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मिशन 2018, दांव अपने-अपने

राज्य में वर्ष 2018 में विधानसभा और 2019 में लोकसभा चुनाव होंगे। जिसकी हलचलें तेज होते जा रही है

मिशन 2018, दांव अपने-अपने
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राज्य में वर्ष 2018 में विधानसभा और 2019 में लोकसभा चुनाव होंगे। जिसकी हलचलें तेज होते जा रही है। राष्ट्रीय दलों में रणनीति बनाना शुरू कर दिया है और चुनावी समर में उतरने के साथ पार्टी कार्यालयों में बैठकों का दौर जारी है। वही रणनीतिकार व राजनीतिक विश्लेषकों से तैयारियों को लेकर चिंतन-मनन विचार-विमर्श किया जा रहा है। प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी केंद्र राज्य की योजनाओं के सहारे 4थीं बार सत्ता पाने के लिए आतुर व तैयारी में दिखलाई दे रही है। जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सत्ता में वापिसी के लिए पुरजोर कोशिश में है। वही प्रदेश की राजनीति में प्रमुख दलों के धुरंधर सक्रिय हो गए हैं।

पार्टी की सभी स्तरीय बैठकों में हिस्सा लिया जा रहा है। साथ में टिकट मिलने की आस के साथनेता विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी तैयारी में है। लेकिन इस बीच राज्य की राजनीति में उदय हुए क्षेत्रीय दलों की उपस्थिति ने राष्ट्रीय दलों के लिए काफी चुनौती पेश करने तथा कड़ी टक्कर देने के संकेत दे दिए है। इन पार्टियों के मुख्यकर्ता-धर्ता निरंतर व लगातार राज्य के जिलों का दौरा कर पकड़ को मजबूत बना रहे है।

यहां तक कि क्षेत्रीय दल की लीडरशिप माहिर हाथों में है। जिनके दूर दृष्टिकोण से वर्ष 2018 का मिशन केंद्रित हो रहा है। राष्ट्रीय दल उन पर नजर जमाए हुए है। अंदरूनी-बाहरी सभी तरीकों से गुफ्तगू चल रही है। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे), छग स्वाभिमान मंच, जय छत्तीसगढ़ पार्टी, छत्तीसगढ़ी समाजवादी पार्टी सहित आदि क्षेत्रीय पार्टियों का नेतृत्व पुराने-मंझे-अनुभवी व दिग्गज नेताओं के हाथ में है।

जिनके व्यक्तित्व का राज्य की राजनीति में काफी असर रहा है। दूसरी तरफ इस प्रकार की चर्चा है कि समीकरण व सत्ता की लालसा के लिए क्षेत्रीय दल गठजोड़ कर राष्ट्रीय दलों को सत्ता से दूर रखने आपस में हाथ मिला सकते है। लेकिन अभी किंतु-परंतु में उलझे हुए है। अब तक छग मेंं तीसरे मोर्चे का कोई विकल्प मतदाताओं को नहीं मिला। वर्ष 2003 में अवश्य दिवंगत कांग्रेस लीडर विद्याचरण शुक्ल ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की प्रदेश में कमान सम्हाली। उस वक्त अच्छी चुनौती की उम्मीद की गई। लेकिन पार्टी का राज्य के मतदाताओं में खास प्रभाव नहीं होने के कारण मतदाताओं ने तीसरा विकल्प नहीं माना।

यह अवश्य है कि स्व. श्री शुक्ल के कारण उक्त वर्ष राज्य की राजनीति में काफी उथल-पुथल मची रही। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कट्टर विरोधी माने जाने वाले श्री शुक्ल अधिक दिनों तक राकांपा का दामन थामें नहीं रह सके और सत्ता के मोह में राकांपा से भाजपा और बाद में फिर से कांग्रेस में वापिसी की। मगर राकांपा में रहते हुए सियासत में अपना असर दिखाया। इधर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी तथा मायावती की बहुजन समाज पार्टी राज्य में उम्मीदवारी तय करने के लिए गए समीकरण की तलाश में हैं।

अखिलेश यादव रायपुर में कह गए हैं कि समाजवादी पार्टी छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ेगी। मगर इस बार स्थितियां और परिस्थिति अलग है। बसपा-सपा के साथ जदयू-वाममोर्चा- मिशन 2018 की तैयारी कर रहे है। जो अवश्य वैचारिक मतभेद के बावजूद भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए एक हो सकते हैं। वैसे भी राज्य में बस्तर संभाग की सीट सत्ता तक पहुंचने का मुख्य पायदान माना गया है।

इसलिए सभी पार्टी के प्रमुख नेताओं का फोकस बस्तर आदिवासी जिले है। आदिवासी कार्ड के दम पर चुनाव जीतते आए है। इस बार सभी दल साथ में मिशन 2018 में नए चेहरों को मौका दिए जाने के वादे से जोश भर दिया गया है। जोगी का क्षेत्रीय दल जनता कांग्रेस अभी जी जान से जुटा हुआ है किंतु वह भी कांग्रेस का ही अग है। दो भाइयों की लड़ाई से केवल घर ही बर्बाद होता है। देखना है सत्ता की कुर्सी तक कौन जा पाता है।


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