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रो-पड़ी पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा

मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश से वंचित किए जाने के बाद दिव्यांग पर्वतारोही और पद्मश्री विजेता अरुणिमा सिन्हा ने आज पूछा की हर बार महिला के कपड़ों को मुद्दा क्यों बना

रो-पड़ी पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा
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भोपाल। मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश से वंचित किए जाने के बाद दिव्यांग पर्वतारोही और पद्मश्री विजेता अरुणिमा सिन्हा ने आज पूछा की हर बार महिला के कपड़ों को मुद्दा क्यों बनाया जाता है।

सोशल मीडिया के द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कल शाम अपने दुख से अवगत कराने के बाद सिन्हा से महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस और महाकाल मंदिर प्रबंधक अवधेश शर्मा ने दूरभाष पर बात की।

माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाली देश की पहली दिव्यांग पर्वतारोही सुश्री अरुणिमा ने आज यूनीवार्ता से दूरभाष पर चर्चा करते हुए बताया कि शर्मा ने उनसे मंदिर कर्मचारियों के तरफ से माफी मांगी। उन्होंने बताया कि मंदिर प्रबंधन महिलाओं के लिए अलग कमरे की व्यवस्था कर रहा जहां वे वस्त्र बदल सके।

उन्होंने हर बार महिलाओं के परिधान को हर बार मुद्दा बनाए जाने पर सवाल खडा करते हुए कहा कि उन्होंने स्वयं एक लड़के को जींस पहन कर मंदिर के गर्भ गृह से बाहर आते हुए देखा था। उन्होंने कहा कि उनका एक पैर नहीं होने के बजह से साड़ी पहनने में कठिनाई आती है और उनको चलने में सहयोग की आवश्यकता पडती है।

इसके अलावा उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्री ने भी फोन किया और उनके साथ हुए व्यवहार पर दुख जताया। वहीं गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने सिन्हा के साथ हुए व्यवहार पर सोशल मीडिया पर अफसोस जताते हुए कहा कि जिला प्रशासन को इस संदर्भ में जांच के निर्देश दिए गए हैं।

उज्जैन संभागायुक्त एम वी ओझा ने यूनीवार्ता से दूरभाष पर बातचीत करते हुए कहा कि जिला कलेक्टर इस मामले में जांच कर रहे है।
उन्होंने कहा कि मंदिर के गर्भ गृह में साड़ी पहन कर जाने की परंपरा अनादिकाल से रही है। हालांकि इस बात की जांच की जायेगी कि सुश्री सिन्हा को इस संदर्भ में उचित सूचना क्यों नहीं मिली।

रविवार को महाकालेश्वर मंदिर के गर्भ गृह में जाने से सिन्हा को कर्मचारियों इसलिए रोक दिया था क्योंकि उन्होंने टी शर्ट और लोअर पहना हुआ था। कई बार मंदिर के कर्मचारियों से आग्रह करने के बाद जब वे नहीं माने तो उन्हें स्कीन पर भस्मार्ती देखकर संतोष करना पडा।

बाद में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें इतनी पीड़ा माउंट एवरेस्ट चढने पर नहीं हुई जितनी उन्हें महाकाल मंदिर में हुई क्योंकि वहा उनकी दिव्यांगता का मजाक बना।


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