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अदानी-अंबानी पर मोदी और फंसे

लोकसभा के इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक ओर अत्यंत गरिमाहीन व अमर्यादित भाषण दे रहे हैं

अदानी-अंबानी पर मोदी और फंसे
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लोकसभा के इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक ओर अत्यंत गरिमाहीन व अमर्यादित भाषण दे रहे हैं, वहीं उनके बयान एकदम तथ्यहीन भी होते हैं जो देश के लिये आश्चर्य कम और झटके अधिक साबित हो रहे हैं। वैसे तो श्री मोदी जब से देश के राजनीतिक क्षितिज पर उभरे हैं, अपने वक्तव्यों से वे झूठ के अंबार खड़े कर रहे हैं। दो कार्यकाल के जरिये दस साल का शासन लगभग पूरे कर चुके प्रधानमंत्री ने जितने असत्य व अर्द्ध सत्य कहे हैं, उसकी चाहे जितनी बड़ी फेहरिस्त बना ली जाये, कई झूठ छूट ही जायेंगे। कई लोगों का मानना है कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिये अति व्यग्र मोदी तीन चरण के हो चुके मतदान के बाद अपनी साफ दिखती पराजय से इतने खौफ खाये बैठे हैं कि उन्होंने लोगों को प्रभावित करने के लिये अपने भाषणों में झूठ का तड़का बढ़ा दिया है। हालांकि उसकी मात्रा कुछ ऐसी ज्यादा हो चली है कि अब ये भाषण बेस्वाद व कड़ुए हो चले हैं।

विपक्ष, खासकर कांग्रेस पर वे अधिक हमलावर होते हैं। 'कांग्रेस मुक्त भारत' के नारे के साथ दिल्ली की गद्दी पर 2014 में विराजमान हुए मोदी ने 2019 में कहीं बड़ा बहुमत हासिल किया था। इससे ताकतवर बने मोदी के सामने अब बड़ा लक्ष्य था 'विपक्ष मुक्त भारत' बनाने का जिसके लिये भारतीय जनता पार्टी ने तमाम अनैतिक उपाय किये। इनमें विरोधी दलों की सरकारों को गिराने से लेकर विपक्षियों को डरा-धमकाकर या खरीदकर अपने खेमे में लाना शामिल था। उन्हें भी भाजपा में शामिल किया गया जिन पर उसकी ओर से भ्रष्टाचार या परिवारवाद के आरोप लगाये जाते रहे हैं। इसकी भी बहुत बड़ी सूची है। इस 'ऑपरेशन लोटस' के चलते देश का संघीय ढांचा ही नहीं वरन पूरी की पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली ही ध्वस्त कर दी गई। विपक्ष के कमजोर होने से मोदी सतत मजबूत होते चले गये। उन्होंने खुद को एकमात्र विकल्प बनाये रखने के लिये प्रतिपक्ष के साथ ही खुद की पार्टी को भी अपनी मुठ्ठी में कर लिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी उनके सामने एक नहीं चलती, जिसके कार्यकर्ता के रूप में खुद उनका सार्वजनिक जीवन शुरू हुआ था।

दूसरी ओर दस वर्षों में देश की संसद के साथ सभी संवैधानिक संस्थाओं को किस कदर कमजोर कर दिया गया- यह हर कोई देख रहा है। सारे फैसले चुनिंदा लोगों के हित में लिये जा रहे हैं। देश के सार्वजनिक उपक्रम कौड़ियों के मोल प्रधानमंत्री के कारोबारी मित्रों के नाम चढ़ चुके हैं। प्रतिरोध की आवाजें उठनी ही बन्द हो गई थीं। विरोधी सांसदों समेत अपने खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को मोदी कुचलते चले गये। संसद के भीतर जनविरोधी फैसले कभी विरोधियों की अनुपस्थिति में तो कभी बिना चर्चा के, कभी अध्यादेशों के द्वारा या फिर सामान्य आदेशों के माध्यम से लिये गये। सभी राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक शक्तियां नरेंद्र मोदी ने अपनी जेबों में डाल दी हैं। देश में जातिवाद व साम्प्रदायिकता का चरम तो दिख ही रहा है, पूंजीवाद भी अपने उत्कर्ष पर है। प्रधानमंत्री मोदी के परम मित्र गौतम अदानी एवं मुकेश अंबानी को जिस मनमाने ढंग से भाजपा सरकार द्वारा फायदा पहुंचाया गया, उसकी गूंज देश के भीतर ही नहीं वरन विदेशों में भी पहुंच चुकी है।

सितम्बर, 2022 के बाद समय ने पलटना शुरू किया जब राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर की पैदल यात्रा निकाली। इससे जहां एक ओर राहुल की वह छवि ध्वस्त हो गई जो भाजपा के आईटी सेल द्वारा करोड़ों रुपये खर्च कर बनाई गई थी, तो वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस पुनर्जीवित हो उठी। बड़ा परिवर्तन वह आया जिसका लोकतांत्रिक मूल्यों में भरोसा रखने वाली अवाम बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी- विपक्षी एकता की राह प्रशस्त हो गई। इस यात्रा के दौरान राहुल ने देश का विमर्श बदल डाला। एक तरफ़ तो जनसरोकार के मुद्दे केन्द्र में लौट आये वहीं केन्द्र सरकार की विफलताएं तथा मोदी के अदानी-अंबानी से रिश्ते भी जगजाहिर हो गये। राहुल व कांग्रेस ने संसद के भीतर बड़ी कीमत चुकाकर अदानी के साथ मोदी के सम्बन्धों की आवाज़ उठाई। इसी साल 14 जनवरी को मणिपुर से निकलकर 18 मार्च को मुम्बई में समाप्त हुई राहुल की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' ने सरकार की चूलें हिला दीं। उद्योगपतियों के साथ अपने रिश्तों व उनके लिये काम करने वाली अपनी नीतियों के कारण मोदी बेपर्दा हो गये।

पराजय के डर से इस चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के भाषण जहां एक ओर धु्रवीकरण को बढ़ावा देने वाले साबित हो रहे हैं वहीं वे राहुल पर अधिक हमलावर हो रहे हैं।उन पर अदानी-अंबानी को लेकर हुए हमलों पर अब तक चुप्पी साधने वाले मोदी ने पहली बार इन दोनों उद्योगपतियों के नाम जिस हास्यास्पद व विसंगतिपूर्ण ढंग से लिये उससे वे और भी फंसते चले गये। तेलंगाना के करीमनगर में उन्होंने कहा- 'पहले तो कांग्रेस के शहजादे (आशय- राहुल गांधी) दिन में कई बार अदानी-अंबानी का नाम जपते थे। इस चुनाव प्रचार में उन्होंने इन उद्योगपतियों के नाम लेने क्यों बन्द कर दिये? क्या रातों-रात कोई डील हो गई या उन तक बोरों में नोट पहुंच चुके हैं?' स्वाभाविक प्रतिक्रियास्वरूप कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बताया कि राहुल ने अदानी का 103 बार और अंबानी का 30 बार नाम लिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्विट किया है कि 'दोस्त दोस्त न रहा।' वैसे इस बयान से मोदी ने खुद पर उंगली उठा दी है। देखना होगा कि आगे के चार चरणों में नरेंद्र मोदी के इस बयान से भाजपा को मदद मिलती है या फिर मुसीबत में पड़ती है।


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