मोदी की दिल्ली रैली : 12 हजार जवानों के बूते बची खाकी की 'खुशी'
एक सप्ताह से दिन-रात राष्ट्रीय राजधानी में चल रहा एनआरसी का जबरदस्त विरोध। विरोध के धुएं और आग में झुलसी शांति और बेहाल हो चुकी पुलिसिया मुस्तैदी

नई दिल्ली। एक सप्ताह से दिन-रात राष्ट्रीय राजधानी में चल रहा एनआरसी का जबरदस्त विरोध। विरोध के धुएं और आग में झुलसी शांति और बेहाल हो चुकी पुलिसिया मुस्तैदी। उस पर रविवार को देश के प्रधानमंत्री की ऐतिहासिक रामलीला मैदान में विशाल जनसभा का आयोजन। जहां नजर पड़ती, वहीं दूर तलक पुलिस को भीड़-भाड़ और मुसीबतों के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था।
वैसे तो एक सप्ताह से राजधानी की सड़कों-गलियों में कहीं भी और कुछ नजर नहीं आ रहा था, सिवाय तमाम आफतों के झुंड के। दिन और रात का चैन छिन चुका था। ऊपर से दंगा-फसाद को लेकर अदालतों और हुकूमत की देहरियों पर सुबह से शाम तक दिन एड़ियां रगड़ते-रगड़ते गुजर रहे थे। जब से जामिया, तीस हजारी कोर्ट पुलिस-वकील मारपीट, सीलमपुर-जाफरबाद और दरियागंज का दंगा हुआ।
पुलिस दिन-रात एक किए हुई थी किसी भी तरह शांति कायम कराने की गलतफहमियां पाले हुए। शांति थी कि राष्ट्रीय राजधानी में कहीं भी घड़ी भर रुकने को राजी नहीं दिखाई पड़ती थी। एक तरफ की भीड़ को छांटकर पुलिस सड़क का रुला देने वाला जाम खुलवा पाती, तब तक दूसरी ओर बसें-वाहन आग में झोंक दिए जाने की खबर मिल जाती। मतलब, एक पुलिस के पल्ले एक अदद एनआरसी के विरोध ने सौ-सौ मुसीबतें बख्श रखी थीं।
इन तमाम झंझटों से निजात मिलने की दूर-दूर तक उम्मीद नहीं थी। तब तक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की तुर्कमान गेट स्थित मध्य दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल जनसभा रविवार को कराए जाने का फरमान मिल गया। मामला पीएम की रैली का था, न कि किसी झपटमारी की घटना को जबरिया चोरी की धाराओं में दर्ज कर डालने का।
दिल्ली की सड़कों पर लुटा-पिटा थाने चौकी पहुंचा आम आदमी पुलिस का भला क्या बिगाड़ सकता है, सो पुलिस उसे तो धमका कर पुचकार कर बहला-फुसला कर थाने-चौकी से भगा भी देती। प्रधानमंत्री मोदी की रैली में तो दिल्ली पुलिस के इन तमाम हथकंडों में से कोई भी कारगर होने की उम्मीद ही दूर-दूर तक नहीं थी। उम्मीद की बात तो छोड़िए, इस बारे में सोचना भी पाप बन जाता। लिहाजा, सूचना मिलते ही दिल्ली पुलिस का पूरा अमला पीएम की रैली की तैयारियों में दिन-रात जुट गया।
राष्ट्रीय राजधानी में एनआरसी के विरोध को लेकर लगी आग, फैली हिंसा और दंगा-फसाद की चिंगारियों को जैसे-तैसे दबाकर पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की पूरी की पूरी 'फोर्स' जुट गई, पीएम की जनसभा शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित कराने की तैयारियों में पुलिस कमिश्नर ने दिन देखा, न रात। न खुद जीभर कर सो पाए। न मातहत आला अफसरों को सुस्त होने दिया। वजह वही एक अदद कि कैसे भी अगर पीएम की रामलीला मैदान वाली रैली रविवार को शांतपूर्ण तरीके से निपट गई तो समझो, सब ठीक..वरना सब गड़बड़ होने की पूरी-पूरी उम्मीद थी।
दिल्ली पुलिस के सिर पीएम की रैली का भय ही सवार था, जिसने पुलिस कमिश्नर से लेकर सिपाही तक की नींद उड़ा दी, वरना 2 नवंबर, 2019 को तीस हजारी कांड में (वकील और पुलिस वालों के बीच खूनी संघर्ष) जिंदगी मौत से जूझ रहे अस्पतालों में पड़े अपने घायल 'बहादुर' हवलदार-सिपाहियों को देखने के लिए इन्हीं पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के पास वक्त नहीं था।
तीस हजारी कांड की उस लोमहर्षक खूनी घटना के बाद में जमाने ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को सौ-सौ लानतें-मलामतें भेजीं। उसके बाद दिल्ली पुलिस के निचले तबके के कर्मचारियों और उनके परिवारों ने दिल्ली पुलिस मुख्यालय घेर लिया। नाराज अपनों को पीएचक्यू के मुख्य द्वार पर समझाने-बुझाने महकमे के मुखिया पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक पहुंचे तो कमिश्नर और उनके चंद विश्वासपात्र आईपीएस अफसरों को सिपाही-हवलदारों ने झिड़क कर भगा दिया।
इन्हीं तमाम झंझावतों के बीच रविवार को जैसे-तैसे कई दिनों के मशक्कत के बाद प्रधानमंत्री की सभा शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गई। दिल्ली पुलिस मुख्यालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने आईएएनएस को बताया, "यूं तो एसपीजी और एनएसजी दोनों ही पीएम की सुरक्षा में डटी हुई थीं, जहां तक सवाल दिल्ली पुलिस के सुरक्षा घेरे का है तो दिल्ली पुलिस ने करीब 12 हजार जवानों का सुरक्षा घेरा बनाया था। सुरक्षा घेरे में शामिल दिल्ली पुलिस के अधिकांश जवानों पर हथियार थे। सैकड़ों की संख्या में जवान और अधिकारी सादा कपड़ों में भी भीड़ में जाकर बैठे रहे।"
दिल्ली पुलिस डिप्लॉयमेंट सेल सूत्रों के मुताबिक, इन 12 हजार सुरक्षा कर्मियों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवान भी शामिल थे। दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा विंग में मौजूद अपने तकरीबन 80 फीसदी कमांडोज को भी पीएम की जनसभा की सुरक्षा-घेरे में तैनात कर दिया था।


