मोदी सरकार अब तक की सबसे बड़ी किसान विरोधी सरकार : गौरी शंकर बिदुआ
यह सरकार एक तरफ तो किसान की आय दोगुनी करने का बात करती है लेकिन इन विधेयकों को लाकर कुछ ऐसा काम किया है कि किसान की आय ही नहीं रहेगी।

झांसी । उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के किसान नेता और किसान रक्षा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरी शंकर बिदुआ ने लोकसभा में तीन कृषि विधेयक पारित कराने वाले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए इसे अब तक कि सबसे बड़ी किसान विरोधी सरकार बताया है।
लोकसभा में पारित तीन विधेयकों पर कड़ी नाराजगी जताते हुए किसान नेता ने यूनीवार्ता से खास बातचीत में शनिवार को कहा कि यह सरकार एक तरफ तो किसान की आय दोगुनी करने का बात करती है लेकिन इन विधेयकों को लाकर कुछ ऐसा काम किया है कि किसान की आय ही नहीं रहेगी। जब आय ही नहीं होगी तो दोगुना क्या करेंगे। यूं तो अभी तक की कोई सरकार किसान हितैषी नहीं रही है और सभी ने किसानों का इस्तेमाल किया है लेकिन इस सरकार तो सभी को पीछे छोड़ते हुए किसान को मजदूर ही बना दिया है ।
सरकार जिन नीतियों को किसान हितैषी बता रही है उससे बुंदेलखंड का किसान तो पूरी तरह से ही बरबाद हो जायेगा । यहां 82 प्रतिशत लघु और सीमांत किसान हैं । ये ऐसे किसान हैं जो मात्र 50 किलोमीटर की दूरी तक तो अपनी फसल बेचने ले जा नहीं पाते, वह अब नयी व्यवस्था में कितनी दूर तक ले जा पायेंगे और इनकी मोलभाव की कितनी क्षमता है। यह किसान जो अपने क्षेत्र में, अपने लोगों से, अपने उत्पादन का उचित मूल्य नहीं ले पाते वह क्या बड़े व्यवसायियों से अपने छोटे से उत्पादन का उचित मूल्य हासिल कर पायेंगे। सरकार केवल बड़ी बड़ी बातें और वादें करती हैं लेकिन वास्तविकता में इनके आने के बाद कहीं कुछ बदलाव नहीं आया है, कम से कम किसानों और विशेषकर बुंदेलखंड के किसानों की स्थिति में तो बिल्कुल ही नहीं। अगर इस सरकार की नीतियों से यहां के किसानों को कोई राहत मिली होती तो आज भी किसानों की आत्महत्या की खबरें आम नहीं होती। इन विधेयकों के पारित होने के बाद तो अब किसान के पास कुछ करने और कहने को रह ही नहीं गया है ,अब किसान के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
प्रधानमंत्री मोदी के न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद जारी रहने की बात को भी किसान नेता ने कोरी लफ्फाज़ी करार दिया है। प्रधानमंत्री ने ही कहा था कि कृषि फसल बीमा योजना में यह प्रावधान है कि जैसे ही फसल बरबादी की सूचना मिलेगी तो उसकी 50 प्रतिशत बीमा राशि 48 घंटे के भीतर किसान के खाते में पहुंच जाना चाहिए और बाकी राशि एक सप्ताह में पहुंच जाना चाहिए। हमारे यहां 2019 मे खरीफ की फसल को नुकसान हुआ था उसका मुआवजा आज तक नहीं मिला।
रबी की फसल का जो माल किसान ने न्यूनमत समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार पर सरकारी कांटों पर वर्ष 2018,19 और 20 में बेचा था उसका शत प्रतिशत भुगतान अभी तक नहीं मिला। ऐसे में किसान सरकार की इस बात पर कैसे विश्वास कर ले कि इन विधेयकों की वजह से किसान कहीं भी जाकर जब अपनी कीमत पर फसल बेचेगा तो तीन कार्यदिवस में उसकी पूरी कीमत व्यवसायी, उसे दे देगा। सरकार ने किसानों से किया कोई वादा तो पूरा किया हो तो किसान भी इनकी इस नयी बात पर भरोसा कर पाता लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है इसलिए प्रधानमंत्री के इस आश्वासन पर भी हमें भरोसा नहीं है।
श्री बिदुआ ने कहा कि सरकार ने कुछ नहीं फिर से किसानों को धोखा देने के लिए झूठ का एक पुलींदा तैयार किया है और आनन फानन में बिना किसी बहस के लोकसभा में यह विधेयक पारित कर दिये गये। अगर यह किसान की इतनी हितैषी ही सरकार है तो किसानों से इस बारे में पूछ तो लेती। हमारी ही आय दोगुनी और तीन गुनी करने की बात की जाती है और हमसे ही इस बारे में कोई बात नहीं की जाती , बस आनन फानन में कुछ कानून बनाकर हमारे मत्थे मढ दिये जाते हैं यही इस सरकार की नीति है।
किसान के बारे में इतने बड़े बडे फैसले किये जाते हैं और इसी वर्ग से कोई बात नहीं की जाती। उन्होंने बताया कि लोकसभा में पारित इन विधेयकों पर मंडल स्तर पर किसान और सांसदों के बीच चर्चा के लिए उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि यदि इस चर्चा के बाद किसान, सरकार के इस नये कदम को लाभकारी बताते हैं तो हम सरकार की बात मान लेंगे और यदि नहीं तो यह कदम वापस लिया जाए।
श्री बिदुआ ने सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि सरकार ने इन विधेयकों से देश में किसानों को पूरी ताकत से बरबाद करने का काम किया है यदि हमारे विरोध की आवाज को सुना नहीं गया और यह विधेयक वापस नहीं लिये गये तो अब किसान अगले चुनाव में इस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी ताकत से काम करेगा।
ऐसे किसान विरोधी कार्यों को बल मिलने के लिए उन्होंने देशभर के किसानों को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि हम किसान राजनीतिक रूप से आज मजबूत नहीं रह गये। संसद में एक किसान नेता नहीं रह गया । हम किसी न किसी पार्टी से जुड़े हैं लेकिन कोई किसान नेता नहीं, जो देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में किसानों की आवाज बुलंद कर सके। जब तक किसान राजनीतिक रूप से सशक्त नहीं होगा तब तक कभी कोई तो कभी कोई राजनीतिक दल इसी तरह हमारा उपयोग करके आंदोलन तो खड़ा करेगा लेकिन सत्ता मिलने पर हमारे ही खिलाफ काम करेगा। किसानों को राजनीतिक रूप से सशक्त होना ही होगा, नहीं तो ये राजनीतिक दल ऐसी ही नीतियां बनाकर खेती को बरबाद कर देंगे और हम केवल मजदूर बनकर रह जायेंगे।


