मोदी सरकार ने किया किसानों का बेड़ा गर्क: विपक्ष
विपक्ष ने मोदी सरकार पर आज किसान विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसने कृषि मंत्रालय की शक्तियां खत्म करके किसानों का बेड़ा गर्क कर दिया

नयी दिल्ली । विपक्ष ने मोदी सरकार पर आज किसान विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसने कृषि मंत्रालय की शक्तियां खत्म करके किसानों का बेड़ा गर्क कर दिया है और इसके परिणामस्वरूप हर माह करीब 950 किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
लोकसभा में विभिन्न कारणों से फसल को हुए नुकसान और इसका किसानों पर प्रभाव के बारे में नियम 193 के तहत चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के के. सुरेश ने ये आरोप लगाये। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न का उत्पादन घट रहा है। बेमौसम की बरसात और बाढ़ के कारण आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के 137 जिले प्रभावित हुए हैं लेकिन सरकार किसानों को हुए नुकसान की कोई भरपायी नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास फसल ऋण माफी का कोई प्रस्ताव नहीं हैं। यहां तक कि इस संबंध में अंतर्मत्रालयी अनुशंसा का भी पालन नहीं किया जा रहा है। किसानों से संबंधित सरकारी कार्यक्रम आधे-अधूरे हैं। ऋण के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 में 11379 किसानों ने आत्महत्या की यानी हर माह 948 किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
सांसद ने प्याज की आसमान छूती कीमतों की ओर सदन का ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि देश भर के बाजारों में प्याज 90 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। बड़े शहरों में इसकी कीमतें 130 रुपये तक पहुंच गयी हैं लेकिन महाराष्ट्र के किसान इसे महज आठ रुपये प्रति किलोग्राम बेच रहे हैं। कीमतों में इतनी वृद्धि का कोई फायदा किसानों तक नहीं पहुंच रहा है। इसके अलावा मौसम की मार, जलवायु परिवर्तन और कर्ज लौटाने के लिए बैंकों के दबाव से किसान भारी परेशानी से जूझ रहे हैं।
सुरेश ने केरल का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण राज्य की 52 प्रतिशत आबादी समस्याओं का सामना कर रही है। यहां 70 प्रतिशत लोगों की आजीविका मत्स्य पालन, पशु पालन और खेती पर निर्भर है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण का करीब 3.4 प्रतिशत जीव-जंतु मारे गये। करोड़ों रुपये की फसल और संपत्ति का नुकसान हुआ। सरकार को उन्हें संकट से उबारने के लिए मुआवजा देना चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने कहा कि संसद में हर बार किसानों का मुद्दा उठाया जाता है और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए संसद हमेशा एकमत रहती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनाें ही किसानों की मुश्किलें हल करना चाहते हैं लेकिन जब एक सरकार काम करती है तो विपक्ष में मौजूद पार्टी को दिक्कत होने लगती है। यही वजह है कि इस समस्या का हल नहीं निकल सका है। उन्होंने कहा कि 1952 से 2014 तक किसी भी सरकार ने किसानों को सीधी आर्थिक मदद नहीं दी। पहली बार मोदी सरकार ने छह हजार रुपये की प्रत्यक्ष सहायता दी।
उन्होंने कहा कि किसानों की आत्महत्या आंकड़े गिनाने से खत्म नहीं होगी। इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे जो प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी के नेतृत्व वाली सरकार उठा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वी पी सिंह और चंद्रशेखर के कार्यकाल में भी बड़ी संख्या में किसानों ने जान दी थी लेकिन इस बारे में कोई खबर नहीं बनी। यह मसला सबसे पहले तब रोशनी में आया, जब पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव की सरकार के दौरान उदारीकरण की शुरुआत के बाद विदर्भ में बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की। यह मसला उस समय चर्चा का बड़ा मुद्दा बना।
सिंह ने कहा कि मनरेगा को कृषि से जोड़ने की अपील की और 60 वर्ष से अधिक के किसानों के लिए पेंशन योजना शुरू करने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि ज्यादातार सरकारी विभागों में पेंशन का प्रावधान है लेकिन किसानों को कुछ नहीं मिलता। जिस तरह सेनाकर्मी, शिक्षक अथवा राष्ट्र निर्माण में जुटे अन्य लोगों को पेंशन दिया जाता है, किसानों को भी मिलना चाहिए।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम् के एस एस पलानीमणिकम ने भी प्याज का मसला उठाया। उन्होंने कहा कि प्याज की कीमतों पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर किसानों को 12 हजार रुपये देने का सुझाव देते हुए कहा कि आर्थिक मदद दे कर ही उनका भला किया जा सकता है।


