल्पसंख्यक, विशेषकर मुस्लिम यहां दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रहेंगे। समान नागरिक संहिता, नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, तीन तलाक व जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति जैसे कदम भाजपा सरकार ने इसी उद्देश्य से उठाये थे। कांग्रेस तथा विरोधी दलों को हिन्दू विरोधी या पाकिस्तानपरस्त बतलाने का गंदा खेल भाजपा द्वारा खूब खेला गया और उसका नेतृत्व मोदी-शाह ने किया।

भाजपा द्वारा 370 व 400 सीटें लाने का उद्देश्य क्या था, यह भी सामने आ चुका था। जो लल्लू सिंह व गोविल पराजित हुए हैं, उनके अलावा भाजपा के ही अनंत हेगड़े और ज्योति मिर्धा जैसों ने साफ किया था कि पार्टी को 400 सीटें इसलिये चाहिये क्योंकि उसे संविधान बदलना है। भाजपा की इस मंशा के खिलाफ भारत का बड़ा हिस्सा खड़ा हो गया। राहुल गांधी व कांग्रेस ने साफ किया कि वे ऐसा होने नहीं देंगे। इस प्रकार से यह चुनाव संविधान व लोकतंत्र बचाने का भी बन गया। लोगों के सामने यह भी साफ हो गया कि इतनी बड़ी संख्या में सीटें पाने के लिये भाजपा सरकार केन्द्रीय जांच एजेंसियों, निर्वाचन आयोग व ईवीएम का दुरुपयोग कर रही है। इसे भी जनता ने नकारा है।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)


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